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बीमा बिल पर राजनीति

आपका चिंतन
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किसी भी विकासशील अर्थव्यवस्था में बीमा क्षेत्र को महतवपूर्ण माना जाता है. बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 के अंतर्गत 2000 में पहली बार बीमा क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिये खोला गया. इसके अनुसार विदेशी निवेशक बीमा कम्पनियों में 26 फीसदी तक हिस्सेदारी रख सकते हैं. बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाली कम्पनियों के पास बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण से प्राप्त आवश्यक लाइसेन्स होने चाहिए.
पिछले कुछ वर्षों में बीमा क्षेत्र में हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सार्थक बढ़ोतरी हुई है जिसका एक कारण उदारीकरण की नीति भी है. सरकार तथा विपक्ष में तालमेल की कमी के कारण इस क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 26 फीसदी से बढ़कर 49 फीसदी नहीं हो सका है.
बजट सत्र के दौरान इस विषय को लेकर संसद में बहस भी हुई. सरकार को यह बिल पास कराने के लिये कांग्रेस के विरोध का सामना करना पर रहा है. यह वही बिल है जिसे संप्रग सरकार भी पास कराना चाहती थी परंतु उस समय भाजपा ने इसका विरोध किया था. राजग सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने इसका कड़ा विरोध किया था परंतु आज जब भाजपा सरकार इस बिल को पास कराना चाहती है तब वह खामोश हैं.
अभी हाल ही में दिए गए एक साक्षात्कार में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से इस बिल का विरोध कभी नहीं किया था. इससे एक बात स्पष्ट है कि भाजपा अपने एक बड़े नेता की राय लिए बगैर इस बिल का विरोध कर रही थी और वह भी उस नेता का जिसे वह भविष्य में वित्त मंत्री के रूप में देख रही थी. ठीक उसी तरह पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने अपने एक साक्षात्कर में कहा है कि वह व्यक्तिगत रूप से इस बिल का समर्थन करते है परंतु कांग्रेस अलग ही राग आलाप रही है. कांग्रेस उनकी राय से अलग इस बिल का विरोध कर रही है. इससे एक बात स्पष्ट है कि अपने स्वार्थ के लिए कोई भी राजनीतिक दल किसी भी हद तक जा सकते है चाहे वह कांग्रेस हो या भाजपा.

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