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“मेहनत हे तेरा होशला”

साहित्य दर्पण
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“अजगर करे न चाकरी,संत करे न काम, दास मलूका कह गये सबके दाता राम।।”ये दोहा आज दिल्ली में रहने बालो पर सटीक बैठता हे।अजगर जनता हो गई हे और संत विधायक हे।जनता मेहनत तो करना ही नहीं चाहती ब्लकि मुफ्त के पीछे इस कदर भाबी हे जिसने कल के दारे में सोचा ही नहीं कि मुफ्त देने के पीछे कही खुद मुफ्तखोरी न बन जायें।नेता ने बाधे तो कर दिये जो संत हे अब आस की नजर से केन्द्र की तरफ देख रही हे आप मदद करे तो सब बाधे तूरा हो सकें।जनता ये भूल गई यहाँ मुफ्त में कुछ नहीं मिलता हे।भगवान भी तो सुनता नहीं हे जिससे अपनी इच्छा पूर्ती के लिए मन्नत दान पुण्य यज्र तप वृत करने पङते हे तब कही जाके इच्छा पूरी होती हे।यहाँ तक कि कुदरत भी हमसे कुछ मागती हे हम उसकी हिफाजत करते हे पेङ पौधे जीव जन्तु सबका संतुलन बनाते हे तभी कुदरत अपनी खुसियो की बारिस करती हे अगर ऐसा न होता तो क्यो रेगिस्तान बारिस के लिए तरस जाता हे क्योकि  वहाँ पेङपोधे का अकाल हे तो बारिस कैसे होगी।हमें पृकृति के बीच सामजस्य तालमेल बिठाना पडता हे तब हम पर मेहरबान होती हे जब जब हम उसके विपरीत काम करते हे धडा धड उसके बीच में रूकावट डालते हे तब तब उत्ताखण्ड जैसी त्रादशी देखते हे।गंगा की धारा को रूख बदलना चाहते हे उसको बाँधने की कोशिश करते हे तब हमें जन धन की हानि उठानी पडती हे।जनता मुफ्त की चाह में कही सही में कही अजगर न बन जायें जो इतनी आलसी हो जाये ये सोचने लगे कि आके निवाला और खिला जाये। भगवान ने सबसे सुंदर रचना की हे मानव की सबसे शक्तशाली बुद्धि दी हे जिसके लोहा सबने माना हे कि आज जो शदियो पहले स्वप्न था आज साकार हुआ हे घर वैठे अपने हितेसी शुभ चिन्तक परिवार जनो से बात चीत कर लेते हे।आसमान की सैर का आन्नद ले लेते हे और भी कही कार्य किये मेरे कहने का तात्यपर्य हे जब हम होशले से चाँद पर पहुँच सकते तो क्या हम इतने नाकारा हे कि दो वक्त की रोटी पाणी की व्यवस्था नहीं कर सकते जो मुफ्त के चक्कर मे मेहनत से जी चुरा रहे हे।ये मानव तुम्मे वो शक्ति जो पत्थरो से पाणी निकाल सकता हे रेगिस्तान में फूल खिला सकते हे तो फिर क्या हम अपने परिवार की आवश्यकता पूरी नहीं कर सकते। एक बात तुम सोचो जो विधायक हे उनमे जायदा तर करोड पत्ती हे उन्हे क्यो टिकट डी मान्नीय मुख्यमंत्री ने समाजसेवा का जजवा क्या सिर्फ कुवेरो में होता हे आप ही खुद देखो आप किस जायदाद के धन कुवेर हे अन्ना जी कोण से धन कुवेर फिर भी समाजसेवा कूट कूट के भरा हे।सच में आप जनताके विचारो से सहमत होते तो आम जनता के बीच नेता को विधायक बनाते।जो जनता के दर्द को सच में अपना समजे।मै कुछ नहीं कह शक्ति हूँ ये तो  समय ही बतायेगा।जनता बस तुम मेहनत से जी मत चुराना।

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