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साहशी सीमा saty कहानी

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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गर्म लू क़े थपेङे बदन में सुई चुबो रहे है । बार बार गला ऐसा सूखता है जैसे प्यासा हो कुआँ।ऐसे ब्याकुल प्यास मैं ठण्डा पानी मिल जाए तो अम्रत के समान देव दानव मै कलह हुआ था, उस दृश्य का यहाँ साक्षात्कार हो जाता हैं। ग़ांव मै गला तर करने का माध्यम सुराई या मटका ही होते हैं। जहाँ सुयंक्त परिवार के सदस्य की सख्या 20 से 25 के करीव हो ओर छोटे बच्चे हो तो उस घऱ मैं पानी को लेकर वाद विवाद होता ही रहता हैं। दिन भर 4 से 5 वार मटका पानी से भरा जाता हो ,वहाँ पानी ठण्डा पानी कैसे हो सकता हैं। जितने सदस्य उतने हाथ बार बार खोलना बंद करना इस कारण पानी ठण्डा नहीं हो पाता हैं। एक कारण डंडी वाले लोटे से न लेकर सीधे हाथ डालकर पानी लेना ,बच्चे तो खैर लड़कपन मे होते है समझाओ भूल जाते हैं पर बड़े ऐसी लापरवाई करते हैं तो उनको कोन समझाए। औरते वार वार कहती पर आदत से मज़बूर जो है। इस जेठ गरमी मैं मटके के पानी से अच्छा तो हैंडपम्प का पानी जयादा ठण्डा लगता हैं। ये स्थति हर ग़ांव मे देखने को मिल जायेगी। दोपहर के समय सब किसी न किसी कार्य में संगलन रहते हुये ,ग़ांव मैं देख सखते है। युवक से लेकर बढ़े बुज़र्ग़ तक ताश के पत्तो में जमघट में मिल जायेंगे। कही दहला पकड़ ,कही शीप ,तीन पत्ती ,ओर कही तरह के खेल खेले जाते है। जोश होश वहश,गरमा ,गरमी के साथ अन्य दर्शकों के लिये मंनोरंजन का मुफ़्त साधन मिल जाता हैं । ताश के खेल में महिलाओं के बीच बादशाह पकड़ का खेल बहुत लोकप्रिय हे। जिसकी तरुप हो तो सामने वाला इशारों से जानने लग जाता हे कि इक्का किधर है ?अपने साथी के पास इक्का हो तो बादशाह किधर हैं ?इशारों से चाल चली जाती है ये भी कला हे,जो इस खेल को समझ जाता है वो बादशाह बन जाता हे नही तो एक्के के हाथों बादशाह पकड़ता रहता है। जिन महिलाओं युवतियों को ताश खेलने का सोख नहीं होता हे उनकी अलग ही महफ़िल जुड़ी मिल जायेगी। उस महफ़िल में गढ़े मुरदे बाते,आज़ की बाते ,उसकी बाते इसकी बाते,हर गाँव की ख़बर तार बाबू के माध्यम से पता चल जाता हे। ये कोई चिठ्ठी पत्री बाटने वाला तार बाबू नहीं जो सब तरह की ख़बर रखें उसको तार बाबू संज्ञा दी जाती है। इस महफिल की सबसे रोचक बात या क़िस्सा किसका लड़का किसकी लड़की क़ो लेकर भाग गया। ऐसी ख़बर इस माहोल की जान हैं। छोटे छोटे बच्चों को माँ डरा धमकाके दोहपहर को सोने क़ो कहती हे पर ऐसी गरमी मैं जिसको नींद आती हे वो ऎसे ही सो जाते हे पर बच्चे फुदक फुदक के वाहर भाग जाते हे। माँ डाँटती रह जाती हे। इन सबसे अलग एक अनहोनी घटना घटने को आतुर थीं,जिसका कोई सपने में भी जिक्र नहीं करता हैं। नकारात्मक पहलुओं क़ो विपताओ से घिरे हुए दृश्यों क़ो जागती आँखो से सपना नहीं देखते हे। जागती आँखो से सपनों को अपने मुताबिक साँचे में डाल लेते हे और खोये चित में खो जाते है। रात को बंद आँखों से अनय सपनों में जो दृश्य आते हे वो हमारे मुतावक नहीं ,अपना कोई नियन्त्रण नहीं होता है। आते हुई