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मैं कुछ कहूँगी …

sahity kriti
sahity kriti
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आज मैं कुछ कहूँगी इनसे …………………..!
सूरज से कहूँगी-
न तपो तुम न तपाओ हमें ,
बस करो तप्त इतना कि दूसरे न तपें हमसे !
चाँद ! तुम तो हो शीतल बहुत
पर हमें न देना इतनी शीतलता,
कि शीत हों जाएं सपने हमारें !
तारें बनेंगें साथी हमारे
जब निशा वधूटी होगी घूंघट में !
नदियाँ तुम तो हो धारा प्रवाह ,
बहो तुम और बहाओ मुझे ,
पर इतना न बहाओ कि
विलीन हो जाये अस्तित्त्व ही !
धरती माँ से भी कहूँगी ,
वहन करती हो भार संतान का अपनी ,
करो वहन हमें भी पर इतना कि
हो ना जाएँ अशक्त !
……………*********………….,

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