badalte rishte
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है प्रलय कि रात बड़ी सी,
और पल दिन का हर इक भारी,
कैसे जिए? कहाँ छिपाए?
पुत्री को जो जन्मे नारी.
देश युधिष्ठिर सा चुप बैठा,
चीर हरता है व्याभिचारी,
गली गली में घूम रहे हैं
गुंडे और बालात्कारी.
है प्रलय कि रात………………
किस दर जाएँ, किसे बताएं
पीड़ा हम मन की सारी,
पुलिस भेष में चोर छुपा है,
रक्षक में भक्षक बैठा है,
सरकारी आश्वासन
घडियाली आंसू,
संवेदना निश्तेज हो चली है,
आज हमारी कल तेरी बारी.
है प्रलय कि रात…………………..
मानवता अब मूल्य खो चुकी
भारतीयता भी सो चुकी,
मानव बन सियार दौडते
रिश्तों के सब भ्रम तोडते,
कैसा रिश्ता कैसी यारी.
है प्रलय की रात……………………
नेक बने इंसान बने हम
भारत माँ की शान बने हम,
लें जनम जब फिरसे माता,
मानव की सन्तान बने हम,
लगे दुनिया प्यारी प्यारी
है प्रलय कि रात बड़ी सी,
और पल दिन का हर इक भारी,
कैसे जिए? कहाँ छिपाए?
पुत्री को जो जन्मे नारी.
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