Menu
blogid : 25810 postid : 1371185

अर्चना: द एम्प्रेस ऑफ इंदौर अंडरवर्ल्ड

AjayShrivastava's blogs
AjayShrivastava's blogs
  • 45 Posts
  • 9 Comments
अर्चना: द एम्प्रेस ऑफ इंदौर अंडरवर्ल्ड
वक्त वो शह है जिस पर कोई फतह हासिल नहीं कर सका। सैंकड मिनटों में, मिनट-घंटों में, घंटे- दिनों में, दिन महीनों, महीनों सालों, सालों दशकों, दशक शताब्दियों में बदलते जाएंगे। हम और आप भी न रहेंगे पर ये दास्तान हमेशा रहेगी। भले ही कोई सुने या न सुने। 90 का दशक था। इंदौर शहर के एक बदनाम क्लब में से देर रात एक व्यापारी अपनी कार में घर लौट रहा था। क्लब में आकर्षित करती मादक देहों और शराब के नशे ने उसकी भूख को जगा दिया था। वो भूख जो कभी नहीं मिटती और बासी दाल से लेकर छप्पनभोग तक सभी पर समान रूप से टूट पड़ती है।व्यापारी कार लेकर जा ही रहा था कि सड़क के किनारे सुनसान में उसने एक लड़की को अकेले खड़े देखा। सुंदर, सुघड़, मादक देह और इस तरह उसकी मौजूदगी ने व्यापारी का रहा-सहा धैर्य भी तोड़ डाला। वो कार लेकर उसके पास पहुंचा। उससे जानना चाहा कि क्या वो उसके साथ चलने को राजी है। पैसे की बात ही क्या है? वो जो चाहेगी वो दे देगा। वो लड़की कार में आ गई। कार को ड्राइवर चला रहा था व्यापारी पीछे बैठा था वो उसके पास बैठ गई। कार चली तभी एक आदमी और वहां आया और कार के ड्राइवर को हटाकर खुद कार चलाने लगा। लड़की ने रिवाल्वर निकाला और व्यापारी को चेताया कि अगर वो भागने की कोशिश करता है तो मारा जाएगा। व्यापारी डर गया। अब उसे समझ में आया कि उसका अपहरण हो चुका था। इस व्यापारी का नाम था जगदीश मोतीरमानी जिसका शराब और ट्रांसपोर्ट का कारोबार था।पर किस्मत हमेशा साथ नहीं देती। कार रेड सिग्रल पर रुकी। लड़की का ध्यान बंटा और व्यापारी कार से निकलकर भाग गया।इस मामले की जांच की गई तो जो सच सामने आया वो चौंकाने वाला ही नहीं पांव तले से जमीन निकालने वाला था।ये लड़की इंदौर के डार्क वल्र्ड यानी अंधेरी दुनिया या कि कहें अंडरवल्र्ड की सबसे पहली महिला डॉन थी जिसका नाम था अर्चना शर्मा।
अर्चना शर्मा की पैदाइश और पालनपोषण उज्जैन जैसे धार्मिक और छोटे शहर में हुआ था। रिटायर्ड कॉन्सटेबल बालमुकुंद शर्मा की लाड़ली बेटी अर्चना के बारे में किसी को ये आभास ही नहीं था कि ये पूरे शहर ही नहीं पूरे राज्य को हैरत में डाल देगी। उज्जैन जैसे छोटे और व्यवसाय और बनावटी चमकदमक से दूर रहने वाले शहर में जन्म लेेने के बावजूद अर्चना एक बुलंद इरादों की ऊंचे ख्वाबों वाली लड़की थी। हालांकि वो एक कलाकार भी थी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती थी। वो चित्रकार थी और गाने की भी शौकीन थी। सीता का किरदार उसे बेहद प्रिय था सो वो उस किरदार को रामलीलाओं में निभाया करती थी। युवा होने पर केंद्रीय विद्यालय में दाखिल होने के बाद उसे न जाने क्यों पढ़ाई छोड़ दी और पुलिस सेवा के लिए परीक्षा दी। यहां वो नौकरी पाने में सफल हुई और नौकरी उसे मिल गई पर वो इस नौकरी से भी संतुष्ट नहीं हुई और उसे छोड़ दिया। इसके पीछे कारण ये बताया जाता है कि वो इस मेहनत के काम से परेशान थी जहां मेहनत तो थी पर उसके वो ख्वाब यहां कभी पूरे नहीं हो सकते थे जो उसने देखे थे।परिवार को उसका ये फैसला नागवार गुजरा और युवा अवस्था के भटकाव का शिकार हुई ये खूबसूरत लड़की अपने परिवार से सारे नाते-रिश्ते तोड़कर और घर छोड़कर चली गई। अब उसने अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए भोपाल में रिसेप्शनिष्ट की नौकरी कर ली। यहां कई लोग उसके संपर्क में आए और एक भाजपाई नेता से उसका प्रेम परवान भी चढ़ा पर ये किसी मुकम्मल अंजाम तक नहीं पहुंचा। यहां भी वो अपने ख्वाबों को पूरा नहीं कर सकती थी सो उसने अब मुंबई को अपनी कर्मस्थली बनाया। वो यहां आई और अभिनेत्री बनने का प्रयास किया जो सफल नहीं हुआ। उसने हार नहीं मानी और पॉप गायक बाबा सहगल की टीम की सदस्य बनी। वो गैंगस्टर फिल्म से भी जुड़ी। उसकी ख्वाहिश एक अभिनेत्री और गायिका बनकर बी-टाउन पर छा जाने की थी, जो वो कर भी सकती थी, पर जो हुआ वो सही तो कतई नहीं था। शायद वो संघर्ष करने के बजाए शार्टकट्स पर ज्यादा भरोसा करती थी। अर्चना यहां बनने कुछ और आई थी पर बन कुछ और ही गई। बाबा सहगल की टीम के साथ वो खाड़ी के देश पहुंची। यहां उसका एक अहमदाबाद के व्यापारी से प्रेम प्रसंग चला। ये व्यापारी की दीवानगी ही थी कि मामला शादी तक पहुंच गया पर यहां भी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। ये बात खत्म हो गई। इसके बाद वो सूत्रों के अनुसार दुबई पहुंची। यहां वो डॉन अनीस इब्राहिम की टीम के संपर्क में आई और उसकी टीम का हिस्सा बन गई।
अनीस बदनाम भगोड़े दाउद इब्राहिम का भाई था। अर्चना, अनीस की जिस चकाचौंध भरी जिंदगी से वो प्रभावित हुई थी अब वो उसके पीछे पसरे अंधकार से परिचित हुई। वो यहां घुटन महसूस करने लगी और घबरा गई। यहां उसे साथ मिला उसके पागल प्रेमी ओमप्रकाश बबलू का।
ओमप्रकाश उर्फ बबलू, जिसकी कु-ख्याति बबलू श्रीवास्तव के नाम से थी। वो अर्चना को बेहद प्यार करने लगा। जिंदगी के लिए सांस की तरह बबलू के लिए अर्चना बन गई। वो उसके प्रति पजेसिव भी हो गया और उसके लिए अपने ही लोगों से लडऩे भी लगा। बबलू उसे लेकर नेपाल आ गया। एक नए ख्वाब की तलाश में। अर्चना न जाने क्यों इस प्यार से भी संतुष्ट नहीं हुई और कई और लोगों के करीब हो गई। हालांकि बबलू की चाहत ने ये भी गवारा कर लिया। अर्चना ने बबलू की पजेसिव कैद से छुटकारा पाने और एक लंबी जुगत लगाने की सोची। उसका जादू अब नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता दिलशाद बेग पर चढ़कर बोलने लगा और उसने बबलू श्रीवास्तव को अर्चना से दूर करने के लिए उसे ठिकाने लगाने का मंसूबा पाल लिया।सन् 1994, बबलू श्रीवास्तव के गिरफ्त में आने के बाद वो उसके पीछे भारत आ गई और उसका सिंडीकेट संभाल लिया। अब वो अपहरण करने के साथ ही हत्या और न जाने कितने ही अपराधों में संलग्र हो गई। उद्योगपति गौतम अडानी के अपहरण में भी इसका हाथ बताया जाता था। बबलू को यहां पता चला कि दिलशाद अर्चना के काफी करीब आ चुका है। शायद उसका निर्वासित न होना इसी का परिणाम है।सन् 1998 में दिलशाद को छोटा राजन के शूटरों ने मार गिराया। बबलू की ताकत कम होती देख वो वापस नेपाल चली गई और वहां के डॉन फजल-उल-रहमान के साथ काम करने लगी। अब वापस लौट आते हैं व्यापारी की कहानी पर, व्यापारी का अपहरण करने के बाद ये लेडी डॉन चर्चा में आगई। अब इसको और इसके संपर्कों को लेकर जांच शुरू हुई। अर्चना शर्मा का कनेक्शन गैंगस्टर हिन्दूसिंह यादव के साथ मिला। हिन्दूसिंह यादव मध्यप्रदेश का कुख्यात अपराधी था जो राजगढ़ में शराब के अड्डे पर पुलिस दबिश के बाद भाग निकला था। कुछ राज्यों में सर्वाधिक वांछित अपराधी था और जाली भारतीय मुद्रा चलाने के मामले में पुलिस के निशाने पर था।ये मामला एक शराब व्यापारी का और हाईप्रोफाइल हो जाने से सुलझाया ही जाना था। जैसे-जैसे तह खुलती गईं मामला स्पष्ट होता गया। अब अर्चना नेपाल में थी और एक वांछित अपराध बन चुकी थी। मोतीरमानी का अपहरण कर बड़ी राशि मांगने के साथ ही पैसे के खुले मैदान इंदौर सहित पूरे मध्यप्रदेश में अपनी धाक जमाना भी उसका इरादा था, जो असफल हो चुका था।डॉन को तो दस देशों की ही पुलिस ढूंढ रही थी लेकिन इंदौर अपराध जगत की इस बेताज मल्लिका के विरूद्ध पूरे चालीस देशों में अलर्ट जारी था। अर्चना की खासियत कहें या अदा कि जो उसके करीब जाता था तुरंत ही उसके वशीकरण में आ जाता था।
सन् 2010 एक अजीब सी खबर आई कि अर्चना को बांग्लादेश में गोली मार कर मार दिया गया है। क्या वास्तव में अर्चना ने इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा ले ली? इस बात को अभी तक कोई पचा नहीं पाया है।अर्चना में लोगों को न जाने क्या-क्या दिखा, एक ऊंचे मनसूबों वाली लड़की जो आगे बढऩे के लिए किसी भी तरह का समझौता कर सकती है, एक अपराधी, पर कोई उसके अंदर एक भटकी हुई लड़की को नहीं देख सका। क्या कभी उसका मन वापस लौटने को हुआ? क्या कभी उसने सोचा कि काश, मैं ये जिंदगी फिर से शुरू कर सकती। माता-पिता के प्यार और भाई-बहन के आत्मीय रिश्तों के साथ। फिर से एक कलाकार के रूप में , एक ऐसी जिंदगी जिससे वो न खुद ही संतुष्ट हो बल्कि दूसरे भी उस पर गर्व कर सकें। शायद, नहीं , खैर एक असफल बेटी-बहन, एक असफल कलाकार जिसकी कला को पूछपरख नहीं मिली या कि वो संघर्षों से डर गई, एक प्रेमिका जिसका प्यार न जाने क्यों दुर्भाग्य में खोगया। अर्चना बिना संघर्षों की आंच में तपे वो सबकुछ पाना चाहती थी जिसकी उसको दिलीख्वाहिश थी पर शार्ट्कट्स का रास्ता आसान भले ही हो पर वो बर्बादी की ओर ही जाता है, अर्चना को देखकर तो यही लगता है। अर्चना इंदौर की सबसे पहली लेडी डॉन के रूप में प्रसिद्ध हुई।वक्त वो शह है जिस पर कोई फतह हासिल नहीं कर सका। सैंकड मिनटों में, मिनट-घंटों में, घंटे- दिनों में, दिन महीनों, महीनों सालों, सालों दशकों, दशक शताब्दियों में बदलते जाएंगे। हम और आप भी न रहेंगे पर ये दास्तान हमेशा रहेगी। भले ही कोई सुने या न सुनेअपहरण से बचा व्यापारी कुछ दिन डर के मारे अपनी अय्याशियों से दूर रहा फिर वो वापस प्यासे की तरह कुख्यात अड्डों पर लौट गया। जिंदगी तब भी चल रही थी अब भी चल रही है और आगे भी चलती रहेगी पर हम दुआ करते हैं कि अब कोई लड़की अर्चना न बने।

