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चीन की विस्तारवादी नीति कोई नई नहीं है सदियों से चीन की धारणा विस्तारवादी रही है और गाहे बगाहे इस बात के प्रमाण भी मिलते रहते हैं और भारत की आजादी के बाद से ही भारत के सीमावर्ती इलाके चीन की आँखों में खटकने लगे थे और इसी का परिणाम रहा है की चीन मैकमोहन रेखा को मान्यता नहीं देता और हर संभव कोशिश में रहता है की किस तरह से भारतीय क्षेत्र हथिया लिया जाए परन्तु इसके विपरीत भारतीय विदेश नीति और रक्षा नीति आजादी के समय से ही लचर रही है अपने हजारों साल के इतिहास से भी शायद हमारे नेताओं ने कोई सीख नहीं ली की अगर हमारी सीमाएं सुरक्षित नहीं है तो विकास बेमानी है क्यों की वो किसी और के काम आएगा भारत अपनी भूमि पर दावा तो करता है परन्तु वो दावा शायद स्कूली बच्चो के नक़्शे तक ही सीमित है |जमीन पर इस दावे को मूर्तरूप देने की कोशिश कही नहीं दिखाई देती और इसी का परिणाम है जहा कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास है वही अक्साई चीन , लद्दाख और पी ओ के का काफी हिस्सा चीन अपने कब्जे में ले चूका है जो भूमि पकिस्तान और चीन को जान से ज्यादा प्यारी दिखाई देती है हमारे नेताओं को बंजर और निर्जन दिखाई देती है और इसी के चलते इस निर्जन स्थान की सही निगरानी न होने चीन फिर से 19 किलोमीटर अंदर घुसने में कामयाब हो सका है ,सबसे जयादा चिंता जनक बात ये है की भारत सरकार इस मुद्दे को चोरीछिपे निपटा देना चाहती है , जिस तरह से चीन भारत को चारों तरफ से घेर रहा है ये उसकी मंशा के स्पष्ट संकेत है और भारत सरकार को ये समझ लेना चाहिए की आँख मूँद लेने खतरा दिखाई जरूर नहीं देता है पर टालता नहीं है और अब ये सही समय है चीन से अपने संबंधो पर पुनर्विचार होना चाहिए बिना सपष्ट नीति के स्पष्ट और मधुर सम्बन्ध नहीं हो सकते अब चीन को दो टूक जवाब देने का समय आ गया है की भारत अब मूकदर्शक बन कर नहीं रह सकता और उसे चीन के इरादे समझ में आ रहे है तथा अगर हमें युद्ध जैसी स्थिति का भी सामना करना पड़ता है तो हम तैयार है बिना लड़े हम अपनी एक इंच जमीन पर भी पैर नहीं रखने देंगे और अगर चीन की नीयत सही नहीं है भारत का बाजार भी चीन के लिए उपलब्ध नहीं है अगर अभी सही समय पर सही जवाब नहीं दिया गया तो अक्साई चीन और आधे लद्दाख के बाद अब पूरे लद्दाख और अरुणांचल की बारी है
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