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शहर में आया एक नया मेहमान

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शहरो में एक नया मेहमान आया है, जिसने अपना नाम अवसाद बताया है यूँ तो हम सभी की ख़ातिर करते है मगर इससे अपना थोड़ा बैर है। आता ये अकेला है लेकिन जान ले जाता है। इससे लड़ना इसको भगाना आसान है मगर हम खुद उसको मुश्किल बना लेते है। ना जाने क्यूँ हम इसके झांसे में आ जातें है। गाँव से अभी ये दूर है। सुना है वहाँ इसका दुश्मन बैठा है,जिसका नाम है प्यार और सबका साथ। शहरों की भाग दौड़ में हम भूल जाते है अपनों को, दूसरों के और खुद के दुखों को अनदेखा करते है दिन रात चेहरे पे मुस्कान लिए चारो ओर फिरते है।

 

 

“दिलों में ग़म और चेहरे पे मुस्कान रखता हूं
जिंदा तो हूँ मग़र जिंदा कैसे रहूँ मैं”

 

 

कुछ यूं ही दिल बयान करता है अवसाद को। एक और कोरोना से जंग जारी है जिससे ठीक होना आसान है मगर जो ये अंदरुनी बीमारी है इसका क्या करें। ये वो शैतान है जो आ जाता है तो पता भी नहीं चलता। इंसान अंदर ही अंदर डूबता जाता है। यही कारण है जिंदगी से आसान मौत लगने लगती है। ऐसा नहीं है इससे उभरा नहीं जा सकता मगर उभरने के लिए खुद पे काबू रखना होता है और अपनी परेशानी को बताना होता है। दोस्तों से माता पिता से किसी से भी जब तक हम कहेंगे नहीं तब तक ये जाती नहीं है। खुल के करो बात इसी में अवसाद से जीत है वरना ये बीमारी तो कोरोना से भी गम्भीर है।

 

 

आज की पीढ़ी में तो इसका चलन है जिसे देखो वो इसी बीमारी से ग्रस्त है। कहने में डरते है वैसे पार्टी और हस्सी मज़ाक ये दिन रात करते है। मगर सोशल मीडिया से बाहर की दुनिया में ये अवसाद के शिकार है। पढाई की चिंता, समाज का डर ,ज्यादा सोचना और खुद में घुटना ये सब इसके कारण है। इससे बचना है तो बात करो,  अपने दिल की बातों को दीमाग के ख़यालों को साझा करो यही इसका इलाज है। ऐसा कुछ नहीं है जो ठीक नहीं हो सकता। मगर इसके आगे हरना ये गलत बात है। हमे खुद से सुधरना होगा कुछ आदत है जिनको बदलना होगा अकेले में जीना छोडना होगा तभी तो इससे जीत हो पाएगी तभी  तो सपनों को उड़ान मिल पाएगी।

 

 

“इस हसीन जिंदगी को चल थोड़ा और हसीन बना ले
हम तुम बात करलें और अवसाद को कहीं दूर भगा दे”

 

 

 

 

डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े का समर्थन नहीं करता है।

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