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तप्सया का फल

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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हल्के आसमानी रंग का घेर वाला सूट चूड़ीदार पजामी ,सूट के रंग में गहरे सिलेटी रंग की बाजू और घेर पर लगी किनारी रंग को निखार रही है ,गले की डोरी में बधे घुघरु की आवाज उसकी तरफ़ देखने को ललचा ही गया ,हवा में लहराता दुप्पट्टा बिखरे बालों की घटाओ में, मै सुध बुध खो गया ,अपने हाथों से कही दुप्पट्टा सभालती तो कही घुमड़ घुमड़ आती जुल्फे चहरे पर उसको सभालती ,नटखट सा खेल खेल रही थीं मैंने ऐसे पहले कभी किसी को नही देखा क्यों मेरे मन में उसके रूप को देखने की तीव्र लालसा जाग रही थीं ?,क्यों इस प्रेम रूपी सरिता में बहने क़ो लालायत था ?दूर से उसकी मोहित कर देने वाली क्रियाये देख पा रहा था ,बच्चों क़ो क्या निर्देशन दे रही थी या कुछ कह रही थी मुझे कुछ याद नही बस उसको देखे ही जा रहा था.. प्रेम सरिता में बहे ही जा रहा था.मैं खिड़की वाली शीट पर वेठा टकटकी लगाये उसको देख रहा था,चालक वार वार हार्न दुवारा चलने का संकेत दिये जा रहा था ,मै लालायत हो रहा था उसके रूप क़ो देखने के लिये पर चालक महोदय धीरे धीरे बस क़ो आगे बड़ा रहे थे ,मुझसे वो दूर हो रही थीं मै बेचैन हों रहा था, आज से पहले मेरे साथ कभी ऐसा नही हुआ, मन ने किया उतरके उसका दीदार कर लू पर न जाने क्यों नही उठा और वो बस के चलने के साथ ओझल हो गई। मै बहुत दुःखी था अब कब दीदार होंगे या यही आख़री दीदार था पर अचानक मेरी शीट पर कोई बैठा मै तो वाहर ही उसे खोज रहा चालक ने जोर से ब्रेक दवाये, अपने आपको सभालने के चक्कर में मेरा हाथ उसके हाथ से टकराया जो मैं वाहर ही उसको खोज रहा मोह भंग हुआ उसकी तरफ नजर घुमाई तो हैरान था जिसको वाहर ख़ोज रहा था वो मेरे पास ही बैठी थी, उसको मैने आसमानी सूट से पहचाना ,मै बहुत खुश हुआ ,चाह तो रहा था कि उसको देखता रहूँ पर कही वो मुझको ग़लत न समझ बैठे कि उसको घूर रहा हूँ,उससे नज़र बचाके उसके रूप की सरिता में बह गया……… कानों में लीड लगाके गाने सुनने लगा। … पास बैठी हे मेरे मैं कितना खुश नसीव हूँ.

थम जाये वक़्त यही तो खुश नसीव हूँ…

प्रीत क्या होतीं है आज मैने जाना है ..
बैठी हो तो नज़र तुमसे चुराता हूँ …..
वैसे एक पल नज़र हटाता ही नही हूँ
भुला बैठा हूँ खुदको तुझमें भुलाके,,,
थम जाये वक़्त यही तो खुश नसीव हूँ……
आसमानी रंग का सूट चूड़ीदार पजामी,,,
बलखाती जुल्फे लहराता दुप्पट्टा,,,,,,,,
छनछन करते घुघरू खनखन करती चूड़ी
प्रेम सरिता में बह चला खुशनशीब हूँ ,,,,,
जादू भरी आँखों में काजल इतराता ,,,,,
गुलाब सी झलकती गालो से लाली ,,,,,
मोती झरते मुस्कान जो उसकी भोली ,,,
कानों की वाली दमके गिरती हे विजली ,,,,,,
थम जाये वक़्त यही तो खुशनसीव हूँ …..
