sahity kriti
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दुशाला ओढ़े बैठी मन के मीत में
आसमान से टूटते तारे को देखा जब
मांग उठी टूटते तारे से ……
खुल जाये सांकल पिया द्वार की
हो अद्भुत पिया मिलन भी !!!
रवि ना देना प्रचंड ऊष्म ताप
चाँद देना मन की शीतलता
कहीं शीत वायु ना चुभे गात में
बन कर कोई तीर
खोजूं रत्न सागर के अथाह जल में
गूंथ कर पिरो लूँ स्नेह सूत्र में
बंधू स्नेह पाश में !!
हो तभी अद्भुत पिया मिलन !
अद्भुत पिया मिलन !!!!
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