दौलतखाने में नगाड़ा बजता, जनखे कमरें लचकाकर, बलखाकर नाच-नाचकर अधमरे हो जाते। जनानियों के गुलाबी होंठ रसगुल्ले खा-खाकर से चाशनीदार हो जाते। दादी इतनी खुश हो जातीं कि लंबी हो जाती और उनको पंखा झलना पड़ता पर……ऐसा कुछ नहीं हुआ।
आरिफ, (जैसा कि अम्मी ने नाम दिया, अब्बा उस दिन न जाने कहां झक मार रहे थे) की पैदाइश निहायत ही गरीबी में हुई। दौलतखाना भूतखाने सा हो चुका था। जनखे कब्रों में सो रहे थे और इस बात का इंतजार कर रहे थे कि न जाने कब फरिश्ता आएगा और इंसाफ होगा, किसने अपनी बिरादरी के साथ कितनी दगा की है, खुदा के आने का सवाल नहीं उठता क्योंकि वो अधूरे हैं, न मर्द न कमजात औरत। जनानियां भुखमरी और गरीबी के चलते बीमारियों से जूझ रही थीं और दादी इलाज से महरूम होकर मरहूम हो चुकी थी।
आरिफ की नानी ने सदके में दुअन्नी निकाली तो अम्मी ने उसके बताशे मंगाकर खुद ही खा लिए, यूं हुआ आरिफ की पैदाइश का जश्र। आरिफ कुछ बड़ा हुआ तो मदरसे में गया। यहां टीचर मोहतरमा तो आती नहीं थी पर यहां धर-पकड़ और क्रिकेट खेलकर वो अच्छा रनर और निशानेबाज बन गया। वो अपने दुश्मन बच्चों के घरों के शीशे तोड़ता और हाथ आने से पहले भाग निकलता। एक बार हकीमुद्दीन ने उससे शर्तलगाकर उस पर कुत्ता छोड़ दिया तो कुत्ता हांफ-हांफकर अधमरा हो गया पर आरिफ को धर न पाया। मां दुआ करती- मेरा बेटा अफसर हो जाए। पर देखकर लगता था कि वो कुछ बने न बने चोर जरूर बन जाएगा। उसकी शिकायतें घर पहुंचती तो अम्मी माफी मांग लेती या लोगों को दिखाने के लिए उसके कान खींच देतीं। इंसाफ भाई जान आरिफ की अम्मी सकीना के जवानी से आशिक थे। दीदार के लिए वो यूं ही शिकायत के बहाने से उनके दौलतखाने जो अब पुरानी रौनकों का जिन्न बन चुका था, पहुंच जाते। कम से कम यहां हिजाब के बाहर चांद तो दिख ही जाता था। हाय…कुछ कहना मुहाल है।
इनकी जवानी के किस्से तो तिलिस्मे होशरुबा हो जाते हैं इसलिए इस बारे में बात नहीं करेंगे। तो किस्सागोई हो रही है जनाब आरिफ के बारे में, चलिए- आरिफ सोलह का हुआ। अब तक वो बताए गए हाल के मुताबिक चोर बन गया था। हम किसी नजूमी से कम नहीं कभी आजमाइये तो सही!
तो जनाब आरिफ चोर बन गए। यहां-वहां के लोहा-लंगड़ और रेल-पेशाबघरों से टोंटिया चुराने से अब वो कुछ ऊपर उठ गए अब मोबाइल, पर्स वगैरह पर हाथ साफ कर लेते। किस्मत थी कि पकड़े नहीं जाते थे और गए भी तो कोतवाल अजीज मामला सलटा देते। कभी-कभी तो फरियादी को ही गुनाहगार बना देते कभी धमकाते और कभी-कभी कोतवाली के इतने चक्कर लगवाते कि फरियादी आजिज आकर शिकायत आगे न बढ़ाता। अब ये अजीज कौन है? अजीज आरिफ के मामा भी हैं और चाचा भी। अब कैसे? ये सब छोड़ दो। हां तो अब आरिफ के शेर के मुंह में चोरी का खून लगा तो बार-बार चोरियां होने लगीं। अजीज चाचा ने कह दिया कि अब बीट बदल सकती है। सेटिंग नहीं हो पा रही है क्योंकि नया अफसर अपनी नई सेटिंग जमा रहा है। पैसे ज्यादा भी मांग रहा है। बीट कभी भी बदल सकती है। बीस साल से तो यहीं बैठा हूं पर अब कभी भी दूसरे थाने हो सकता हूं। मेरे बाद पकड़ा गया तो खुद तो खंदक में पड़ेगा ही मेरे नौकरी भी जाएगी। आरिफ कान खुजाता और मटरगर्ती पर निकल जाता।
शहर में शाह बाबा का उर्स हो रहा था। आरिफ यहां जेबकटी के लिए आया था। कल ही दो मोबाइल चुराए थे। बिलकुल स्मार्ट। आरिफ शिकार ढूंढते-ढूंढते कव्वाली के मंच के सामने आ गया। भीड़ बहुत थी। उसके आगे एक लंबा-चौड़ा पठान खड़ा था। आरिफ ने सोचा अब इसका माल उड़ाएंगे। तभी कुछ अजब हुआ-
आगे की कहानी को जानने के लिए ऊपर दी गई लिंक पर आइए……..