है जिसका हमने कभी न कभी किसी किसी रूप में अवलोकन किया हो ,चाये चलचित्र के माध्य्म से या किसी के दुवारा कथन कहे हुए ही सपनों के माध्य्म से रात को आते है। जानकर हम कभी नकारात्मक सपनों को जागती आँखों से नही देखना चाहते है या बंद आँखों से दर्शन हो भी जाए तो डर से शरीर में प्रतिक्रयाए शुरू हों जाती है। डर इतना भयानक होता है कि सर्दी में पसीने में लथपथ ,यहाँ तक देखा गया हे कि विस्तर गीला हो जाता है। आवाज़ लगाना चाहते हे पर आवाज निकलती नही हे,ऐसा लगता हे किसी ने दवा रखा हो। जो अपने आप क़ो सर्वशक्तिमान समझते है या दिखलाते है उन सब की दशा भी इससे बच नही पाती है। रात के सपनों पर ज़ोर नही हे ये तो आते हे और आते रहेंगे। दोहपर का समय सूरज की गरमी से सब बेहाल परेशान ,माथे पर पसीना ,बदन पर पसीना आना ,वार वार प्यास लगना इन सब के वावजूद सब अपने आप को किसी न किसी कार्य में व्यस्त रखें हुऐ थे। घर में शादी की तैयारी जोर शोर से चल रही है। सबसे महत्वपूर्ण काम खरीददारी और निमन्त्रण पत्र लिखना होता है। निमन्त्रण पत्र छप चुके थे .,लिस्ट बनाई जा रही है ,जिन मेहमानों की लिस्ट बन चुकी थी ,उनके नाम से निमंत्रण पत्र पूर्ण लिखे जा रहे थे और याद रहे इसलिए लिस्ट पर टिक किए जाते। इसी बीच भूल चूक मेहमानों का नाम याद आ जाता तो उसका नाम लिस्ट में अंकित कर लिया जाता। भूल से कोई मेहमान छूट जाये ,तो वो मेहमान ता उर्म भर दोष रोपण देते रहते हे ‘आप ने हमको शादी में बुलाया भी नही ‘..और न जाने कैसे कैसे मनगनत कहानी बताते रहते हे। सबसे खाश बात अमीरी गरीबी पर आके ठहर जाती हे,,सामने वाले को यही शक रहता हे इसी कारण से नही बुलाया हैं । बात तो कोई भी हो सकती है। सब स्वतन्त्र हे अपना मन हे कुछ भी सोच सकते है। नये रिस्ते मिल जाते हे तब पुराने रिस्तो को कोन पूछंता है। नये रिस्ते चमाचम बर्तन हे जिनको सहेज कर रखा जाता हे पुराने बर्तन पुराने रिस्ते की तरह हे जिनकी कोई कदर नही करता है। इनको कोन समझाये पुराने रिस्ते कभी नये भी तो थे। वक्त के साथ सब कुछ बदलता है। शादी का रिस्ता बहुत ही रख रखाव का होता हे छोटी सी भूल चूक,,,,,उम्रभर कहने और सुनने को घाव दिए बात हो जाती हे जो वक्त के साथ घाव तो भर जाते हे पर निसान याद दिलाते रहते है। जिसकी शादी तय हुई थी ,उसका नाम सीमा है। छोङ पढ़ाई में बाकी हर काम में होशियार है। चंचल स्वभाव तितली की तरह सबको मोहने बाली ,,,,,डरना तो जानती ही नही क्या होता है ?हर काम को सीखने की इच्छा होसला ओर बढ़ाती। घर में राइफल को ताकना ही नही बल्कि सबकी नज़रो से चुपके चोरी चोरी मेगनीज को निकालना फिर लगाना।,..भाई जब राइफल को नली ड़ालकर साफ करते तो गोर से देखती थी,…. भाई ने जब देखा तो कहा ‘सीमा चलायेगी ‘ये सुना तो जैसे मन मुराद पूरी हो रही हो जो इच्छा थी एक वार घोड़ा दवा के देखू कि सुना हे झटका लगता हैं । राइफल चलाना एक कौशल हे बिना अनुभव लिए राइफल चलाना ख़तरे से खाली नही है। राइफल को चलाने का सही तरीका कन्धे पर रख कर चलाई जाती हे ,पकङ को मजबूत बनाके रखनी होती हे। पकङ मजबूत न होगी तो खुद चोट लग जायेगी क्योकि पीछे की और धक्का देती है। सीमा राइफल चलकर गद गद