sahity kriti
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लिए अरमानों की डोली
छोड़ बाबुल का अंगना
चली दुल्हनिया पिया संग|
रक्त बीज-सा दहेज़ दानव
खड़ा द्वारे अपने पैर पसारे|
बिका दूल्हा नीलामी लड़की की
विवाह नहीं था कोई व्यवसाय
जहाँ टूटे कलियों के अरमान
और तोड़े माँ-बापू के अरमान|
झूल गयी वो फाँसी पर
खुद आग लगाई या फिर जलाई |
अरे भारतीय युवाओं !
तुम्हारे पौरुष को धिक्कार!
खो जाओगे सभी कुछ अपना
साथ नहीं देंगे दहेज़ का टी वी
फ्रिज, आभूषण और कार
एक दिन तुम हो जाओगे बे-कार|
बेटी तो है एक धरोहर
सहेजो इन्हें अपने घर
मत तोड़ो कलियों के अरमानों को
अब तो जागो मिटा दो इस दानव को
मत करो अब कलंकित
विवाह जैसे पवित्र बंधन को
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