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माँ तुम फिर से आ जाओ, अपना स्नेह बरसा जाओ,

Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
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माँ तुम फिर से आ जाओ, अपना स्नेह बरसा जाओ,
चुपके से आकर मेरे कानों में, फिर वो लोरी सुना जाओ,
माँ तुम फिर से आ जाओ।

आपका वो हर बात पर चिंता करना,
खुद खाली पेट रहकर हम सब का पेट भरना।
दिन भर काम कर के बाद भी आपके अधरों की वो मुस्कुराहट,
मुझे आजतक भी है याद, मैं आज फिर से करता हूँ तुमसे फरियाद,
माँ तुम फिर से आ जाओ, अपना स्नेह बरसा जाओ।

आपके हाथों के उस स्वाद को अबतक नहीं भुला हूँ मैं,
आपकी उस मधुर मुस्कान को याद सदा करता हूँ मैं।
आपका डांट कर रो देना अबतक मुझे आता है याद,
इसीलिए मैं आज फिर आपसे करता हूँ बस ये फरियाद,
माँ तुम फिर से आ जाओ, अपना स्नेह बरसा जाओ।

मेरा वो छोटी से छोटी बात पर नाराज होना,
नाराज होकर बिना बताए घर से कहीं निकाल जाना,
मेरी याद में आपका वो आँसू छलकाना,
मुझे देखकर गुस्सा होना फिर सब भूल कर वो ममता और प्यार देना,
मुझे आजतक भी है याद, मैं रो रो कर तुमसे करता हूँ फरियाद,
माँ तुम फिर से आ जाओ, अपना स्नेह बरसा जाओ।

मुझे खेलते देख कर आपका मुसकुराना,
पापा के आने पर वो प्यार से डांटना और कहना,
खेलने के साथ-साथ जरूरी है पढ़ाई,
तभी इस समाज मे तेरे परिवार की होगी बड़ाई,
आपकी इस सीख को मैं बार-बार करता हूँ याद
बस इसी सीख को याद कर मैं हर दिन करता हूँ फरियाद,
माँ तुम फिर से आ जाओ, अपना स्नेह बरसा जाओ।

अभी तो हम हुए थे बड़े, अपने पैरों पर हुए थे खड़े,
अभी तो आपकी ममता भरी आँचल में हमें और था जीना,
आपको तो अभी अपार सुखों का उपभोग था करना,
अगली पीढ़ी के नवांकुरों का पालन पोषण था करना,
लेकिन एक उस दुखद पल ने आपको हमसे छीना,
उस क्षण उस पल को मैं रो रो करता हूँ याद
और यही करता हूँ मैं हर दिन फरियाद,
माँ तुम फिर से आ जाओ, अपना स्नेह बरसा जाओ।

मैं ये जानता हूँ की आप आ नहीं पाएँगी,
ऐसी चीर निद्रा में सोयीं हैं जिससे जाग नहीं पाएँगी,
पर क्या करूँ मेरी प्यारी माँ आपके बिना मैं रहता उदास,
और मेरे मन मे सदा रहती है ये एक छोटी सी आस,
काश माँ तुम फिर से आ जाओ, वही स्नेह पुनः बरसा जाओ।

रचयिता: आशुतोष कुमार द्विवेदी “आशु”

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