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पेशा बनाम पैसा

Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
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आज यूँ ही बैठा तो सोचा, कहाँ खो गयी है लोगों की इंसानियत.
क्यूँ बदली-बदली सी नजर आ रही है, लोगों की नीयत?

आज दुनिया इतनी स्वार्थी क्यूँ हो गयी है?
अपने पेशे को छोड़ पैसों में क्यूँ खो गयी है?

आज की इस दुनिया में बस पैसों की है कीमत.
किसी को नहीं है इंसानियत की चाहत.

क्यूँ आज हर पेशे में पैसा है घुस गया?
क्यूँ आज लोगों का लहू इतना सूख गया?

सुनते हैं हर जगह नहीं पहुच सकते हैं भगवान्.
इसलिए लोगों ने चिकित्सक में ढूंढ़ लिया भगवान्.

डॉक्टरी का पेशा होता है कुछ ऐसा.
लोगों के लिए डॉक्टर होता है मसीहे के जैसा.

उनकी हर एक दवा जैसे भगवान् का दिया हुआ वरदान है.
इसलिए शायद उनका समाज में एक अलग ही स्थान है.

पर आज न जाने ऐसा क्या हो गया,
क्यूँ कुछ डॉक्टर पैसों के लिए अँधा हो गया?

आज मैं अपनी इस कविता से कुछ प्रश्न पूछना चाहता हूँ.
प्रश्न क्या मैं इस माध्यम से समाज को झकझोरना चाहता हूँ.

क्यूँ आज इस पावन पेशे में फ़ैल गयी है इतनी गन्दगी?
क्यूँ आज लाचार लोगों की इतनी सस्ती हो गयी है जिंदगी?

क्यूँ आज इलाज पर सिर्फ धनवानों का ही हक रह गया?
क्यूँ आज एक गरीब और लाचार माँ के आँखों के सामने उसका बेटा मर गया?

क्यूँ आज स्वार्थ के भंवर में फंस गए हैं कुछ चिकित्सक?
जिसे सब कहते थे जीवन रक्षक, क्यूँ बन कर बैठे है भक्षक?

अपने इस उदगार के द्वारा बस मेरा यही है कहना.
जीवन रक्षक बन कर आये हो तो, भक्षक तुम कभी मत बनना.

डॉक्टरी जैसे पावन पेशे का कभी न करना तुम अपमान.
बनकर देश के सच्चे नागरिक, सदा बढ़ाना देश की शान.

जय हिंद!!!

रचयिता: आशुतोष कुमार द्विवेदी “आशु”

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