Menu
blogid : 15294 postid : 834220

पीके …….अब क्यूं बैठे मुंह ..सी के

पंच लाइन
पंच लाइन
  • 18 Posts
  • 23 Comments

पिछले साल से इस नए साल तक यदि कोई विवाद घिसटता चला आ रहा है तो उसमें से नि:संदेह एक हाल ही में प्रदर्शित सिनेमा पीके भी है । हालांकि इस सिनेमा के विषय या इसके प्रदर्शन से पहले भी इसके साथ विवाद तो तभी शुरू हो गया था जब इसका पहला पोस्टर जारी किया गया था जिसमें अभिनेता आमिर खान रेल की पटरी पर बिल्कुल नग्न खडे थे । हमेशा की तरह अपने नए प्रयोगों और नई सोच को सामने लाने के लिए विख्यात अभिनेता आमिर खान के इस पोस्टर के बाद सब अंदाज़ा लगाने लगे थे कि कुछ न कुछ नया ही परोसा जाने वाला है किंतु कहीं से भी किसी को भी ये अंदाज़ा नहीं था कि एक बार फ़िर से धर्म या कहा जाए कि धर्म के भीतर फ़ैले पाखंड और आडंबर को निशाने पे लिया जाएगा । किंतु हमेशा की तरह से फ़िर से आसान टार्गेट चुनते हुए बडी ही चतुराई से पूरी फ़िल्म में अधिकांशतया हिंदू धर्म , धर्म स्थल , हिंदू ईश एवं हिंदू धर्मगुरू को ही विषय बना कर उसके इर्द गिर्द सारा फ़िल्मी मसाला बुन कर परोस दिया गया , परिणाम ये कि आशा के अनुरूप फ़िल्म के कथानक , दृश्यांकन , डायलॉग आदि विवादित हुए और फ़िल्म ने सिने इतिहास की सबसे अधिक कमाई करने वाली , लगभग सवा तीन सौ करोड , फ़िल्म का रिकार्ड बना लिया ।
.
इस पोस्ट के लिखे जाने तक यूं तो इस फ़िल्म से जुडे सारे विवाद पार्श्व में जा चुके हैं और इसी बीच बदले हुए घटनाक्रम पर पूरे विश्व और भारत सहित पूरे समाज की नज़रें जा चुकी हैं , आस्ट्रेलिया से लेकर फ़्रांस तक पर मज़हब , इस्लामिक राज़्य और ज़िहाद के नाम आतंक का नंगा नाच किया जा रहा है । निर्दोष मगर निर्भीक लोगों , पत्रकारों , संपादकों तक की हत्या करके दशहत फ़ैलाने और अंजाम भुगतने का संदेश दिया जा रहा है अलग अलग आतंकी गुटों द्वारा , और स्थिति ये है कि कहीं भी किसी के मुंह से इसकी भर्त्सना तो दूर उलटे खुल्लम खुल्ला ऐसे आतंकियों को ईनाम देने और उन्हें इस घिनौनी करतूत के लिए शाबासी तक देने को आतुर हैं । खैर , दोबारा लौटते हैं फ़िल्म पीके की ओर ..
.
सवाल ये नहीं है कि धर्म और धर्म के नाम पर फ़ैले पाखंड और आडंबर को यदि सिने कलाकार अपने निशाने पर नहीं लेंगे उनपर चोट नहीं करेंगे तो फ़िर क्या आम आदमी करेगा , तो नि:संदेह ये उनका अधिकार भी है और कर्तव्य भी । और  ये किया भी जाता रहा है ,कुछ समय पूर्व एक ऐसी ही फ़िल्म ओ माय गॉड भी प्रदर्शित की गई थी जिसमें बडे ही तर्कपूर्ण तरीके से धर्म के नाम पर धर्मगुरूओं द्वारा फ़ैलाए गए माया जाल को निशाने पर लिया गया था । किंतु एक दर्शक के रूप में जो बातें इस फ़िल्म में किसी भी दर्शक इत्तेफ़ाकन अगर वो हिंदू धर्म का अनुयायी हो और संयोगवश आस्तिक भी है तो उसे जो नागवार गुज़री होंगी वो नि:संदेह यही रही होंगी ।
.
पहला , सिनेमा का ठीक ऐसे समय में प्रदर्शन जब भारतीय जनमानस धीरे धीरे संगठित होकर हिंदुस्तानी मर्म और हिंदू धर्म पर केंद्रित हो रहा था/है । इसका प्रमाण बहुत समय बाद भारतीय जनता पार्टी का इतने बडे बहुमत से शासन में आना , देश से लेकर प्रदेश तक लोगों की सामाजिक , राजनीतिक और धार्मिक सोच प्रबल रूप से हिंदुत्व के पुरातन गौरव के प्रति रुझान , ऐसे समय में यदि अनावश्यक रूप से उनके ईश और मान्यताओं का ऐसा उपहास सिर्फ़ व्यावसायिक लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जाएगा तो ये आमंत्रित विवाद की तरह था । केंद्र में अभिनेता आमिर खान , इत्तेफ़ाकन मुस्लिम संप्रदाय से संबंधित थे , कथानक में प्रेमी जोडे में युवक पाकिस्तान का और युवती भारत की , क्या मुसलमान धोखेबाज होते हैं , लोग मूते नहीं इसलिए भगवान की फ़ोटो लगा देते हैं जैसे संवाद आदि इतने सारे तथ्यों को यदि संयोग भी मान लिया जाए तो फ़िर ये निंसंदेह घातक संयोग था । आखिरी और सबसे अहम बात जिसका ज़िक्र बार बार इस विवाद में हुआ कि क्या जितनी आसानी से हिंदू धर्म , धार्मिक स्थलों , हिंदू ईश , और हिंदू धर्म गुरुओं को निशाने पर लिया जाता है क्या वही हिम्मत किसी अन्य धर्म विशेषकर मुस्लिम मज़हब के लिए दिखाई जा सकती है …विश्व आज इस्लामिक कट्टरपंथ से उपजे आतंकवाद का दंश झेल रहा है और इन सारे प्रश्नों का उत्तर पा रहा है ।

अंत में सिर्फ़ यही कहने का मन है कि ,

सोच रहा हूं कि अब आवाज़ दूं जोर से और पूछूं , अबे अब कहां हो बे पीके ,
दडबों से निकलो न ,बनाओ कुछ कठमुल्लों पे सिनेमा फ़िर दिखाओ जी के ..
सोच रहा हूं कि अब आवाज़ दूं जोर से और पूछूं , अबे, अब कहां हो बे पीके ,
धर्म नहीं मज़हब के नाम पर जब हुआ नंगा नाच , बैठ गए न मुंह सी के ..

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh