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आखिरकार टीम अन्ना के दबाव में अन्ना जी ने आंदोलन समाप्ति की घोषणा कर ही दी.विगत वर्षभर से देश उनके आंदोलन को समर्थन कर रहा है. सब की अन्ना जी से अपेक्षाएं भी बहुत हैं. जब पिछली बार मुंबई का आंदोलन फेल हुआ तो जन में निराशा भी साफ़ देखी गयी. क्या इस तरह आंदोलन समाप्ति की घोषणा उस् जन मानस की भावना पर कुठाराघात नहीं है?
एक सफल और एक असफल आंदोलन के बाद अन्ना पुनः टीम के साथ अनशन पर बैठे तो जन समुदाय कुछ देरी से ही सही उपस्थित तो हुआ ही. सबके मन में यही संकल्प था की इस बार आंदोलन को असफल नहीं होने देना है. किन्तु ये क्या अन्ना खुद ही अपने आंदोलन को असफल कर दिया.
आखिर हुआ क्या? देश के कुछ शायद २५ साफ़ छवि के जाने पहचाने नामों ने अन्नाजी से अपील की.वे अनशन का मार्ग छोड़कर राजनीति में आजाये. इस मांग पत्र या सुझाव पत्र के पढ़े जाने के कुछ समय बाद ही अन्ना और टीम ने फैसला ले लिया की वे राजनीति में आयेंगे. क्या इतना बड़ा फैसला इतनी जल्दी संभव था? क्यों अन्ना जी ने उन महानुभावों से अपील नहीं की यह कि वे सलाह देने से बेहतर है कि आंदोलन में शामिल हो कर आंदोलन को आगे बढाएं? जब एक एक करके उनके जैसे नाम मंच पर आयेंगे तो सरकार को झुकना ही पडेगा. किन्तु ऐसा नहीं हुआ.
आंदोलन विफल क्यों हुआ? रणनीतिकारों से कहीं ना कहीं चूक हुई है. यदि राजनीति में आने का इरादा था ही तब आंदोलन शुरू करने से पहले ही इस बात के संकेत दिए जाने थे. क्या टीम अन्ना नहीं जानती थी की इस बार सरकार जो कि लोकपाल पर कार्यवाही शुरू कर चुकी है कुछ और करने कि स्थिति में है ही नहीं. यदि फिरभी उन पर दबाव बनाना है तो टीम अन्ना को एक जगह एकत्रित होने से बेहतर होता कि वे अलग अलग सभी राज्यों में जाते और अधिक से अधिक लोगों को जोड़कर और अधिक दबाव बनाते? मगर ऐसा हुआ नहीं.
आंदोलन के दौरान कि घटनाओं पर हम नजर डालें तो हमने देखा कि पहले दूसरे दिन जन समुदाय उस तरह नहीं जुटा जिसकी आवश्यकता थी. सरकार के दबाव में आये टीवी रिपोर्टर घूम घूम कर खाली पड़े मैदान के द्रश्य दिखाते रहे. अन्ना समर्थक जन समुदाय यह देखकर जंतर मंतर कि तरफ दौड़ पड़ा तब तक अन्ना भी अनशन पर बैठने कि तैयारी कर चुके थे. सरकारी दबाब और शान्ति भूषण के बयान के सहारे टीवी कैमरे मैदान से गायब हो गए. जैसे ही अन्ना ने राजनीति में आने कि घोषणा की वैसे ही टीवी कैमरे पुनः सक्रीय हो गए.
टीवी पर पोल. टीवी पर जोरशोर से राजनीति या आंदोलन के लिए पोल शुरू हो गया. एक बड़े प्रतिशत के साथ यह बताया गया कि सभी चाहते हैं कि अन्ना राजनीति में आयें. जबकि हकीकत यह थी कि कोई अन्ना समर्थक नहीं चाहता था कि अन्ना राजनीति में आयें. फिर किसने राजनीति के लिए वोट किया? जिसने भी राजनीति के लिए वोट किया यकीनन वह अन्ना समर्थक नहीं था.
तीन घंटे में राजनीति में आने का फैसला और टीवी पर राजनीति में आने के लिए वोट दोनों के पीछे अन्ना टीम के ही कुछ लोगों का सरकार के साथ मिलकर किया गया षडयंत्र है. जिसमे अन्ना उलझ कर रह गए हैं. यदि यह पूर्व नियोजित होता तो अवश्य ही अन्ना इसका खुलासा करते क्योंकि अन्ना ने सदा ही कहा है कि कथनी और करनी को एक रखना है.
यह कोई पूर्व नियोजित फैसला नहीं है यह एक षडयंत्र है जिसमे अन्ना बुरी तरह फंस गए हैं. सारा जनमानस जो अन्ना के पीछे खडा था पूरी तरह बिखर गया है. अब जिस राजनितिक दल का गठन अन्ना करेंगे उसको उन लोगों का समर्थन हासिल होगा इसमें भी शक है. आज कि परिस्थिति देखकर लगता है इसमें अधिकाँश लोग किसी भी पक्ष को बोट नहीं करेंगे. इसका पूरा लाभ कांग्रेस को ही मिलेगा.
राजनीति में सफलता के लिए जयप्रकाश नारायण जी द्वारा चलाये आंदोलन कि तरह सफलता प्राप्त करना कोई आसान खेल नहीं है. फिरभी अन्ना यदि ऐसा जादू करने में कामयाब होते हैं तो ही वे सत्ता के करीब पहुँच सकते हैं अन्य कोई मार्ग नहीं है.
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