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मौत से मुकाबला 3: हादसों की दुनिया में प्रवेश

AjayShrivastava's blogs
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मौत से मुकाबला 3: हादसों की दुनिया में प्रवेश
एक मजबूर लड़की अपने मालिक हब्शी के से साथ जा रही है। उसने बड़ी आशा से भरी निगाहों से तीन दोस्तों को देखा। उसकी नजर को भांपकर हब्शी ने उन तीनों को देखा उसकी लाल क्रूरता से भरी आंखें। एक गडरिया बालक जिसने तीनों को बताया कि वो लड़की एक डायन है और सबकुछ छलावा था। इसके साथ ही वो ये कहकर गायब हो गया कि वो भी छलावा है। वो लड़की पेरिस, एक डायन।
हड़बड़ाकर मैं बिस्तर से उठा, पेरिस का भयानक चेहरा मेरी नींद उड़ा चुका था। रात गहरी थी और कुछ ही दूर में एक भेडिय़ा भयानक आवाज कर रहा था। किसी तरह से रात बीत गई। मैं सो नहीं पाया। मैं दूसरे दिन उठा और सुप्रीम स्कूल जा पहुंचा। आज मुझे मास्टर ऑनर्स की उपाधि मिलने वाली थी जो मिल भी गई। अब एक सवाल था जिससे रोज ही दो-चार होना कि अब क्या करना है? परिवार का बड़ा था मैं, और पिता के साथ हाथ बंटाने की जिम्मेदारी मुझ पर थी, जिससे मैं लंबे समय से बचता ही आ रहा था। मास्टर्स की डिग्री सिर्फ इतना भर सहारा थी कि लोग मुझे अनपढ़ नहीं समझते थे। मैंने निश्चय किया कि शहर में काम ढूंढा जाए और मैं शहर आ गया। यहां-वहां मारा-मारा फिरा। कुछ नहीं मिला तो समुद्र के किनारे के एक छोटे से पुल पर जा बैठा। ये हिस्सा लोगों से भरा हुआ था और तमाम तरह के तमाशबीन और बाजीगर यहां-वहां अपनी किस्मत आजमा रहे थे। मैं परेशान था तभी किसी आते-जाते दो युवकों के बोल मेेरे कान में पड़े- अरे वहां जल्दी चल वहां खलासी का काम है। मैं बिना कुछ सोचे-समझे पास लगे छोटे जहाजों की ओर चला गया। वहां एक जहाज पर कुछ लोगों की लाइन देखकर मंै वहां जा पहुंचा और अंतत: भर्ती करने वाले के सामने जा पहुंचा।
नाम।
ऐज।
पढ़े हो।
मास्टर ग्रेजुएशन।
ऊंची डिग्री सुनकर उसने मुझे आपने मालिक के पास भेजा जो वहीं खड़ा होकर लहरें निहार रहा था।
कौन हो तुम? एज।
क्या चाहते हो?
काम।
पढ़े हो।
मास्टर।
ओह, देखो ये काम हम्माली और मेहनत का है। कर सकोगे।
कर लूंगा।
कर लूंगा नहीं। अभी कह दो। बीच समंदर में नहीं की कोई गुंजाइश नहीं होती।
करूंगा, बेझिझक, करूंगा।
अच्छा।
उस आदमी ने कुछ सोचा और एक चिट्ठी लिखकर मुझे दी और पास ही एक जहाज पर भेजा। मैंने चि_ी पढऩे की कोशिश की पर पढ़ न सका क्योंकि वो ऑस्ट्रियन भाषा में लिखी थी और वो मेरी समझ के बाहर थी। हालांकि ये भाषा बहुतायत से बोली जाती थी मगर मेरा अध्ययन ब्रिटिश अंग्रेजी में हुआ था। मैं चिट्टी लेकर जहाज पर पहुंचा। जहाज का मालिक था नेवल स्पार्ट उसने चिट्ठी देखी और एक हिसाब करने का चार्ट मुझे दिया। इसमें बहुत सी गलतियां थी जो मैंने ठीक करके बताईं तो उसने मुझे नौकरी पर रख लिया एक शर्त के साथ कि उसके किसी भी काम को मैं मना नहीं करूंगा। अगले हफ्ते सेल शुरू हो रही थी। मुझे उनके साथ जाना था। वक्त मुकर्रर था, करीब तीन महीने पर शायद यह चार से छह महीने भी हो सकता था, जिंदगी रही तो वर्ना शायद कभी नहीं। उसनें मुझे कुछ चांदी के सिक्के दिए। मैं घर लौटा। पैसे दिए, सामान लिया और निकल पड़ा। मां और पिता को सबसे ज्यादा चिंता थी वो तो कह रहे थे कि पैसे वापस करके कोई दूसरा काम ढूंढ लो पर मैं जानता था कि नौकरी ढूंढना कोई आसान काम नहीं था।
मैं वापस लौटा और जहाज सेल के लिए निकल पड़ा। ये जहाज छोटा सा था। इस पर मेरे सिवाय चार आला दर्जे के सहायक थे और दो मेरे समान खलासी थे। हमारा मालिक था नेवल स्पार्ट।
मेरे अन्य दो साथियों के नाम एडम और जोनाथन थे। बाकी चार आला दर्जे के सहायक थे जो हम पर रौब झाड़ते थे। इनमें एक बैन ब्रिटिश था, फारेसो फ्रेंच, जैमी जर्मन था और आखरी कौन था उसकी राष्ट्रीयता क्या थी उसको लेकर वो खुद ही भ्रमित था। उसका नाम था- नोबल। इन चारों में वास्तव में वो नोबल था। उसका ज्ञान प्रभावित करने वाला था और व्यवहार दीवाना बनाने वाला।
जहाज ने किनारा छोड़ा और मैंने ये आशा कि मैं शायद वापस लौट पाऊंगा। कुछ देर किनारा दिखा फिर सिर्फ और सिर्फ समुद्र। नेवल ने मुझे एक बुकलेट दी और कहा कि जहाज के मालखाने में जाकर सामान को चेक करके लिस्ट बनाकर उसे दी जाए। मैं मालखाने में पहुंचा। मालखाना पूरा-पूरा तहखाना था। यहां एक छोटा कांच था जिससे बाहर दिख सकता था। मैंने उससे बाहर देखने की कोशिश की। बाहर कुछ नहीं दिख रहा था। यहां अंधेरा था सो एक लालटेन लेकर मैं यहां आया था। तभी भारी कदमों की आहट हुई।
कौन, मैंने पूछा?
कौन है यहां? सवाल के जवाब में सवाल कता हुआ वहां नोबल आया।
मैं एज।
अच्छा।
पर इस समय तुम्हें यहां नहीं होना चाहिए।
मगर क्यों?
तुम नहीं समझोगे। खैर, लाओ तुम्हारी मदद कर देता हूं। उसने मेरी मदद की और जो काम समयखाने वाला था वो शीघ्र ही मजे के साथ हो गया। नोबल ने कई मजेदार बातें बताईं और किस्से सुनाए। हम दोनों ही इस बात से अंजान थे कि ये मजा कुछ समय का ही मेहमान है।