हो उठी ,जब अपने मुताबिक कोई काम पूर्ण हो जाये तो खुश हो जाती। रूपवती तो हे ,भाई की चहकती बहन है जिसका दुलार से ललिया ललिया कहकर पुकारते है। घर पर ही नही गाँव में भी निडर के चर्चे मशहूर है। पुलिस का भी डर नही हे फिर चाये किसी को पुलिस से बचना हो। किसी गलत इरादे से नही पुलिस पकङ के ले जाती तो उस व्यक्ति को खुद को जमानत देने का मौका नही मिल पाता है जिसको बेवजह गेंहू के साथ घुन होंने की सजा जो मिलती है। खुद थाने में हाजिर होक जमानत की व्यवस्था जो कर लेता है। गाँव में प्रधान चुनाव का माहोल बहुत ही रोचक होता है। इसकी तैयारी एक साल पहले से सुरू हो जाती। अपने वोटर और विपक्ष के वोटर का आंकलन किया जाता हे। अपने पक्ष के वोट बढ़ाना और विपक्ष के वोट काटना,. ये गाँव की प्रधान राजनीति का अहम हिस्सा है जिससे ही हार जीत का फैसला होता है। बिधायक अगर गाँव का आस पास का हो तो कोई अन्य तो जीत ही नही सकता। विधायक जिसको चायेगा वही जीतेगा फिर चाये कितनी नीचता पर क्यों न आ जाये। पुलिस वालो ने अपनी हक़ीक़त दिखला ही दी कि हम विधायक के टन्टू है। गाँव वालो की रजा से भाभी प्रधान चुनाव में जो खङी थी पर विधायक नही चाहता था कि जीते इसलिय पुलिस को टन्टू बनाकर रात में अपशव्द के साथ जाने कैसे बाते कहते ताकि चुनाव में बैठ जाये। रोज रात का नियम था आखिर कब तक चुपचाप सुने। एक रात सीमा ने बेधड़क जवाव दे ही दिया ,’आखिर तुम्हारा क्या बिगड़ा हे जो ऐसे शब्द कहते हो ,तुम्हारी टन्टू जैसी हरकतो के कारण कोई मान सम्मान नही देता हे। तुमको तो गेरतली के पेदे के समान हे जो मौका देखकर उसकी तरफ़ झुक जाते हो । थोड़ी सी तो वर्दी का सम्मान करो ,हमे कुछ कहने से कुछ नही होगा ,,,,चुनाव नही लड़ेंगे पर चोर चक्के घूम रहे उनको पकड़ो। उसके वाद पुलिस ने कुछ न कहा और घर के पीछे से चुपचाप चली गई। सीमा ने छत से शेरनी की दहाड़ से जवाव दिया। जव दहाड़ से सो टके की बात कहे तो उसका जवाव किसी के पास नही होता। प्रधान चुनाव में हार का मुख देखना पड़ा। विधायक की सह से मतदान केन्द्र की जगह बदल दी गई और धड़ाधड़ ख़ुद ही वोट डाल लिये कोन कहता?किससे कहते ?सरकार जिसकी हो पुलिस भी उसी की होती है। इस हार का कोई अर्थ ही नही था। विधायक के बाहुबली का आतंक इस कदर छाया था कि रात को बारी बारी से चौकीदारी करके गुजरती थी। राज्य चुनाव में विजयी विधायक का समर्थन नही किया था उसी का प्रतिरोध इस तरह डराकर लिया जा रहा था। सूरज छिपते ही पूरा ग़ांव अपने अपने घर में छिप जाते थे ,दूऱ दराज खेतो पर अकेले जाना मुश्किल था. आठ से दस सदस्य इक्कठे होकर तव जाते थे। मकसद था पकड़ का जिससे मोटी फिरौती की रकम बसूलना ,क्योंकि विधायक को हार का बदला जो लेना था पर इस कार्य में हार ही मिली तो ओर आक्रोश में था। प्रधान चुनाव में अपने समर्थन को विजयी बनाया तब शांत हुआ। चौकीदारी के कार्य में सीमा कहाँ पीछे रहती ,घर की छत पर घास फूस की झोपड़ी बना ली थी उसी में बारी बारी से मोर्चा सवालते थे। शरहद जैसा माहोल बन गया था जो रोज सुबह सुनने को मिलता था, आज रात इधर से बदमाश असला बन्दुक के साथ गुजरे उधर से गुजरे ,,,,,,,,,प्रधान जीत के साथ ये भय