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विरोध की पराकाष्ठा

'नादान' परिंदा
'नादान' परिंदा
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एक सफल लोकतंत्र के लिए विपक्ष का होना आवश्यक है ये तो सर्वमान्य है I सरकार के किसी भी गलत फैसले का विरोध करना विपक्ष का परम कर्त्तव्य है I पर आज की राजनीती में ‘विरोध के लिए विरोध’ हो रहा है I भारतीय तटरक्षकों ने बहादुरी के साथ आतंकियों के नाव का पीछा किया जिससे की वो विवश होकर खुद नाव उड़ा लिए I अब इसका भी विरोध हो रहा है की आखिर तटरक्षकों ने ऐसा क्यों किया ? जो सवाल पाकिस्तान उठाता था वो अब हमारे देश के विपक्षी दल उठा रहे है I कुछ दिन पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी ने वर्धमान विस्फोट के लिए अपने देश के ही ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ को जिम्मेदार ठहरा दिया I ये कैसी राजनीती है ? क्या केवल केंद्र सरकार के विरोध के लिए हम अपने खुद के सरकारी प्रतिष्ठानो पर आरोप लगाये या सवालिया निशान खड़ा कर दे ? ये किसी एक दल या नेता की बात नहीं है कमोबेश सभी की यही स्थिति है I जिस नीति या कानून का विपक्ष में रहने पर विरोध करते है उसे ही सत्ता पाने पर लागू करने के लिए आतुर दिखाई देते है या सत्ता में रहने पर जिस कानून की खूबियां गिनाते नहीं थकते, उसी कानून को अगर दूसरा दल सत्ता में आकर लागू करना चाहे तो कितने दिनों तक विरोध में संसद को ठप कर देते है I
एकबार हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव ने लालू यादव के सामने ही इस विरोध की राजनीती पर चुटकी लेते हुए कहा की लालू जी कहते है की मेरे 9 बेटा बेटी पैदा होने में कांग्रेस का हाथ है क्युकी इनलोगो ने परिवार नियोजन कानून बनाया और उस वक्त हम विपक्ष में थे और इनके बनाये कानून का विरोध करना हमारा फ़र्ज़ था I तो क्या बस किसी भी कानून या कार्य का बस इसलिए विरोध हो की हम विपक्ष में है ? क्या विपक्ष का कार्य उचित अनुचित देखे बिना केवल विरोध करना है ?

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