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मेरी यात्रा(हरिद्वार)

साहित्य दर्पण
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मेरी यात्रा दिल्ली के कश्मीरी गेट से आरम्भ हुई।जहाँ से देश के किसी भी जगह जाणे के लिए बस सेबा उपलब्ध होती हैं ।भीङ भाड का जमघट तो हर जगह मोजूदं रहता है,चाये वो रेलवे स्टेशन का प्लेट फार्म हो या बस स्टेशन हो।ये दो सेवाये आम जिदंगी की जीवन रेखा हे।अपने वजट में यात्रा का आंन्नद ले सकते है,वही एक अंजाना शा डर भी सताता हे कि ये यात्रा कही आखरी न हो,पर डर रफ्तार को रोकती नहीं हे बल्कि पहले की तरह चलती रहती हे।  हादसा या षडयन्त का जाल हो पर होशले को कोण रोक सकता हे।यात्रा सुखमय हो इसकी कामना करके घर से नीकळ पङते हे।में भी अंजाना शा डर लिए नीकळ पङे यात्रा के लिए,।                                                                                       हमने हरिद्वार जाणे वाळी बस की टिकट
ली,में तो बस यही देख रही थी कि लोग आ जा रहे थे।रात के 12:30बजे भी भीड वैसी ही थी मै अपने घर से मैटो की सेवा दुआरा कश्मीरी गैट पर करीब 9:30तक आ गये थे।यहाँ पर सब बस में अपनी अपनी बैठाने के लिए आतुर थे।गैर सरकारी बस भी  इस होड में थी ,यात्री गङ को पृभोलन दे रहे थे सब अपनी अपनी सेबा की खासियत बता रहे थे।आपको राजस्थान जाना हे ,फूल ऐसी लेटकर भी जा सकते हे या अपने लिए निजी सेबा दुआरा आंनद ले सकते हे।हमने कहाँ”हमें नहि जाना।’ पर पीछे पीछे काफी दूर तक आये ,मैने झटक कर आया ,जब मैंने मना कर दिया हे फिर क्यों बार बार पुछँ रहे हो? मुझे निजी वाहन के दुवारा यात्रा करना डर लगता हे क्योकि आये दिन अजीब अजीब घटनाये सुनते रहते हे ,यहाँ पर तो हम दो ही थे।मुझे गैर सरकारी साधन की जगह सरकारी बस में यात्रा करना जायदा भरोसा होता  हहै।सबके साथ यात्रा  में सुकून मिलता हे कोई अंजाना हादसा न हो इसका डर नहीं रहता फिर भी जो भगवान चाहेगा वही होगा पर अपनी तरफ से कोई गलती नहीं होनी चाहिए थी।इसी डर के साथ बस हरिदृवार के लिए पृस्थान हो गई।12:30 बज गये थे हृदय में भगवान नाम लिए कि कोई घटना न घटे और नाम लेते लेते कब नीद आ गई ,मै तो सो गई मेरे पत्ती कब सोये मुझे पता नहीं चला।जब हरिदृवार आया तब मुझे जगाया तब करीब 4:35 वजे होगे।दो बैग थे एक मैने और एक उन्होने ले लिया और चल पङे हरी की पोङी ।मैंने ही कहाँ था कि गंगा स्नान करके आगे की यात्रा करेगें।                                                                                        हरि  की पोङीं पर  भक्तो का जमघट था, स्नान करने के लिए आतुर थे।  पाणी बहुत ठण्डा था,पर जाणे कैसा एहसास था  पहले जाणे से डर  लग रहा था पर जब डुबकी लगाई तो फिर निकलने का मन नहीं कर रहा था। मन्दिरो में घटियों की जय आवाज से भक्त मय वातावरण हो गया  आरतियों की गूंज से कानो को एक अजब शा एहसास हो रहा था,सच कहूँ तो दुनिया की चिन्ता से मुक्त धर्मय का एहसास का पाठ समझ में आ रहा था क्या खास होता हे घर के पास बने मंन्दिर में और  शक्ति पीठ धाम में  हर तरफ फूलो की खुसबू अजब शी छटा बिखेर रही थी।गंगा तट पर सुबह की बंदना के लिए हाथो में पत्तो से बनी टोकरी उसमें फूल और दीपक लिए गंगा जी की बंदना कर रहे थे। बहुत मनोरमा दृश्य था जो अबी भी जब सोचती हूँ तो उसमें खो जाति हूँ,ऐसा पृतीत होता हे ये सब मेरी नजरों के सामने हे।कुछ ऐसे पल को यादों के हसीन किस्से हे यही तो जिदंगी के हिस्से हे ,इन्हे याद करके मुरझायें  चहरे पर एक अजब शी मुस्कान आ जाति हे।