कहना हे बहुत कुछ नज़र चुराता हूँ ,,,,,
ख़ुद से रहा दूर फिर क्यों ख़ुद से मिलता हूँ
दुनियां क्या देखूं सब तुझमे नज़र आता हूँ
जादू किया तूने तुझमे खोना चाहता हूँ ,,,,,,
थम जाये वक़्त यही तो खुश नसीव हूँ ,,,,,,,
पास बैठी हे मेरे मैं कितना खुश नसीव हूँ ,,,,,
अचानक चालक ने ब्रेक लगाये ,मैंने सभाला कही गिर न पढू कही वो कुछ और न समझ बैठे मैं जान बूझ कर गिरा हूँ ,,,पर मेरी नज़र उसकी नज़र से टकराई वो भी टकटकी लगाये मुझको देख रही थीं ,आँखों आँखों में बाते हों रही थीं शायद जो अगन मेरे ह्रदय में उठी थीं वो अगन उधर भी थीं , सब कुछ बुलाके एक दूसरे क़ो निहारे जा रहे थे,अचानक चालक ने उतरने का संकेत रूपी हॉर्न बजाया हमने अपने आप को सभाला उसने भी सभाला और कालेज की और जाने लगीं.. मैं भी ठहर कर देखता रहा और खुश हुआ कि दोनों की मंजिल एक ही थीं। कुछ दूर जाके वो रूकी पता नही क्यों?उसने पलट के देखा और मुस्कराके चली गई। मै बहुत खुश हुआ जैसे उसनें भी संकेत दिया हो और आगे बढ़ने का ,मैं उत्सुक था उसके बारे में कोन सी क्लास में पड़ती हे? कहाँ रहती हैं ? क्या नाम है ? मै उसको देखें ही जा रहा था कि दोस्त ने मेरे मन की बात पड़ ली। ये तो आठवाँ अजूबा हो गया जो कभी लड़की क़ो नज़र उठाके नही देखता था वो लड़की को देखें ही जा रहा हैं ,अरे यार इतना मत देख नज़र लग जायेगी , तू मुझसे उसके वारे में पूछे,’मै ही बता देता हूँ , इसका नाम स्पर्श हे ये हमारी ही क्लास में है,पर तुझको कितावो से फुरसत मिले तव तो प्रकृति के सौन्दर्य को देखे .अपने आस पास कितने तरह तरह के फूल हे पर तू तो आई ए एस तपस्या का विश्र्वामित्र जिसकी तपस्या स्पर्श ने भंग कर दी। ,विसवा मन में सोच रहा था मेरी ही क्लास में,मैं अनभिज्ञ था। यार क्या सोचने लगा?तू ख़ुशनसीब हे जो मुड़कर देखा किसी को भाव नही देतीं है ,सब कबसे उसकी एक मुस्कान के लिये तरस रहे हे.ये ख़ामोश सुध बुध सी रहती हे पता नही क्यों ? विसवा अब हम स्पर्श के चहरे पर मुस्कान लाके ही रहेगे पर कैसे ?
शुचित ने विसवा की तरफ़ चुटकी लेते कहाँ ,”जा रहने दे पहले कितावो से तो निकलो जो खुद ही मुस्कराता न हो वो मुस्कान क्या ख़ाक लायेगा।
विसवा :-यार तो सही कह रहा हे पर उसके स्पर्श ने क्या जादू किया हे ? एक पल के लिये भी ओझल नही हो रही है।
शुचित :-ठीक हे मै कुछ करता हूँ।
शुचित ने स्पर्श क़ो मैडम बुला रही हैं इस बहाने से पुस्कालय में बुलाया ,उसके मन कही सवाल थे मैडमने क्यों बुलाया ?शायद नोट्स के वारे में बताना हों ?यही सोंचती जा रही थीं कि अचानक नज़र विसवा पर गई वैसे ही पीछे क़दम लिये और चलने लगीं।
विसवा ने पुकारा :-रुक जाओ स्पर्श,मै कुछ कहना चाहता हूँ ,
स्पर्श ने बीच में रोकते हुये कहाँ ,’कुछ मत कहो ,हर बात कहके नही की जाती ,कुछ हाल हालत भाव को देखकर बात समझ लेनी चाहिये ,जो लड़का पढ़ाई के सिवा कुछ और नही सोचता अपनी क्लास के क्लासफैलो के वारे में नही पता है, वो आज हमारा इतज़ार कर रहा क्यों ?तुम शब्द कहोगे तव ही जान पायेगे ,नही… प्रेम हे ही ऐसा जिसे शब्द की नही एहसास की आवश्यकता होती हे। . हम अपने विसवा की तपस्या भंग नही करना चाहते हे। मुझसे पहले माता पिता का सपना पहले हैं । आधार भी उन्ही का हे पहले उनका सम्मान सपना बाद में कुछ और .. तुम यही सोच रहे हो? मैं सब कुछ कैसे जानती हूँ ? तो तुमने तो आज़ जाना हे मै तो क्लास की पहली साल से ही प्रेम करती हूँ। हाँ मै खामोश क्यों रहती हूँ मुस्कराती क्यों नही … जब तुम अपनी तपस्या में इतने लीन तलीन रहते हो तो फ़िर किसके लिये मुस्कराये?
