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कहाँ गया जनलोकपाल का मुद्दा?

आपका चिंतन
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अन्ना हज़ारे के आन्दोलन के दो सिपाही अरविन्द केजरीवाल और किरन बेदी आज चुनावी मैदान में एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े हैं परंतु संयोग की बात यह है कि जिस जनलोकपाल बिल के लिए यह आन्दोलन किया गया वही लोकपाल बिल इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुद्दा ही नहीं है. जनलोकपाल आन्दोलन के कारण ही अरविन्द केजरीवाल के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई. इस मुद्दे पर ही वह दिल्ली के मुख्यमंत्री बने और इसी के कारण उन्होंने मुख्यमंत्री पद की कुर्सी भी त्याग दी. जब यह आन्दोलन चल रहा था, इस आन्दोलन से जुड़े सभी लोगों ने कहा था कि वह भविष्य में कभी राजनीति में नहीं आएंगे परंतु आज स्थिति अलग है. अरविन्द केजरीवाल ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ आम आदमी पार्टी बना ली. वहीं जनरल वी. के. सिंह लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा में शामिल हो गए और अब किरन बेदी दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा में शामिल हो गई है.

एक वक्त ऐसा था जब भाजपा राम जन्मभूमि आन्दोलन के जरिए पहली बार सत्ता में आई थी परंतु उसके बाद भाजपा उसे चुनावी मुद्दा न बनाकर राजनीतिक प्रतिबद्धता के रूप में पेश करती रही. आज आम आदमी पार्टी के समक्ष भी कुछ ऐसी ही स्थिति है है. जिस जनलोकपाल मुद्दे ने उसे दिल्ली की सत्ता दिलाई आज वह उसे चुनावी मुद्दा बनाने से बच रही है और इसे अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता बता रही है. जिस तरह पिछले विधानसभा चुनाव के समय शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ जो नाराजगी थी, जिसे आम आदमी पार्टी ने जनलोकपाल मुद्दे के जरिए भुनाया था, वह नाराजगी नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कहीं न कहीं अवश्य कम हुई है. आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को ज्यादा तवज्जों न देकर कहीं न कहीं दिल्ली की जनता को यह विश्वास भी दिलाना चाहती है कि यदि इस बार भी पिछली बार जैसी स्थिति आई तो वह सरकार छोड़कर नहीं भागेंगे. यही कारण है कि आम आदमी पार्टी जनलोकपाल को मुद्दा बनाने के बजाय मोदी सरकार की नाकमियां गिनाने में लगी है, साथ ही साथ बिजली-पानी जैसी मूलभूत जरूरतों को एक बार फिर से मुद्दा बना रही है.

अब जबकि अन्ना के आन्दोलन में केजरीवाल की सहयोगी रही किरन बेदी भाजपा में शामिल होकर सक्रिय राजनीति का हिस्सा बन चुकी है तो इससे कहीं न कहीं केजरीवाल तथा आम आदमी पार्टी को एक बड़ा झटका लगा है. यह भाजपा द्वारा छोड़ा गया एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है जिसने आम आदमी पार्टी के सारे मुद्दे को ही हाइजैक कर लिया है. कुछ दिनों पहले तक आम आदमी पार्टी जगदीश मुखी की तस्वीर अरविन्द केजरीवाल के साथ लगाकर उन्हें भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश कर रही थी तो अब सवाल यह उठता है कि क्या अब केजरीवाल और किरन बेदी की तस्वीर साथ लगाई जाएगी?

किरन बेदी के भाजपा में शामिल होने के साथ ही दिल्ली का चुनावी घमासान अब किरन बेदी बनाम अरविन्द केजरीवाल का हो गया है. यह हो आने वाला वक़्त ही बताएगा कि दिल्ली की जनता किसे सत्ता के शिखर पर देखना चाहती है परंतु एक बात स्पष्ट है कि इस बार का चुनाव आम आदमी पार्टी के भविष्य को भी निर्धारित करेगा. बड़ा सवाल यह है कि जिस जनलोकपाल आन्दोलन के कारण आज अरविन्द केजरीवाल और किरन बेदी की राजनीतिक हैसियत बढ़ी है, क्या वह जनलोकपाल बिल चुनाव बाद दिल्ली विधानसभा में पास हो पाएगा?

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