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मादक का बना पुजारी, शीष् झुकाये करते नमन।। हर नुक्कङ पर बना मन्दिर, सुबह शाम करते नमन।। घण्टी की आवाज,बोतलो में बदली।।सजदा की आवाज, गाली गलोच में बदली।। वेवफा का जख्म, दो घूट पीके उतरे।। जलन की चुबन , हर शाम पीके उतरे।। वक्त के साथ, मुरादे भी बदली।। आवाज की मागे भीख, नजर सामने होती बर्बादी।। कलयुग की आई कृपा, वदला इंसान वदली काया।। उत्सवो में जाते वार, शादी में टकराते जाम।। आया कुल का चिराग, बोतल बन गई घण्टी।। मिठाई की जगह, जाम ही वाँटी।। दो घूट की तङफ, अंगूठो ने पाई सत्ता।। काट काट के वेचते, हमारी माई मा।। घनघोर अन्धकार , लुट गई सभ्यता।। इंसान हुआ शैतान, फूल हुआ मम।। पङा कोई पत्थर, गाली से किया वार।। सर्प की चाल, गंगा बनी कीचङ, धुल गये पाप।। हाय कैसा अभिश्याप, क्या हे इसका तोङ, धरा की पुकार, क्या इसका तोङ।।।?????
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