- 64 Posts
- 33 Comments
नुमाइशो के पैमाने देखे,बढते मधुशाला के मयखाने देखे!! बदलाव के कितने फसाने देखे,सस्कृति का हास पश्चिमी को बढते देखा!! अश्रु का पाणी सूखा, शर्म के पर्दे छूटे!! निर्मल गंग धारा,मलहीन होते देखा।। वचपन लङकपन छूटा, वासना की वो सहमी देखी।। साया से डरता मन,पृतिद्वन्द खुद से करते देखा।। विश्वास पर घात पृतिघात,शब्दो के तीक्ष्ण वाण चुबते देखा।। संयुक्त की गाँठ छूटी,एकल को बढते देखा।। रिस्तो की वो कसक,तार तार होते देखा।। मन से छूट रहा मीत,मन माया का मीत देखा।। एक बूंद स्नेह की लालसा,गृह कलेश बार बार देखा।। धर्म का अस्तित्व छिन्न भिन्न,लाज को छोङ साथ मद्रापान देखा।। विवाह का वर्चस्व पर पृभार, एक साथ रहते देखा।। अपनी संस्कृति की नुमाइश ,पश्चिमी में खुद को पिघलते देखा।। नर नारी में भेद नहीं,सबकी नुमाइशे होते देखा।। इंसानियत की क्रू हैवानियत,खुद के अंश का भक्षण देखा।। धरा के अश्रु से बहते नीर,आकाँक्षा ने सिसकते देखा।। संस्कृति का अस्तित्व पर पृभार,इतिहास में दबते देखा।।
Read Comments