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प्यार और समाज के ठेकेदार

Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
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हे भगवान् कितना बदल गया है आज का इंसान.
तुमने तो मुझे भेजा था बनाकर एक अनजाना इंसान,
और इस परिवार ने मुझसे कराया रिश्तों की पहचान.

आकर इस परिवार में जाना आखिर होता क्या है प्यार,
इसी परिवार ने मुझे कराया, प्यार के अनेक रिश्तों से मेरा साक्षात्कार.

इसी परिवार में मैंने पाया, माँ का प्यार,
पिता का दुलार, बहिन और भाई का प्यार,
तब जाकर मैंने जाना कितना सुंदर है संसार.

आखिर एक दिन वो भी आया, जब मुझसे वो अनजाना सख्स टकराया.
उसे देखकर लगा कुछ ऐसा, जैसे मेरे सपनो का राजकुमार हकीकत में मेरे सामने आया.

मैं उसे अब हर पल देखना चाहती थी,
अपने जीवन का एक हिस्सा बनाना चाहती थी.

मुझे महसूस हुआ की उसके दिल में भी यही कसक थी,
उसके रोम रोम में भी मेरे प्यार के प्रति चमक थी.

आखिर जिंदगी का वो भी पल आया,
जब लगा की भगवन ने हमदोनों को एक दूजे के लिए हे है बनाया.

कुछ दिनों बाद हम मिलने लगे,
हमारी जिंदगी में भी प्यार के फूल महकने लगे.

न जाने हमारे प्यार को लग गयी किसकी नजर,
हमारे प्यार के बारे में जमाने को हो गयी खबर.

जाती पाती सम्मान में फंसकर, समाज के ठेकेदारों ने हमे अलग कर दिया,
जीते जी हमारी जिंदगी को उन्होंने नरक में बदल दिया.

एक दिन साहस कर हमने जुटाया हौसला,
और अपनी अलग दुनिया बसाने का कर लिया फैसला.

हमसे उस फैसले में हुई कुछ ऐसी भूल,
जिस से हम अपने परिवार से हो गए काफी दूर.

समाज ने इस फैसले का ऐसा कठोर दंड दिया,
मेरे परिवार का उन्होंने पुरजोर बहिस्कार किया.

एक दिन उस जालिम समाज को लग गयी हमारी भनक,
हमें सजा दिलाने को सवार हो गयी उनपर एक अलग ही सनक.

मेरे आँखों के सामने मेरे प्यार को जिन्दा जला दिया,
और मुझे सबके सामने जहर का घूँट पिला दिया.

आज हमदोनो इस समाज से क्या दुनिया से हो गए काफी दूर,
बस एक प्रश्न पूछना है क्या था हमारा कसूर?

गर प्यार करना जुर्म है, तो हाँ जुर्म हमसे है हुआ,
पर इस जुर्म से तो भगवान् भी नहीं है अनछुआ.

एक ओर तो आप ही राधा कृष्ण को हैं पूजते,
और दूजी तरफ आप ही प्रेमियों को मिलने से हैं रोकते.

क्या यही है वो सभ्य समाज, जिसमे हम सब रहते हैं,
प्यार भरी इस प्यारी दुनिया में नफरत के बीज बोते हैं.

अगर सच में यह वही समाज है, तो इसे बदलना पड़ेगा,
एक सुन्दर और प्यार भरी दुनिया के लिए हमें एक जुट होना पड़ेगा.

आओ मिलकर करें प्रण की एक ऐसा समाज बनायेंगे,
अपनी इस प्यारी धरती मैया को प्यार के फूलों से सजायेंगे.

रचयिता: आशुतोष कुमार द्विवेदी “आशु”

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