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एक मजबूर लड़की अपने मालिक हब्शी के से साथ जा रही है। उसने बड़ी आशा से भरी निगाहों से तीन दोस्तों को देखा। उसकी नजर को भांपकर हब्शी ने उन तीनों को देखा उसकी लाल क्रूरता से भरी आंखें। एक गडरिया बालक जिसने तीनों को बताया कि वो लड़की एक डायन है और सबकुछ छलावा था। इसके साथ ही वो ये कहकर गायब हो गया कि वो भी छलावा है। वो लड़की पेरिस, एक डायन।

हड़बड़ाकर मैं बिस्तर से उठा, पेरिस का भयानक चेहरा मेरी नींद उड़ा चुका था। रात गहरी थी और कुछ ही दूर में एक भेडिय़ा भयानक आवाज कर रहा था। किसी तरह से रात बीत गई। मैं सो नहीं पाया। मैं दूसरे दिन उठा और सुप्रीम स्कूल जा पहुंचा। आज मुझे मास्टर ऑनर्स की उपाधि मिलने वाली थी जो मिल भी गई। अब एक सवाल था जिससे रोज ही दो-चार होना कि अब क्या करना है? परिवार का बड़ा था मैं, और पिता के साथ हाथ बंटाने की जिम्मेदारी मुझ पर थी, जिससे मैं लंबे समय से बचता ही आ रहा था। मास्टर्स की डिग्री सिर्फ इतना भर सहारा थी कि लोग मुझे अनपढ़ नहीं समझते थे। मैंने निश्चय किया कि शहर में काम ढूंढा जाए और मैं शहर आ गया। यहां-वहां मारा-मारा फिरा। कुछ नहीं मिला तो समुद्र के किनारे के एक छोटे से पुल पर जा बैठा। ये हिस्सा लोगों से भरा हुआ था और तमाम तरह के तमाशबीन और बाजीगर यहां-वहां अपनी किस्मत आजमा रहे थे। मैं परेशान था तभी किसी आते-जाते दो युवकों के बोल मेेरे कान में पड़े- अरे वहां जल्दी चल वहां खलासी का काम है। मैं बिना कुछ सोचे-समझे पास लगे छोटे जहाजों की ओर चला गया। वहां एक जहाज पर कुछ लोगों की लाइन देखकर मंै वहां जा पहुंचा और अंतत: भर्ती करने वाले के सामने जा पहुंचा।

नाम।

ऐज।

पढ़े हो।

मास्टर ग्रेजुएशन।

ऊंची डिग्री सुनकर उसने मुझे आपने मालिक के पास भेजा जो वहीं खड़ा होकर लहरें निहार रहा था।

कौन हो तुम? एज।

क्या चाहते हो?