भी समाप्त हो गया। सतर्कता अभी भी थी ये चलता ही रहता हे ठीक वैसे ही शेर और हिरन का जंगल में डर …. प्राय देखा गया हे ,जव लड़की की शादी तय हो जाये तो अपने रूप को सजाने और सवारने में घन्टे घन्टे निकाल देती हे। वार वार आयने के सामने आकर इतराती हे , लजाती हे, शरमाती हे ,हाथों को चहरे के सामने लाकर धीरे धीरे खोलती हे मुस्कराती हे ये सब कार्य छुप छुप के होते हे मन में ये भी लगता हे कोई हमको देख न ले। चहरे पर एक दाना भी निकल जाये तो परेशान हो जाती हे कितने जतन किये जाते हे लोग को घिस कर लगती हे गोरपता को लगायेगी और न जाने कैसे कैसे सोंदर्य प्रसाधान का उपयोग करती हे। सुबह सुबह दूध का झाग लगाना फिर बेसन में चिकनाई या दही डालकर उवटन करना। वाहर धूप में निकलने से परहेज करना। वर्तन साफ करेगी तो काले वर्तन लोहे कड़ाई तवा को छोड़ देगी इससे हाथ काले हो जायेगे। पर इनको कौन समजाये ये एक भ्र्म हे ,,,,,,,,,,यहाँ तो मम्मी साफ कर लेगी पर ससुराल में ऐसा किया ,तो ग़ांव आस पड़ोस में डिडोरा पिट जायेगा और न जाने कैसी कैसी बाते उसको सुनने को मिलेंगी ,ताने और मिलेंगे यही सिखाया हे तेरी मईया ने ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मायके में मन के पंछी हे ,ससुराल में मन कैद पंछी हे। खाना स्वंय बनाओ सबको खिलाओ बाद में खाना पड़ता हे अगर भूल से पहले खा लिया तो हाय तोवा मच जायेगा ,जाने कितना बड़ा जुर्म हो गया। ये एक नये विवाद का रूप लेलेगा। मायके में मन पन्छी होते हे जो मन करता हे वही करते हे ,.ससुराल में बंधनों और दायत्व से कितने ही बोझ लाध दिये जाते है। ,सपने तो रात के सपनो की तरह हे जो सुबह आँख खुलते ही ओझल हो जाते हे। ससुराल के मन मुताबिक न चले अपने मन मुताबिक़ चले तो तेज बहू का ठप्पा और कलेश को निमन्त्रण दे दिया जाता हे। अपनी क्षमताओ को दिखाने के लिये एक मौका तो मिलता हे ,उसका लाभ उठाकर कसौठी पर खरे उतर कर दाते तले उँगली दवाने को मजबूर कर दो और इतियास बन जाओ। अपने वर्चस्व का गुड़गान जो करता हे वो मोके से चूक जाये तो उसका हाल खाल में छुपे भेड़िया सबके सामने उजागर हो जाता हे। मौका सबको एक बार जरूर मिलता है। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, खाद की बोरी यूरिया जिक जैसी खाली बोरी को सर्फ से धोकर सिलाई को उधेड़कर एक के साथ एक जोड़कर शहर के मखमल कालीन ग़ांव में यही कालीन है । इसी कालीन के ऊपर निमन्त्रण पत्र बिखरे पड़े हे। सीमा झुककर निमन्त्रण पत्र लिख रही हे और भाभी लिस्ट से नाम बोलती ,साथ ही साथ टिक करती। आज पिछले दिनों के मुकाबले लू तेज चल रही थी। इस लू भरी दोपहरी में अपने पसंद के मुताविक़ कुछ न कुछ व्यक्ति कर रहे हे। ताश खेलकर तो कोई चारपाई बुनकर समय काट रहा हैं । किसान कितना ही कर्ज तले दवा हो पर अपना दर्द साझा न करेगा सब किसान भाई मिलकर खुश रहने की चेष्टा करते रहेगे जैसे सब मिलकर ताश खेलना ,शतरंज खेलना इत्यादि ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अचानक पास से चीखने चिलाने रोने की आवाजे सुनाई देने लगी। पत्र लिखने से एकदम मोह भंग हो गया और कारण जानने की इच्छा उत्तपन्न हई ,आख़िर कौन रो रहा हे?