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यूं ही —

दबंग आवाज
दबंग आवाज
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यूं ही —


यूं क्यूं ,
मुँह छिपाकर आते जाते हैं ,
जब कन्नी काटकर निकलना हो मुश्किल
बस मुस्करा कर निकल जाईये ,


यूं ही,
न कहा होगा कबीर ने
निंदक नियरे राखिये ,
सच हर दौर में हाशिए पर रहा ,


यूं ही ,
जम्हूरियत जम्हूरियत करते नहीं थकते
मुल्क के सियासत दां ,
खून चूसने की ये मशीन अच्छी है ,


यूं ही ,
नहीं छोड़ा होगा नर्गिस ने रोना
अपनी बेनूरी पर ,
तुमसे उसकी मुलाक़ात जरुर हुई होगी ,


यूं ही ,
मोहब्बतें कामयाब नहीं होतीं ,
फ़साने लाख बनने के बाद
जिंदगी एक अफसाना बनती है ,


अरुण कान्त शुक्ला –

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