3वक्त वो शह है जिस पर कोई फतह हासिल नहीं कर सका। सैंकड मिनटों में, मिनट-घंटों में, घंटे- दिनों में, दिन महीनों, महीनों सालों, सालों दशकों, दशक शताब्दियों में बदलते जाएंगे। हम और आप भी न रहेंगे पर ये दास्तान हमेशा रहेगी। भले ही कोई सुने या न सुने। 90 का दशक था। इंदौर शहर के एक बदनाम क्लब में से देर रात एक व्यापारी अपनी कार में घर लौट रहा था। क्लब में आकर्षित करती मादक देहों और शराब के नशे ने उसकी भूख को जगा दिया था। वो भूख जो कभी नहीं मिटती और बासी दाल से लेकर छप्पनभोग तक सभी पर समान रूप से टूट पड़ती है।व्यापारी कार लेकर जा ही रहा था कि सड़क के किनारे सुनसान में उसने एक लड़की को अकेले खड़े देखा। सुंदर, सुघड़, मादक देह और इस तरह उसकी मौजूदगी ने व्यापारी का रहा-सहा धैर्य भी तोड़ डाला। वो कार लेकर उसके पास पहुंचा। उससे जानना चाहा कि क्या वो उसके साथ चलने को राजी है। पैसे की बात ही क्या है? वो जो चाहेगी वो दे देगा। वो लड़की कार में आ गई। कार को ड्राइवर चला रहा था व्यापारी पीछे बैठा था वो उसके पास बैठ गई। कार चली तभी एक आदमी और वहां आया और कार के ड्राइवर को हटाकर खुद कार चलाने लगा। लड़की ने रिवाल्वर निकाला और व्यापारी को चेताया कि अगर वो भागने की कोशिश करता है तो मारा जाएगा। व्यापारी डर गया। अब उसे समझ में आया कि उसका अपहरण हो चुका था। इस व्यापारी का नाम था जगदीश मोतीरमानी जिसका शराब और ट्रांसपोर्ट का कारोबार था।पर किस्मत हमेशा साथ नहीं देती। कार रेड सिग्रल पर रुकी। लड़की का ध्यान बंटा और व्यापारी कार से निकलकर भाग गया।इस मामले की जांच की गई तो जो सच सामने आया वो चौंकाने वाला ही नहीं पांव तले से जमीन निकालने वाला था।ये लड़की इंदौर के डार्क वल्र्ड यानी अंधेरी दुनिया या कि कहें अंडरवल्र्ड की सबसे पहली महिला डॉन थी जिसका नाम था अर्चना शर्मा।

अर्चना शर्मा की पैदाइश और पालनपोषण उज्जैन जैसे धार्मिक और छोटे शहर में हुआ था। रिटायर्ड कॉन्सटेबल बालमुकुंद शर्मा की लाड़ली बेटी अर्चना के बारे में किसी को ये आभास ही नहीं था कि ये पूरे शहर ही नहीं पूरे राज्य को हैरत में डाल देगी। उज्जैन जैसे छोटे और व्यवसाय और बनावटी चमकदमक से दूर रहने वाले शहर में जन्म लेेने के बावजूद अर्चना एक बुलंद इरादों की ऊंचे ख्वाबों वाली लड़की थी। हालांकि वो एक कलाकार भी थी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेती थी। वो चित्रकार थी और गाने की भी शौकीन थी। सीता का किरदार उसे बेहद प्रिय था सो वो उस किरदार को रामलीलाओं में निभाया करती थी। युवा होने पर केंद्रीय विद्यालय में दाखिल होने के बाद उसे न जाने क्यों पढ़ाई छोड़ दी और पुलिस सेवा के लिए परीक्षा दी। यहां वो नौकरी पाने में सफल हुई और नौकरी उसे मिल गई पर वो इस नौकरी से भी संतुष्ट नहीं हुई और उसे छोड़ दिया। इसके पीछे कारण ये बताया जाता है कि वो इस मेहनत के काम से परेशान थी जहां मेहनत तो थी पर उसके वो ख्वाब यहां कभी पूरे नहीं हो सकते थे जो उसने देखे थे।