काम।

पढ़े हो।

मास्टर।

ओह, देखो ये काम हम्माली और मेहनत का है। कर सकोगे।

कर लूंगा।

कर लूंगा नहीं। अभी कह दो। बीच समंदर में नहीं की कोई गुंजाइश नहीं होती।

करूंगा, बेझिझक, करूंगा।

अच्छा।

उस आदमी ने कुछ सोचा और एक चिट्ठी लिखकर मुझे दी और पास ही एक जहाज पर भेजा। मैंने चि_ी पढऩे की कोशिश की पर पढ़ न सका क्योंकि वो ऑस्ट्रियन भाषा में लिखी थी और वो मेरी समझ के बाहर थी। हालांकि ये भाषा बहुतायत से बोली जाती थी मगर मेरा अध्ययन ब्रिटिश अंग्रेजी में हुआ था। मैं चिट्टी लेकर जहाज पर पहुंचा। जहाज का मालिक था नेवल स्पार्ट उसने चिट्ठी देखी और एक हिसाब करने का चार्ट मुझे दिया। इसमें बहुत सी गलतियां थी जो मैंने ठीक करके बताईं तो उसने मुझे नौकरी पर रख लिया एक शर्त के साथ कि उसके किसी भी काम को मैं मना नहीं करूंगा। अगले हफ्ते सेल शुरू हो रही थी। मुझे उनके साथ जाना था। वक्त मुकर्रर था, करीब तीन महीने पर शायद यह चार से छह महीने भी हो सकता था, जिंदगी रही तो वर्ना शायद कभी नहीं। उसनें मुझे कुछ चांदी के सिक्के दिए। मैं घर लौटा। पैसे दिए, सामान लिया और निकल पड़ा। मां और पिता को सबसे ज्यादा चिंता थी वो तो कह रहे थे कि पैसे वापस करके कोई दूसरा काम ढूंढ लो पर मैं जानता था कि नौकरी ढूंढना कोई आसान काम नहीं था।

मैं वापस लौटा और जहाज सेल के लिए निकल पड़ा। ये जहाज छोटा सा था। इस पर मेरे सिवाय चार आला दर्जे के सहायक थे और दो मेरे समान खलासी थे। हमारा मालिक था नेवल स्पार्ट।

मेरे अन्य दो साथियों के नाम एडम और जोनाथन थे। बाकी चार आला दर्जे के सहायक थे जो हम पर रौब झाड़ते थे। इनमें एक बैन ब्रिटिश था, फारेसो फ्रेंच, जैमी जर्मन था और आखरी कौन था उसकी राष्ट्रीयता क्या थी उसको लेकर वो खुद ही भ्रमित था। उसका नाम था- नोबल। इन चारों में वास्तव में वो नोबल था। उसका ज्ञान प्रभावित करने वाला था और व्यवहार दीवाना बनाने वाला।

जहाज ने किनारा छोड़ा और मैंने ये आशा कि मैं शायद वापस लौट पाऊंगा। कुछ देर किनारा दिखा फिर सिर्फ और सिर्फ समुद्र। नेवल ने मुझे एक बुकलेट दी और कहा कि जहाज के मालखाने में जाकर सामान को चेक करके लिस्ट बनाकर उसे दी जाए। मैं मालखाने में पहुंचा। मालखाना पूरा-पूरा तहखाना था। यहां एक छोटा कांच था जिससे बाहर दिख सकता था। मैंने उससे बाहर देखने की कोशिश की। बाहर कुछ नहीं दिख रहा था। यहां अंधेरा था सो एक लालटेन लेकर मैं यहां आया था। तभी भारी कदमों की आहट हुई।

कौन, मैंने पूछा?

कौन है यहां? सवाल के जवाब में सवाल कता हुआ वहां नोबल आया।

मैं एज।

अच्छा।

पर इस समय तुम्हें यहां नहीं होना चाहिए।

मगर क्यों?

तुम नहीं समझोगे। खैर, लाओ तुम्हारी मदद कर देता हूं। उसने मेरी मदद की और जो काम समयखाने वाला था वो शीघ्र ही मजे के साथ हो गया। नोबल ने कई मजेदार बातें बताईं और किस्से सुनाए। हम दोनों ही इस बात से अंजान थे कि ये मजा कुछ समय का ही मेहमान है।

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