दौलतखाने में नगाड़ा बजता, जनखे कमरें लचकाकर, बलखाकर नाच-नाचकर अधमरे हो जाते। जनानियों के गुलाबी होंठ रसगुल्ले खा-खाकर से चाशनीदार हो जाते। दादी इतनी खुश हो जातीं कि लंबी हो जाती और उनको पंखा झलना पड़ता पर……ऐसा कुछ नहीं हुआ।
आरिफ, (जैसा कि अम्मी ने नाम दिया, अब्बा उस दिन न जाने कहां झक मार रहे थे) की पैदाइश निहायत ही गरीबी में हुई। दौलतखाना भूतखाने सा हो चुका था। जनखे कब्रों में सो रहे थे और इस बात का इंतजार कर रहे थे कि न जाने कब फरिश्ता आएगा और इंसाफ होगा, किसने अपनी बिरादरी के साथ कितनी दगा की है, खुदा के आने का सवाल नहीं उठता क्योंकि वो अधूरे हैं, न मर्द न कमजात औरत। जनानियां भुखमरी और गरीबी के चलते बीमारियों से जूझ रही थीं और दादी इलाज से महरूम होकर मरहूम हो चुकी थी।
आरिफ की नानी ने सदके में दुअन्नी निकाली तो अम्मी ने उसके बताशे मंगाकर खुद ही खा लिए, यूं हुआ आरिफ की पैदाइश का जश्र। आरिफ कुछ बड़ा हुआ तो मदरसे में गया। यहां टीचर मोहतरमा तो आती नहीं थी पर यहां धर-पकड़ और क्रिकेट खेलकर वो अच्छा रनर और निशानेबाज बन गया। वो अपने दुश्मन बच्चों के घरों के शीशे तोड़ता और हाथ आने से पहले भाग निकलता। एक बार हकीमुद्दीन ने उससे शर्तलगाकर उस पर कुत्ता छोड़ दिया तो कुत्ता हांफ-हांफकर अधमरा हो गया पर आरिफ को धर न पाया। मां दुआ करती- मेरा बेटा अफसर हो जाए। पर देखकर लगता था कि वो कुछ बने न बने चोर जरूर बन जाएगा। उसकी शिकायतें घर पहुंचती तो अम्मी माफी मांग लेती या लोगों को दिखाने के लिए उसके कान खींच देतीं। इंसाफ भाई जान आरिफ की अम्मी सकीना के जवानी से आशिक थे। दीदार के लिए वो यूं ही शिकायत के बहाने से उनके दौलतखाने जो अब पुरानी रौनकों का जिन्न बन चुका था, पहुंच जाते। कम से कम यहां हिजाब के बाहर चांद तो दिख ही जाता था। हाय…कुछ कहना मुहाल है।
इनकी जवानी के किस्से तो तिलिस्मे होशरुबा हो जाते हैं इसलिए इस बारे में बात नहीं करेंगे। तो किस्सागोई हो रही है जनाब आरिफ के बारे में, चलिए- आरिफ सोलह का हुआ। अब तक वो बताए गए हाल के मुताबिक चोर बन गया था। हम किसी नजूमी से कम नहीं कभी आजमाइये तो सही!
तो जनाब आरिफ चोर बन गए। यहां-वहां के लोहा-लंगड़ और रेल-पेशाबघरों से टोंटिया चुराने से अब वो कुछ ऊपर उठ गए अब मोबाइल, पर्स वगैरह पर हाथ साफ कर लेते। किस्मत थी कि पकड़े नहीं जाते थे और गए भी तो कोतवाल अजीज मामला सलटा देते। कभी-कभी तो फरियादी को ही गुनाहगार बना देते कभी धमकाते और कभी-कभी कोतवाली के इतने चक्कर लगवाते कि फरियादी आजिज आकर शिकायत आगे न बढ़ाता। अब ये अजीज कौन है? अजीज आरिफ के मामा भी हैं और चाचा भी। अब कैसे? ये सब छोड़ दो। हां तो अब आरिफ के शेर के मुंह में चोरी का खून लगा तो बार-बार चोरियां होने लगीं। अजीज चाचा ने कह दिया कि अब बीट बदल सकती है। सेटिंग नहीं हो पा रही है क्योंकि नया अफसर अपनी नई सेटिंग जमा रहा है। पैसे ज्यादा भी मांग रहा है। बीट कभी भी बदल सकती है। बीस साल से तो यहीं बैठा हूं पर अब कभी भी दूसरे थाने हो सकता हूं। मेरे बाद पकड़ा गया तो खुद तो खंदक में पड़ेगा ही मेरे नौकरी भी जाएगी। आरिफ कान खुजाता और मटरगर्ती पर निकल जाता।
शहर में शाह बाबा का उर्स हो रहा था। आरिफ यहां जेबकटी के लिए आया था। कल ही दो मोबाइल चुराए थे। बिलकुल स्मार्ट। आरिफ शिकार ढूंढते-ढूंढते कव्वाली के मंच के सामने आ गया। भीड़ बहुत थी। उसके आगे एक लंबा-चौड़ा पठान खड़ा था। आरिफ ने सोचा अब इसका माल उड़ाएंगे। तभी कुछ अजब हुआ-
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