विसवा ; मेरे लिये मैने आज जाना और तुम बरसो से पर क्यों? मुझमें ऐसा क्या देखा ?
स्पर्श ; तुम्हारी सादगी अपने काम में लगन यही भा गई कब ?कैसे? कहाँ ?सिर्फ़ तुम में ही खो गई. मैं बहुत खुश हुई थीं जब आपके पास मुझे बैठने का मौका मिला चाहती हूँ कि आपकी अर्द्धागिनी बन हर सुख दुःख की भागीदार बनूँ . मैं और मेरा प्रेम इतना निवर्ल नही है जो माँ बाप के सपनो के बीच आ जाये। मुझको घर के बारे मैं आपके बारे मैं सब पता है। मेरा तो हक़ बाद में हैं पहले उनका हक़ पहले हैं। अधूरे सपने हैं आई ए एस के रूप मैं वेटे को देखे। इस समाज ने असफलताओ के कारण माथे पर बट्टा लगा दिया है कि जो ढीगें हाँकने बाला क़भी कुछ नही कर सकता हैं। हमारी नज़र में आदर्श हैं जिन्होंने कभी भी बखान नही किया जो अधूरा रह गया हे आपको पूरा करना हैं। जिस तरह ज़मीन जायदाद कर्ज लेना या देना सब बच्चों को मिलता हैं वैसे ही उनका सपना जो पूरा न हो पाया ,आपको करना हैं। मै अपने विसवा की तपस्या भंग नही कर सकती हूँ।
विसवा :-आपके कारण मेरी तपस्या कैसे भंग हों सकती हे ?अगर न मिली तो सब कुछ बिख़र जायेगा,जब से देखा तब से एक पल भी और कही मन नही लगा पाया हूँ. पढ़ाई में स्थिर न रह सका हर जगह तुम ही तुम नज़र आ रही थीं, अब कैसे हो पायेगा तुम्हारे बिना? तुमसे ही हर सपना हे और तुम ही हर सपने को पूरा करोगी। सच मेरा मन कही नही लगेगा ,बस तुम मेरी हो जाओ मैं मम्मी पापा से बात करूँगा वो कभी मना नही करेंगे।
विसवा :-पता हे नही मना करेंगे पर मैं उनका सपना नही तोड़ना चाहती हूँ। प्रेम निर्वल बनाता हे कैसे सोंच लिया,राधे श्याम का प्रेम मिसाल है फिर हम आपसे दूर कहा हे आपके पास हे बस सच्चा एहसास होना चाहिए ,मुझको शक्ति बनाओ मैं आपके साथ हूँ हर पल पल.. मिलना लिखा हे तो हम जरूर मिलेंगे नही तो प्रेम बनके मेरे रोम रोम में बसे हो जिसको कोई आपसे दूर नही सकता हे। आप मम्मी पापा का सपना पूरा करो इसी बीच मैं आपका इतज़ार करूगी। मैं भी अपने माँ बाप के आखो में भी आँसू नही दे सकते हैं उनका मेरे लिये सर्वमान्य हैं .इस शरीर पर कोई अधिकार जता सकता पर मेरे ह्रदय पर आपका ही प्रेम हे और जन्मान्तर रहेगा। मुझको कभी बेवफा मत समझना ,संसार के प्रिति दायत्व हे उनका भी निर्वाह करना हे। श्याम को राधे ने संसार के दायत्व में प्रेम को बन्धन नही बनाया बल्कि शक्ति बनाया हे .