अच्छी यादों के बीच कुछ ऐसी यादें घर कर जाति हे जिससे माहोल गंदा हो जाता हे जिससे भक्तो के बीच कलह का वाता वरण पेदा कर देता हे।ऐसी घटना नहीं बल्कि ये तो  धंधा या कारोवार बना रखा हे।हमारे पास पंण्डितो को जमावडा उमङने लगा,-तुम दोनो नव विवाहित जोडा हो शान्ती के लिए पूजा करवा लो। घर पर कोई आपत्ति या विपता नहीं आयेगी।बारी बारी से कही पण्डितं आये हर बार एक नई विपता  का निवारण करने।मुझे ऐसा लगा जैसे सीधे भगवान  से सम्पर्क हो,सही शब्दो में कहा जाये तो भगवान के दुआरपाल हो,आज का दोर कलयुग का हे उसने अपने फन्दे हर जगह फंसा रखा हे तो फिर मंन्दिर या तीर्थ स्थल कैसे अछूता रह सकता हे।यहाँ पर तो खुलेआम घूस का खेल चलता हे फर्क इतना हे यहाँ गृह नछत्रो का ,घर पर विपता ,पूर्वजो का साया आदि का सहारा लेकर,सच कहे तो भगवान का सहारा लेकर घूस ली जाति हे।मेरा भी मन नहीं माना तो मैंने भी पूजा  करवानी चाही तो अब मोल भाव सुरू हो गया,पहले तो पूजा करने के 1001 रूपये माँग रहा था । मेरे पत्ती और पण्डित का मोल  भाव सुरू हो गया ,ऐसा लग रहा था मानो कोई सब्जी खरीद रहे हो,आखिर 101 पर  पूजा सुरू हुई ,ये भी नहीं चला सुरू कब हुइ और खत्म कब हुई।इन्होने कहाँ इनका ही धंधा अच्छा हे बस दो चार मंत्र सीख लो और कमाई कर लो।व्यक्ति को अच्छे से डरा दो तो वो शान्ती के लिए पूजा तो करेगा,करना कुछ नहीं हे आमदनी बहुत होगी।वाह! भगवान तेरे नाम पर लुटेरे की कमी नहीं हे ,अभी सुरूआत हुई हे और क्या क्या देखना होगा।                                                                                     हमें जाना था बद्रीनाथ उसके लिए यहाँ से 5बजे बस जाति हे वो तो जा चूकी थी क्योकि यहाँ से चङाई सुरू हो जाति हे और दिन में ही  यात्रा की जाति हे रास्ता कठिन हो जाता हे।दूरी भी बहुत हे चारो धाम की इसलिए सुबह से शाम तक पहुँच पाते हे। बस तो जा चूकी थी जीप भी जाति थी हम भी बैठ गये और भी व्यक्ति बैठे थे वो लोग तीर्थ यात्री नहीं थे,वो तो अपने घर जा रहे थे ।एक जोडा अपनी छुट्टियो में अपने घर जा रहा था जैसे हम घूमने जा रहे थे। हमें तो खाई में देखने से डर लगता हे और चालक अपनी चतुराई से थोडी शी जगह में कैसे वाहन निकाल लेता हे।हम सब की डोर चालक के हाथो में हे उसका एक गलत फैसला हम सबको मोत के करीब पहुँचा देगा।जैसे जैसे उपर जाते जा रहे थे अद्भुत अनुपम दृश्य सुरू हो गया। पहाडियो के पीछे पहाडियाँ  बहुत सुंन्दर लग रही थी ,ऐसा लगता था मानो हम पहाडियों के करीब पहुँच के अभी छू लेगे फिर से न जाणे नई पहाडियाँ सुरू हो जाति हे।पहाडियों पर बने घर कितने सुंदर लगते हे जैसे बाग में खिले रंग बिरगे फूल हो जैसे।पहाङ पर रहने वाले व्यक्ति कितने मेहनती होते हे।पुरुष स्त्री दोनो ही मेहनती होते हे।सीङी नुमा खेती करते हे गाय के लिए चारा भी पीठ पर रखकर लाते हे। पृकृति की गोद में हीरे भरे पङे हैं पर कोई जान नहीं पाता कि उसके पास क्या हे जो औरो के पास नहि हे जैसे कुदरती सुंदरता का एहसास तो पहाङो की वादियो में होता हे ,वहा वनावटी सुंदरता से अपना घर सजाते रहते हे।हम तरह तरह की वेल फूल पत्ती से घर को सजाते हे पर वो सौदंर्य से वंचित रहते हे जो हमें पृकृति सौदंर्य का साक्षातकार तो यहाँ देखने को मिलता हे।मन मुग्ध हो जाता हे एक टक इसको देखते ही रहते हे कब मीलो का सफर कट जाता हे पता ही नहीं चलता।

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