प्रतिबिम्ब
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नदी का किनारा
लहरों की हल-चल
सौन्दर्य प्यारा
रेत ही रेत
थोड़ी सी नम
हलकी सी चमक
पेड़ – पौधो की हरियाली
चीड़ियों की चह-च-आहट
नदी में सुन्दर सूर्य की किरण
और वहाँ
सिर्फ मैं …
मेरा प्रतिबिंम
और मेरी आत्मा
गीले रेत से
बना रहे एक ईमारत
एक लम्बी- ऊची ईमारत
ईमारत क्या है
यह तो हमारी मंजिल है
जिसे हम ईमारत का रूप दे रहे है
हमारी ईमारत तैयार हुई की
तेज लहर आई
उसे खत्म कर लौट गई
हम तीनो फिर से
नई ईमारत बनाने लगे
लहरे आती गई
ईमारत टूटती गई
और हम बनाते गए ||
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