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मैं कविराज नहीं हूँ

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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मैं कविराज नहीं हूँ,
कलम का आधार हूँ!!
शब्दो का सरगम हूँ,
हर हृदय की आस हूँ!!
दृष्टि से छुपे जो अंश,
कर देता हूँ साकार!!
लुप्त हुई जिसकी आवाज,
वल दे हो जायें अभय!!
मैं कविराज नहीं हूँ,
कमल का हूँ आधार!!
निर्जीव सर्जीव की जान,
लिख दे हो जायें पहचान!!
असाय निर्भय का वल,
बन जाता हूँ अस्त्र !!
साहस हो रहा छिन्न2,
भर देता हूँ ऊर्जा का संचार!!
मैं कविराज नहीं हूँ,
कलम का हूँ आधार!!
शून्य हो जिसका कोष,
भर देता हूँ सागर!!
जीना जिसने छोङ दिया,
सपना दिखा कर देता हूँ सच!!
बिखरे पुष्पो का अंश,
दे देता हूँ उसका महत्व!!
मैं कविराज नहीं हूँ,
कलम का हूँ आधार!!
इतियास का जो छूटा पृष्ठ,
उसका बढाता हूँ मान!!
सच झूठ का पर्दा,
मे बेखोप हूँ उठाता!!
हर हृदय की बनके आवाज,
जर्रे जर्रे में हूँ पहुँचाता!!
मैं कविराज नहीं हूँ ,
कलम का हूँ आधार!!
मिलाप विलाप की वृर्था,
रमणीय हो जाता हूँ चंचल!!
ग्रंथो मे बस जाता हूँ,
शब्दो का हूँ सरगम!!
युग आते और जाते हैं,
कर जाता हूँ अमर!!
कवि खुद अपनी क्या कहता,
सबके सपनो में बसता!!
मैं कविराज नहीं हूँ,
कलम का हूँ आधार!!
शब्दो का सरगम हूँ ,
सबके हृदय में बसता!!
आकाँक्षा का क्या अस्तित्व?
मैं कलम का हूँ शारासं!!

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