परिवार को उसका ये फैसला नागवार गुजरा और युवा अवस्था के भटकाव का शिकार हुई ये खूबसूरत लड़की अपने परिवार से सारे नाते-रिश्ते तोड़कर और घर छोड़कर चली गई। अब उसने अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए भोपाल में रिसेप्शनिष्ट की नौकरी कर ली। यहां कई लोग उसके संपर्क में आए और एक भाजपाई नेता से उसका प्रेम परवान भी चढ़ा पर ये किसी मुकम्मल अंजाम तक नहीं पहुंचा। यहां भी वो अपने ख्वाबों को पूरा नहीं कर सकती थी सो उसने अब मुंबई को अपनी कर्मस्थली बनाया। वो यहां आई और अभिनेत्री बनने का प्रयास किया जो सफल नहीं हुआ। उसने हार नहीं मानी और पॉप गायक बाबा सहगल की टीम की सदस्य बनी। वो गैंगस्टर फिल्म से भी जुड़ी। उसकी ख्वाहिश एक अभिनेत्री और गायिका बनकर बी-टाउन पर छा जाने की थी, जो वो कर भी सकती थी, पर जो हुआ वो सही तो कतई नहीं था। शायद वो संघर्ष करने के बजाए शार्टकट्स पर ज्यादा भरोसा करती थी। अर्चना यहां बनने कुछ और आई थी पर बन कुछ और ही गई। बाबा सहगल की टीम के साथ वो खाड़ी के देश पहुंची। यहां उसका एक अहमदाबाद के व्यापारी से प्रेम प्रसंग चला। ये व्यापारी की दीवानगी ही थी कि मामला शादी तक पहुंच गया पर यहां भी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। ये बात खत्म हो गई। इसके बाद वो सूत्रों के अनुसार दुबई पहुंची। यहां वो डॉन अनीस इब्राहिम की टीम के संपर्क में आई और उसकी टीम का हिस्सा बन गई।

1441479974-1113अनीस बदनाम भगोड़े दाउद इब्राहिम का भाई था। अर्चना, अनीस की जिस चकाचौंध भरी जिंदगी से वो प्रभावित हुई थी अब वो उसके पीछे पसरे अंधकार से परिचित हुई। वो यहां घुटन महसूस करने लगी और घबरा गई। यहां उसे साथ मिला उसके पागल प्रेमी ओमप्रकाश बबलू का।

39080658ओमप्रकाश उर्फ बबलू, जिसकी कु-ख्याति बबलू श्रीवास्तव के नाम से थी। वो अर्चना को बेहद प्यार करने लगा। जिंदगी के लिए सांस की तरह बबलू के लिए अर्चना बन गई। वो उसके प्रति पजेसिव भी हो गया और उसके लिए अपने ही लोगों से लडऩे भी लगा। बबलू उसे लेकर नेपाल आ गया। एक नए ख्वाब की तलाश में। अर्चना न जाने क्यों इस प्यार से भी संतुष्ट नहीं हुई और कई और लोगों के करीब हो गई। हालांकि बबलू की चाहत ने ये भी गवारा कर लिया। अर्चना ने बबलू की पजेसिव कैद से छुटकारा पाने और एक लंबी जुगत लगाने की सोची। उसका जादू अब नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता दिलशाद बेग पर चढ़कर बोलने लगा और उसने बबलू श्रीवास्तव को अर्चना से दूर करने के लिए उसे ठिकाने लगाने का मंसूबा पाल लिया।सन् 1994, बबलू श्रीवास्तव के गिरफ्त में आने के बाद वो उसके पीछे भारत आ गई और उसका सिंडीकेट संभाल लिया। अब वो अपहरण करने के साथ ही हत्या और न जाने कितने ही अपराधों में संलग्र हो गई। उद्योगपति गौतम अडानी के अपहरण में भी इसका हाथ बताया जाता था। बबलू को यहां पता चला कि दिलशाद अर्चना के काफी करीब आ चुका है। शायद उसका निर्वासित न होना इसी का परिणाम है।