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औरत: क्या आज भी तेरी यही कहानी?

Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
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आज सोचता हूँ तो दिल बैठ सा जाता है,
क्यूँ इन्सान इंसानियत को छोड़ कर हैवान बन जाता है.

ये है मेरे दोस्त की एक कहानी सच्ची,
जो दिल और दिमाग से थी बहुत ही अच्छी.

सोचता हूँ तो लगता है जैसे कल की ही है बात,
मेरी उस दोस्त के उजले जीवन में भी छाई थी काली अँधेरी रात.

एक भरे पूरे परिवार में वो लाडली बन के आई थी,
उसको हँसते खेलते देख कर सबके चेहरे पर खुशियाँ छाई थी.

उस परिवार में उस से सब करते थे लाड दुलार,
उसने भी तो मान लिया था कि बस यही मेरा घर संसार.

कुछ वर्षों बाद उसने युवा अवस्था में रखा कदम,
तब जाकर उस परिवार के मोह से उसका टूटा भरम.

लोगों के मुह से उसने सुना कि बिटिया तो पराया धन होती है,
फिर क्यूँ इतने लाड प्यार से वो इस परिवार के पालने में सोती है.

आखिर एक दिन वो भी आया, जब वो बाबुल के घर से हुई बेघर,
तब बाबुल ने उसे बताया,
अब इनके साथ ही बितानी होगी तुझे जिंदगी कि अपनी डगर.

अपने परिवार से विदा हो वो नए परिवार में मिल गयी,
पति परमेश्वर के असीम प्यार से उसकी बांछे खिल गयी.

जीवन के इस नए मोड़ पर उसको मिल खुशियाँ बड़ी,
पर न जाने इन खुशियों पर किसकी थी बुरी नजर पड़ी.

एक दिन आवेश में आकर, उसके परमेश्वर ने उठाया उसपर हाथ,
वो सोच में पड़ गयी किस कारण से उन्होंने दिया मुझे यह आघात.

फिर उस दिन से लगातार इन आघातों का सिलसिला चलता गया,
और मेरे आत्मसम्मान का मजबूत ढांचा तिल तिल कर ढहता गया.

अपने ऊपर होने वाले इस अत्याचार को वो चुपचाप सहती गयी,
अपने पति कि इस तुच्छ मर्दानगी के दंश को वो झेलती गयी.

अपने इस मजबूरी और लाचारी का वो न कर सकी किसी से इजहार,
इसलिए एक दिन तंग आकर उसने पहना मौत का हार.

एक हंसती खेलती जिंदगी घरेलु हिंसा का बनी शिकार,
बस एक बात को सोचता हूँ कि क्या उसे नहीं था सम्मान से जीने का अधिकार.

क्या वही यह देश है:
जहाँ कन्याओं को पूजा जाता है?
जहाँ माँ सरस्वती, माँ काली, माँ दुर्गा को आदिशक्ति का रूप मन जाता है?
जहाँ माता के चरणों में स्वर्ग को देखा जाता है?

अगर हाँ तो फिर क्यूँ इस देश में:
लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जाता है?
सरेआम लड़कियों कि इज्जत पर हमला किया जाता है?
नव विवाहिताओं को दहेज़ कि बलिवेदी पर चढ़ाया जाता है?
अपनी मर्दानगी को साबित करने के लिए महिलाओं पर हाथ उठाया जाता है?

नहीं ये हमारा देश नहीं है, हमे ही इसे बदलना होगा,
समाज के हर एक वर्ग को एकजुट प्रयास करना होगा.

अगर बनाना है हैं हमें अपने देश को महान,
तो हमें लड़के और लड़कियों को देना होगा बराबरी का सम्मान.

आइये मिलकर प्रण करते हैं एक स्वस्थ समाज बनायेंगे,
और महिलाओं को भी बराबरी का हक देकर,
भारत माता का मान बढ़ाएंगे.

रचयिता: आशुतोष कुमार द्विवेदी “आशु”

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