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बालपन का दर्द

साहित्य दर्पण
साहित्य दर्पण
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नवम्बर आता हे कुछ वादे करके चला जाता हे।नियम कानून तो बनाये पर पर बाळपण का दर्द समझा किसने???हर पल खोफ के आगोश में जीने को मजबूर हे डर लगता हे खुद की परछाई से कब किस घङी हादसा हो जायें।आये दिन रोज अखबारो में खबरे सुनते रहते कि बच्चो का अपहरण हो गया ।बच्चो के साथ कैसे कैसे घिनोने दुश्कर्म होते हैहै।में तो जानती भी नहि हूँ क्या गंदा होता हे मा से सवाल भी पूछँती हूँ पर माँ भी कुछ नहीं कहती हे बस इतना कहती हे कोई भी तुम्हारे साथ हरकत करे जो तुम्हे अजीब लगे तो मुझसे कहना ।मै समझ भी नहीं पाई पर अंजानो से डर लगता हे।क्या मेरा डर शोभाविक हे या ये मेरी मन घङित कहाणी हेइसका जबाब क्या है?गली नुक्कङ पर टाट की बोरी लिए नन्ने मुन्ने बच्चे गंदगी से सने हुऐ से रद्दी के कागज डूडते या फिर टीन के डिब्बे टटोलते देखा हे हमने मै सोचती हूँ क्या तकदीर हे बच्चो की जहाँ एक और बच्चो के भविष्य को सभारने के लिए दावे किए जाते हे वही इन अखबारो रोज में खबरे सुनते रहते कि बच्चो का अपहरण हो गया ।बच्चो के साथ कैसे कैसे घिनोने दुश्कर्म होते हैहै।में तो जानती भी नहि हूँ क्या गंदा होता हे मा से सवाल भी पूछँती हूँ पर माँ भी कुछ नहीं कहती हे बस इतना कहती हे कोई भी तुम्हारे साथ हरकत करे जो तुम्हे अजीब लगे तो मुझसे कहना ।मै समझ भी नहीं पाई पर अंजानो से डर लगता हे।क्या मेरा डर शोभाविक हे या ये मेरी मन घङित कहाणी हे इसका जबाब क्या है?गली नुक्कङ पर टाट की बोरी लिए नन्ने मुन्ने बच्चे गंदगी से सने हुऐ से रद्दी के कागज डूडते या फिर टीन के डिब्बे टटोलते देखा हे हमने मै सोचती हूँ क्या तकदीर हे बच्चो की जहाँ एक और बच्चो के भविष्य को सभारने के लिए दावे किए जाते हे वही कोण हे जिससे अपनी व्यर्था सुनाये जो हमारा दर्द साजा करे।पचपन क्या होता हे? कोई हमें बताये तो सही।खिलोने छोटी छोटी चीजो के लिए जिंद करना मा का मनाना पिता का शाम को टाँफी लाना,दादा को घोङा बनाना उस पर बेठना और कहना चल मेरे घोङे तक तक तक,ये सिर्फ किस्से कहाणी में होते या हकीकत भी बनते हे ।मै पूँछ रही हूँ??

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