सन् 1998 में दिलशाद को छोटा राजन के शूटरों ने मार गिराया। बबलू की ताकत कम होती देख वो वापस नेपाल चली गई और वहां के डॉन फजल-उल-रहमान के साथ काम करने लगी। अब वापस लौट आते हैं व्यापारी की कहानी पर, व्यापारी का अपहरण करने के बाद ये लेडी डॉन चर्चा में आगई। अब इसको और इसके संपर्कों को लेकर जांच शुरू हुई। अर्चना शर्मा का कनेक्शन गैंगस्टर हिन्दूसिंह यादव के साथ मिला। हिन्दूसिंह यादव मध्यप्रदेश का कुख्यात अपराधी था जो राजगढ़ में शराब के अड्डे पर पुलिस दबिश के बाद भाग निकला था। कुछ राज्यों में सर्वाधिक वांछित अपराधी था और जाली भारतीय मुद्रा चलाने के मामले में पुलिस के निशाने पर था।ये मामला एक शराब व्यापारी का और हाईप्रोफाइल हो जाने से सुलझाया ही जाना था। जैसे-जैसे तह खुलती गईं मामला स्पष्ट होता गया। अब अर्चना नेपाल में थी और एक वांछित अपराध बन चुकी थी। मोतीरमानी का अपहरण कर बड़ी राशि मांगने के साथ ही पैसे के खुले मैदान इंदौर सहित पूरे मध्यप्रदेश में अपनी धाक जमाना भी उसका इरादा था, जो असफल हो चुका था।डॉन को तो दस देशों की ही पुलिस ढूंढ रही थी लेकिन इंदौर अपराध जगत की इस बेताज मल्लिका के विरूद्ध पूरे चालीस देशों में अलर्ट जारी था। अर्चना की खासियत कहें या अदा कि जो उसके करीब जाता था तुरंत ही उसके वशीकरण में आ जाता था।

heading_41196102सन् 2010 एक अजीब सी खबर आई कि अर्चना को बांग्लादेश में गोली मार कर मार दिया गया है। क्या वास्तव में अर्चना ने इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा ले ली? इस बात को अभी तक कोई पचा नहीं पाया है।अर्चना में लोगों को न जाने क्या-क्या दिखा, एक ऊंचे मनसूबों वाली लड़की जो आगे बढऩे के लिए किसी भी तरह का समझौता कर सकती है, एक अपराधी, पर कोई उसके अंदर एक भटकी हुई लड़की को नहीं देख सका। क्या कभी उसका मन वापस लौटने को हुआ? क्या कभी उसने सोचा कि काश, मैं ये जिंदगी फिर से शुरू कर सकती। माता-पिता के प्यार और भाई-बहन के आत्मीय रिश्तों के साथ। फिर से एक कलाकार के रूप में , एक ऐसी जिंदगी जिससे वो न खुद ही संतुष्ट हो बल्कि दूसरे भी उस पर गर्व कर सकें। शायद, नहीं , खैर एक असफल बेटी-बहन, एक असफल कलाकार जिसकी कला को पूछपरख नहीं मिली या कि वो संघर्षों से डर गई, एक प्रेमिका जिसका प्यार न जाने क्यों दुर्भाग्य में खोगया। अर्चना बिना संघर्षों की आंच में तपे वो सबकुछ पाना चाहती थी जिसकी उसको दिलीख्वाहिश थी पर शार्ट्कट्स का रास्ता आसान भले ही हो पर वो बर्बादी की ओर ही जाता है, अर्चना को देखकर तो यही लगता है। अर्चना इंदौर की सबसे पहली लेडी डॉन के रूप में प्रसिद्ध हुई।वक्त वो शह है जिस पर कोई फतह हासिल नहीं कर सका। सैंकड मिनटों में, मिनट-घंटों में, घंटे- दिनों में, दिन महीनों, महीनों सालों, सालों दशकों, दशक शताब्दियों में बदलते जाएंगे। हम और आप भी न रहेंगे पर ये दास्तान हमेशा रहेगी। भले ही कोई सुने या न सुनेअपहरण से बचा व्यापारी कुछ दिन डर के मारे अपनी अय्याशियों से दूर रहा फिर वो वापस प्यासे की तरह कुख्यात अड्डों पर लौट गया। जिंदगी तब भी चल रही थी अब भी चल रही है और आगे भी चलती रहेगी पर हम दुआ करते हैं कि अब कोई लड़की अर्चना न बने।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh