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मोदी शरणम् गच्छामि!

आपका चिंतन
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ModiNitish

देश की राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है. परिवर्तन बिहार की राजनीति में हुआ है, परंतु इसका असर पूरे देश की राजनीति में होने वाला है. नीतीश कुमार का आरजेडी के साथ गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाना, उनकी अवसरवादी छवि को और अधिक सशक्त बनाता है. हालाँकि यह भी सच है कि नीतीश के लिए नैतिकता के नाम पर इस्तीफ़ा देना कोई बड़ी बात नहीं है. साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी उनकी छवि अभी भी बनी हुई है. तीन वर्ष बाद नीतीश उसी मोदी की शरण में आए हैं, जिनसे उन्होंने तीन साल पहले सांप्रदायिक होने का आरोप लगाकर किनारा कर लिया था. इसके साथ ही एक बार फिर साबित हो गया कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता. महागठबंधन की सरकार के दौरान भी नीतीश कई मौकों पर केंद्र सरकार की तारीफ करते नज़र आए थे, चाहे वह नोटबंदी का विषय हो या बेनामी संपत्ति के विरुद्ध क़ानून लाने की बात.

नीतीश अब आरोप लगा रहे हैं कि लालू यादव के पुत्रमोह ने उन्हें गठबंधन तोड़ने पर विवश कर दिया. बार-बार कह रहे हैं कि वह भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं कर सकते, परंतु यह भी सच है कि जब उन्होंने लालू यादव के साथ गठबंधन किया था, तब वह चारा घोटाले में दोषी करार दिए जा चुके थे. वास्तविकता यही है कि हमारे देश में नेताओं के कई सिद्धांत होते हैं. कब परिस्थिति अनुसार राजनीतिक फायदे के लिए कौन सा नया सिद्धांत पैदा हो जाए, कहना मुश्किल है. नीतीश के लिए कभी सांप्रदायिक विरोधी होना एक सिद्धांत था, परंतु अभी भ्रष्टाचार विरोधी होना उससे बड़ा सिद्धांत बन गया है. यह भी सच्चाई है कि वह स्वयं तय करते हैं कि कब कौन सांप्रदायिक है और कब कौन भ्रष्टाचारी. नीतीश सरकार में शामिल होने के साथ ही बिहार देश का 18वाँ ऐसा राज्य बन गया, जहाँ बीजेपी या उसके गठबंधन की सरकार है. इसके साथ ही बीजेपी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सरकार बनाने के लिए चुनाव जीतना ज़रूरी नहीं है. इससे पहले भी गोवा और मणिपुर में बीजेपी अल्पमत में रहने के बावजूद सरकार बनाने में सफल रही थी. अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी एक ऐसी पार्टी बनकर उभरी है, जिसका निरंतर विस्तार होता जा रहा है और विपक्ष दम तोड़ रहा है. राज्यसभा चुनाव से पहले गुजरात के कुछ विधायकों का बीजेपी में शामिल होना इसी का एक उदाहरण है. यूपी में भी समाजवादी पार्टी के कुछ सदस्यों ने विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है और ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वे बीजेपी में शामिल होंगे.

2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की घेराबंदी के लिए जो विपक्ष तैयार हो रहा था, नीतीश के जाने के बाद उसमें एक शून्यता आ गई है. वर्तमान में कांग्रेस की राजनीति और आलस्य समझ से परे है. कांग्रेस के लिए यही कहा जा सकता है कि उसने इस बार भी अप्रत्यक्ष रूप से लालू परिवार का साथ देकर भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होने का अंतिम मौका भी गवां दिया. अगर वह जेडीयू और आरजेडी में सुलह की कोशिश करती, तो महागठबंधन टूटने से बच सकता था, परंतु ऐसा हुआ नहीं क्योंकि भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस खुद ही घिरी हुई है. संसद में आज भी भ्रष्टाचार के विषय पर बहस भी होती है, तो वह केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार की नहीं, बल्कि कांग्रेस की पिछली सरकारों के भ्रष्टाचार पर ही बात होती है. सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के नेतृत्व में लगातार कमजोर पड़ता विपक्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने कहीं टिक पाएगा?

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