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सुरक्षित दुनिया – एक चाह

Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
Ubharata Kavi aur Prakriti Mitra
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माँ के गर्भ में आया जब, उनकी आँखों से देखी दुनिया तब.
अच्छी दुनिया, न्यारी दुनिया, सतरंगी ये प्यारी दुनिया.
कुछ समय बाद जब मैं बाहर आया, देख मुझे सबका मन हर्षाया.
नन्ही कली के रूप में आकर, मैंने इस प्यारी बगिया को महकाया.
जब मैं थोडा हुआ जवान, सब कहने लगे ये है हमारे परिवार की शान.
स्वभाव में मैं था कुछ चंचल, शरारतें किया करता था हर पल.
एक दिन वह क्षण भी आया, जिस से मैं बहुत घबराया.
उसी बगिया में था एक माली, जिसने मुझ पर बुरी नजर डाली.
पाकर उसने मुझे अकेला, मुझको न जाने किस अंधकार में धकेला.
टूट पड़ा वह इस कदर मुझ पर, कर दिया मेरे बचपन को तितर बितर.
आखिर मेरा क्या था कसूर, मुझे तो अभी खिलना था भरपूर.
मुझे आज भी नहीं होता विश्वाश, लूटा मुझे उसने जो मेरे परिवार का था सबसे ख़ास.
क्या यह है वही दुनिया, जिसको मैंने गर्भ में देखा.
सोचता हूँ तो पड़ जाती है, मेरे माथे पर चिंता की रेखा.
बचपन की उस घटना को याद कर मैं सिहर जाता हूँ.
पर अपने बदौलत पाए इस मुकाम को देख मैं संभल जाता हूँ.
फिर भी आज मैं यही सोचता हूँ, क्यों इतनी गन्दी है दुनिया?
आओ मिलकर प्रण करे हम, बनाएं बच्चों की एक सुरक्षित दुनिया.
जिस से हर बच्चा कह सके, वाह रे कितनी अच्छी दुनिया.
सतरंगी ये प्यारी दुनिया, ये है हमारी न्यारी दुनिया.

रचयिता: आशुतोष कुमार द्विवेदी

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