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इंसान यहाँ पर बिकते हैं.

badalte rishte
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(आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी,भरोडियाजी,माताप्रसाद जी,अजय दुबे जी आपने कल मेरी जिस रचना पर प्रतिक्रया दी थी वह मंच से लापता होगई है,मंच के थाने ने रपट लिखा दी है. आज यह छोटी सी रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद कुछ अधूरी सी लगे.कृपया माफ़ करना.)

ये देश गुलामो की बस्ती है

इंसान यहाँ पर बिकते हैं,

बोलियाँ रोज ही लगती हैं,

जिस्मओजान यहाँ पर बिकते हैं,

बदहाली और तंगहाली है,

अरमान यहाँ पर बिकते हैं,

शैतान खुदा बन वैठे जो,

भगवान् यहाँ पर बिकते हैं,

दिल वालों की नगरी है,

दिलदार यहाँ पर बिकते हैं,

बेवफाई का आलम ना पूछो,

वफादार यहाँ पर बिकते हैं,

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