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बंद ने खोली पोल!

badalte rishte
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        चित्र नेट से साभार.        आज का बंद एक एतिहासिक बंद रहा.देश में बंद लगभग हर वर्ष ही होते रहते हैं किन्तु आज का बंद इस बात से एक एतिहासिक बंद है कि इसमें सरकार में शामिल दल भी पूरे जोश के साथ शामिल हैं और रहे भी क्यों नहीं? क्योंकि इस बार कांग्रेस ने अपनी तानाशाही कि राजनीति को खुलकर सामने लाया है. जिसके लिए सदा से ही धीमी आवाज में कहा गया है कि कांग्रेस एक तानाशाही का शासन करने वाली पार्टी है. आज कांग्रेस का वो चेहरा सबके सामने आ गया है.

                   एक साथ तानाशाही पूर्ण रवैया अपनाते हुए कांग्रेस ने डीजल और रसोई गैस के दाम बेतहाशा बढ़ा दिए.साथ ही इस बात पर यदि सरकार गिरती है तो उसके विदेशियों को लाभ पहुंचाने के गुप्त मनसूबे को पूरा करने में कोई बाधा ना आये इसलिए इसका फैसला भी साथ में ही जाहिर कर दिया.

                   यदि सिर्फ गैस के बढे दामो कि है बात कि जाए तो हमने पिछली सभी सरकारों के वार्षिक आम बजट में देखा है कि जब गैस के दाम में चंद रुपयों कि वृद्धि होती थी तो वित्त मंत्री जी देश कि सभी गृहिणियों से उस मूल्य वृद्धि के लिए क्षमा माँगते हुए दिखते थे. किन्तु क्या आज रसकार के पास कोई उपाय ही नहीं रहा जों इनको घरेलु इंधन के दामो में इस तरह बेतहाशा वर्द्धि को अनुमति देना पड़ी. क्या इसके पहले आवश्यक नहीं था कि सरकार अपने अन्य मद के खर्चों को कम करती. एक जानकारी के मुताबिक़ सांसद नवीन जिंदल ने के वर्ष में ९०० से अधिक गैस सिलेंडरों का उपयोग किया.

क्या आवश्यक नहीं था कि पहले इस तरह कि विसंगति को खत्म किया जाता? क्या आवश्यक नहीं था कि एक से अधिक कनेक्शन ले कर घरेलु गैस इंधन के दुरपयोग करने वालों पर रोक के लिए प्रभावी कदम उठाये जाते.

                   साफ़ जाहिर होता है कि कांग्रेस देश कि जनता कि जरा भी हितैषी नहीं है और इसके विदेशी व्यापारियों कि मदत के लिए बार बार पहल करने से मालुम होता है कि यह विदेशियों के इशारे पर कार्य कर रही है.

                    जब मै पोल खोलने कि बात करता हूँ तो इसका सीधा सा मतलब है कि कांग्रेस में शामिल लगभग सभी दल अपने आर्थिक लाभ के कारण ही उसके साथ जुड़े हैं इसका धर्मनिरपेक्षता और कांग्रेस कि नीतियों जैसी बातों से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है. आज भी एक तरफ सब जनहित कि बात को लेकर सड़क पर खड़े हैं किन्तु जब बात आती है समर्थन वापसी कि तो सब गिरगिट कि तरह रंग बदलते नजर आते हैं. साफ़ बात है कि यूपीए एक अलोकतांत्रिक गठबंधन के जरिये देश में शासन कर रहा है.इससे एक बात और भी साफ़ होती है कि मायावती और शरद पवार को सीबीआई से कितना खतरा नजर आ रहा है कि एक विशाल जनहित के मुद्दे पर भी वे खामोश ही नजर आ रहे है या कि कांग्रेस के तलुए चाटते.

                        देश कि जनता को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए. और फिर चुनाव आज हों या कि २०१४ में यदि उन्होंने ऐसे लोगों को सबक नहीं सिखाया तो जन विरोधी गठबंधन देश कि जनता को विदेशियों का गुलाम बनाने में कोई कसर नहीं छोडेगा.

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