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हे गुरुवर तुमको प्रणाम है…

Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
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हे गुरुवर तुमको प्रणाम है!

एक मांस के लोथड़े के रूप में मैं जब इस धरती पर आया,
एक नरम हाथों ने उठाकर तब मुझको अपना दूध पिलाया.

आंखें बंद थी देख न सका मैं की कौन है जिसने यह स्नेह दिखाया,
आँख खुली तो मैंने खुद को एक प्रभु की मूरत के गोद में पाया.

हां ये वही थी जिसने मुझको ममता का वह पाठ पढाया,
और बताया मुझको की इस धरती पे सब एक सामान है.

हे गुरुतुल्य माता तुझे आज मेरा प्रणाम है.

कुछ वर्षों के बाद जब मैं अपने पैरों पे चलना चाहा,
तो मुझको दो हांथों की उँगलियों ने मुझको पैरों पे चलना सिखाया.

हाँ ये वही थे जिन्होंने मुझको ठोकर खाकर उठना सिखाया,
गिरते, पड़ते एकदिन उनके प्रयास से मुझे पैरों पर खड़ा होना आया.
और बताया की बेटा मेरे जीवन की राह नहीं होती आसान है.

हे गुरुतुल्य पिता तुझे आज मेरा प्रणाम है.

कुछ वर्ष बीते फिर एकदिन एक और व्यक्तित्व मेरे जीवन में आया,
उसने मुझको अपने ज्ञान दीप से अक्षरों का ज्ञान कराया.

और कहा की हे पुत्र ज्ञान बिना सूना है जीवन,
जैसे पशु बिन सूने वन, प्राण बिना जैसे कोई तन.

इस मानुष तन जैसे उपवन को उन्होंने अपने ज्ञान से सिंचित किया,
और मेरे जीवन को उन्होंने युगनिर्माण के लिए नवनिर्मित किया.

और बताया की हे शिष्य, मात पिता और गुरुजनों का,
स्थान तो परमपिता भगवान् सामान है.

तब जाकर मैंने कहा की,…..

हे गुरुवर तुमको प्रणाम है…

हे गुरुवर तुमको कोटि कोटि प्रणाम है.

रचयिता: आशुतोष कुमार द्विवेदी “आशु”

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