स्पर्श :-तुम इतनी प्यारी प्यारी बाते करती हो मुझको मोह लिया हे मै बचन देता हूँ, अपने प्रेम को शक्ति बनाऊँगा ,सबका सपना पूरा करूँगा तब अपने प्रेम क़ो लेने आऊँगा। दोनों ही अपने अपने रास्ते चले गये वक़्त क्या दिखायेगा ये तो वक़्त ही बतायेगा। विसवा ने प्रेम क़ो शक्ति बना कर सबका एक सपना पूरा करने में लग गया। कब दिन महीने में और महीने साल में गुजरे दिन रात एक कर आखिर कार पाच साल के बाद सपना सच हुआ। सब बहुत खुश थे विसवा ने अपने ह्रदय की बात मम्मी पापा को बता दी। ,मम्मी तो बहू के आगमन की तैयारी करने लगीं और मम्मी पापा के साथ स्पर्श को बहू बनाने स्पर्श के घर को निकले। स्पर्श के घर की सजावट गाने बजाने शादी जैसा माहोल देखकर सबकी समझ से परेह था। सब सोच रहे थे आख़िर किसकी शादी है जाने कैसे कैसे बाते मन में आ रही थीं। घर से दूर ये दृश्य नज़र आ रहा था. विसवा अरमानों क़ो सजोये स्पर्श के लिये पुष्प गुच्छ लिया जिसकी बातों ने प्रेम की शक्ति का अवलोकन कराया था। ,जब तक सपना पूरा न हों जाये तव तक न मिलना हे न सम्पर्क रखना है ,इन पांच वर्षो में एक पल भी स्पर्श को भूला नही था ब्लकि जब समस्या का समाधान न मिलता तो उसका निदान करती थीं। आत्मा का आत्मा से मिलन पहली मुलाक़ात में हों गया था आज तो औपचारिक रूप से प्रेम को सांसारिक नाम देना था, जब मिलने का सोचा तव से स्पर्श दूर हों गई जो हर वक़्त साथ नज़र आती थी, आज क्यों नही ?विसवा समझ नही पा रहा था.जो देखा उसको देखकर चौक… गया पैरो तले ज़मीन ख़िसक गई जब स्पर्श क़ो फूलों से सजीं कार मै लाल जोड़े में दुल्हन बनीं जाते देखा तो मानो सबकुछ खो गया। ,यादों क़ो हक़ीक़त बनाके पांच साल बिता दिये और आज किसी की दुल्हन बन चुकी है …..
आज़ फिर दिल रोया हे जिसको पल पल देख जिया खिलजाता था ,,
आज़ हुई दूर दिल रोया हे दुल्हन बनी किसी की जिया दुखता है ……
आज़ फ़िर दिल रोया हे …,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कसूर तुम्हारा नही कसूर मेरा भी नही किस्मत का खेला है ,,,,,
वफा मैने निभाया वेवफ़ा तू भी तो नही किस्मत का खेला है ,,,,
जहाँ तेरा भी जहाँ मेरा भी मिलन नही किस्मत का खेला है ,,,,
सपना तेरा भी सपना मेरा भी सच न हुआ किस्मत का खेला है ,,,,
आज़ फिर दिल रोया हे ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जन्म जन्म का नाता हे मिलना हे हमको किस्मत क़ो हराना है ,,,
टूटा न अब तक टूटने न दूँगा हौसला बदकिस्मत को झुकना है ,,
इतज़ार कर रहा था इतज़ार करूँगा किस्मत क़ो पलटना हे ,,,,,
आना हे तुझको मिलना हे हमको किस्मत क़ो बदलना है ,,,,,,,,,
अब दिल को न रुलाना हे तेरे साथ जीना हे ,,,,,,,,,,,,,,

स्पर्श ने भी विसवा को देख लिया पर किससे कहे एक एक पल राह देखते देखते काटी थीं। ,उदाश चहरे क़ो माँ बाप बखूबी पड़ लेते हे जो नज़र में होते हुए कही और खोये रहते हे.स्पर्श की हालत जीता जागता पुतला थीं उसके मन की विग्न क़ो देखकर माँ ने कह दिया।,”वेटी तेरी ये दशा हम सबको कचोड़ती हे मेरे सपने तेरे लिए सर्वोपय मेरे ह्रदय क़ो दुखाये बिना कोई कार्य नही करेंगी। चाये तू प्रीत की ज्वाला में झुलसती रहे… मै कितना भी पूछू पर तू कुछ नही बतायेगी, मुझसे तेरी ऐसी हालत देखी नही जा रही, मैने ख़ुद पता लगाया ,कि तेरी हालत क्यों हुई हे ?,तुम यही सोंचती थीं हमको पता चलेगा तो ठेस लगेंगी मन दुःखी होगा। वेटी मेरा सपना तो पूरा कर दिया ,प्रोफेसर बन अपने पैरो पर खड़ी हे भविष्य कैसा भी तू मजवूत रहेंगी ,आगे की जिंदगी तुम्हें किसके साथ बितानी हे ये तुम्हारा फैसला होना चाहिये ,बस मुझे तो लड़के के वारे में जानकारी होनी चाहिए कैसा हैं ? क्या करता है ?