चिल्ला रहा हे?भय से पीड़ा युक्त किस किसकी आवाज़ है ?घर से सटकर बने घर से आवाजे आ रही है। आग की लपटे ऊँची ऊँची उठ रही है ,लू के कारण आग तेजी से फेल रही है। घर की छत बाँस बल्ली फ़ूस लकड़ी के मोटे मोटे लट्ठों की सहायता से बनीं होने के कारण आग तेज़ी से फेल रही है। सीमा ने छत से चढ़ कर देखा ,’लपटों को देखकर कहाँ ‘भाभी भाभी सामान निकल लो ,मास्टनी चाची के घर आग लग गई हे” । मास्टानी चाची और मंत्रिन चाची की बहू दोनों बच्चे आग के बीच में फस गहे है। कहते कहते नीचे उतर के आई और कमरे बरामदा से सामान निकल निकालके आंगन में ऱख दिया क्योकि सटकर घर बना है ,गहरी गहरी दरारे जो थी जिसके कारण कभी भी आग लग सकती थी लेकिन पक्का घर होने के कारण ये हादसा टल गया। मास्टनी चाची के साथ तीन और आग में फँसे हुऐ है जो लगातार चीख रहे चिल्ला रहे है। आवाज़ सुनकर गाँव वाले घर के पास इक्कठा हों गये लेकिन दरवाजा बंद था,आग बढ़ती ही जा रही थी ,कभी भी किसी भी वक़्त कुछ भी हों सकता है। सीमा अपनी घर की छत से होकर उस घर में जाने लगीं ,नीचे छत में आग लगी हुई थीं ,धीरे धीरे क़दम बड़ा रही हे नीचे लोग होशला बड़ा रहे थे और सभलकर जाने क़ो कह रहे है। सीमा धीरे धीरे आगे बडी उस छत पर पहुँच गई जो आग की चपेट में नही थी ,नीचे सबने अपने आप को एक कोने में समेट लिया ताकि बचा जा सके। सीमा ने हिम्मत करकें ऊपर रखीं सीडी को आंगन में फासकर ऱख दी ,उसी सीढ़ी से नीचे उतरी ,महिलाये और बच्चे बुरी तरह घबराये हुए हे। पहले महिलाओ को ऊपर छत पर किया फिर एक बच्चे को एक क़ो अपनी गोदी में लेकर ऊपर आई ,आँखों के सामने आग लगी छत धड़ाम धड़ाम नीचे गिर रही है ,जिस छत से सीमा आई वो भी धड़ाम से नीचे गिरी। बचने का एक रास्ता था कमरे के अंदर खिड़की हे जिससे अहाते में ताकने और झाँकने के काम आती थी,आज वही जीवन वरदायनी बन जायेगी। गाँव वालो ने नीचे से सीढ़ी लगा दी ,एक एक कर सब उतर आये। अभी भी महिलाये बच्चे भय मुक्त नही थे। सीमा के होशले की सब तारीफ़ कर रहे है। जिससे जैसे हुआ वैसे आग बुझाने की कोशिश कर रहे पर आग बेकाबू हो चुकीं थीं। दमकल आई तव आग पर काबू हो पाया हर जगह राख का ठेर ही ठेर था। ये एक कल्पना कहानी नही हे बल्कि सत्य घटना है ,जो भी हमने दिखाने की कोशिश की हे वो सब एक साल में घटनाये घटी है। ” ग्राम बछेला जिला फ़िरोज़ाबाद राज्य उत्तर प्रदेश ‘ ये तव की बात हे जब में आठवी कक्षा मै थी। सन 1996 की घटना है। वक्त के साथ साहसी सीमा की कहानी कही खो गई है जिसने साहस का परिचय देकर जान की परवाह किये चार ज़िंदगियों को अनहोनी घटना घटने से बचाया पर आज रेगिस्तान में लुफ्त लूनी नदी के समान साहसी सीमा खो गई है। अगर ये घटना शहर या कसवा की होती तो अखवारों की शान और पुरूस्कार से सम्मान दिया जाता। अनछुये किस्सों को समाज के बीच हिस्सा बना दे तो मेरी कलम भी गौरांवित हो जायेगी। ये सीमा और कोई नही हमारी बुआजी ही है। सबसे अलग सोच के कारण परिवार की हितेशी है जितना भी कहा जाये कम है। जिस सम्मान की हकदार हे थोङा सा सम्मान मिल जाये मेरा लिखना सार्थक हो जायेगा। आकाँक्षा जादौन

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