मैंने सब पता कर लिया है। वो भी तुम्हारी तरह अपने माँ बाप का सपना सच करने मैं लगा है। हम इतंजार कर सकते हैं ,स्पर्श को माँ की स्वीकृति मिल गई तो शादी के सपने बुनने लगीं जो हर लड़की बुनती है , पर किस्मत क़ो कुछ और ही मंजूर था.. सडक़ दुर्घटना में माँ बाप दोनों ही चल बसे ,जाते जाते अपनी अकेली वेटी क़ो इस संसार में कैसे छोड़ जाये,? इस संसार में अकेली लड़की खुली तिज़ोरी के सिवा कुछ और नही समझते है। वेटी का हाथ अपनी सहेली के वेटे के हाथ में सोप गई जो विसवा का दोस्त शुचित के साथ शादी हो गई।
आते आते बहुत देर कर दी आज फिर दिल रोया हे ,,,,,,
पल पल गुजरा इतजार में पर किस्मत ने हराया हे ,,,,,,,
वेवफा न समझना दिल में तुमको ही बसाया हे ,,,,,,,,,,
जन्म जन्म का बन्धन मैने तुमसे ही बाधा हे ,,,,,,,,,,,,,
आज फ़िर दिल रोया हे तेरा जिया मैने दुखाया हे ,,,,,,,,,
हों सके तो माफ़ करना महको किस्मत ने हराया हे ,,,,,,,

यहाँ से फिर एक वार दूर हो गये क्या कभी क़िस्मत बदलेंगी या बस क़िस्मत के हाथों की कठपुतली बन वार वार दूर होते रहेगे ?माँ बाप का आसीस था जो विफ़ल कैसे हो सकता था? कभी ठेस नही पहुँचाई थीं ,अपने बच्चों की आँखों में अधूरे सपने को साकार करना था, बस प्रभू से बन्दना करते थे, ये प्रभू मेरे बच्चे क़ो उसकी ख़ुशी दे दो। विसवा अन्दर से टूट चुका था पर क़भी भी सामने नही आने देता था। ,धीरे धीरे बरस बीतने लगें आठ बरस बीत गये। संसार कभी थमता हे ये तो चलता जाता हे और चलता ही रहता हे ,रोज की तरह विसवा योग में लीन था। माँ रसोई घर में चाय बना रही थीं कि टेलीफ़ोन की घन्टी बजी जनता अपनी समस्या के वारे में बताती थीं, विसवा सबकी समस्या विचारधीन होकर सुनता था और समाधान भी करता था ,जनता के ह्रदयों पर राज करता था और जनता खुश होकर अधूरी इच्छा पूरी होने का आसीस देते थे। ,माँ बाप ने कभी शादी के लिये नही कहा जानते थे अगर कहेगे तो कर लगा पर जो अंदर ही अंदर रोता हे उसको और पीड़ा नही देना चाहते थे ,विसवा ने निःस्वार्थ जीवन देश के प्रति समर्पित कर दिया। घन्टी बजी जा रही थीं ,,,,,माँ ने रसोई से आवाज़ लगाई ,,,,विसवा फ़ोन उठा ले …
विसवा ने फ़ोन उठाया और सुनकर हाथ से फ़ोन छूट गया ,,,,,,,स्पीकर की इधर उधर टकराने की आवाज़ से माँ रसोईघर से पूछा .. विसवा क्या हुआ ? कोई उत्तर न दिया हास्पीटल में जाने को कहाँ ,
माँ के मन में कही प्रश्न थे? विसवा के माथे पर पसीना ऐसी गाड़ी में भी आ रहा था ,बात तो गम्भीर थीं पर इसका उत्तर तो हास्पीटल में ही जाके मिल सकता था , कमरे का दरवाजा खोला सामने तो शुचित बिस्तर पर लेटा सिरहाने स्पर्श बैठी सिर पर हाथ फेर रही थीं और आँखों से आँसू झलक रहे थे ,जब विसवा को शुचित ने देखा तो हाथ के हिसारे से अपने पास बुलाया ,स्पर्श ने विसवा को देखा तो दोनों एक दुसरे को देखते रहे,,,, ,शुचित ने देखकर कहाँ ,”तुम दोनों को कौन अलग कर सकता हे जब बने ही एक दूसरे के लिये ,’
विसवा -कुछ मत कहो शुचित तबियत और खराब हो जायेगी ,
शुचित -मुझे कहने दो,,,,,,सबकी दुआए यही चाहती हे ,हमारे पास कम समय हे कब कोन सी सास आख़री हों ,,,मेरे सामने तुम दोनों प्रेम के बंधन में बध जाओ,,,,यही मेरी इच्छा हे। विसवा कुछ कहना चाहता था पर मना कर दिया ,स्पर्श का हाथ विसवा के हाथ में सोप दिया ,प्रभू ने इसी कार्य के लिये सास बचाके रखी थी और कहते कहते सास थम गई। ,सबने आवाज़ दी शायद इसी पल के लिए डेगू प्रकोप से जूझ रहा था ,सबकी आँखों से आसू बह रहे थे पर अधूरे प्रेम को मिलाने के लिए सबका आसीस जो था। माँ ने स्पर्श को गले से लगा लिया।

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