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होली बसत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्त्वपूर्ण भारतीय रंगीन त्यौहार है |
राग रंग का यह यह लोकप्रिय पर्व बसंत का सन्देश वाहक भी है | चूंकि यह पर्व बसंत ऋतु में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है इसलिए इसे ‘बसंतोत्सव’ और ‘काममहोत्सव’ भी कहा गया है | राग(संगीत) और रंग तो इसके मुख्य अंग तो हैं ही पर इनको अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचाने वाली प्रकृति भी इस समय रंग-बिरंगे यौवन के साथ अपनी चरम अवस्था पर होती है | सर्वत्र वातावरण बड़ा ही मनमोहक होता है | यह त्यौहार फाल्गुन मास में मनाये जाने के कारण ‘फाल्गुनी’ के नाम से भी जाना जाता है और इस मास में चलने वाली बयारों का तो कहना ही क्या……..! हर प्राणी जीव इन बयारों का आनंद लेने के लिए मदमस्त हो जाता है……..! कोई तो अपने घरों में बंद होकर गवाक्षों से झाँक कर इस रंगीन छटा का आनंद लेता है और कोई खुले आम सर्वसम्मुख मदमस्त होकर लेता है……! यहाँ उम्र का कोई तकाज़ा नहीं बालक ,बच्चे बूढ़े वृद्ध हर कोई रंगीनी मस्तियों में छा जाते हैं…….! मेरे मन में भी एक प्रश्न का छोटा सा अंकुर जन्मा कि आखिर इस रंगोत्सव की सुन्दर छटा का आनंद लेने के पीछे इसका इतिहास क्या है जो इसके आनंद लेने का सुख बड़ा ही अद्भुत है………! तो फिर कुछ नेट के माध्यम से और थोड़ा बहुत जो कुछ भी मुझे पता है, पुस्तकों व पत्रिकाओं में या अपने हिन्दी और संस्कृत साहित्य में पढ़ा है , उसी आधार पर वह बहुत ही सक्षिप्त रूप से आज आप सबके साथ शेयर कर रहीं हूँ ………! सबसे पहले होली पर्व के विषय में इतिहासकारों का क्या कहना है जानने का प्रयत्न करते हैं……..
इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था |इस पर्व का वर्णन अनेक पुरातन धार्मिक पुस्तकों में मिलता है | इनमें प्रमुख जैमिनी के पूर्व मीमांसा और गार्ह्य-सूत्र हैं | ‘नारद पुराण’ व ‘भविष्य पुराण’ जैसे पुराणों की प्राचीन हस्तलिपियों में और ग्रंथों में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है | बिंध्य क्षेत्र के रामगढ़ स्थान पर स्थित ईसा से तीन सौ वर्ष पुराने एक अभिलेख में भी इसका उल्लेख किया गया है|
सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबेरुनी जो एक प्रसिद्ध फारसी विद्वान् ,धर्मज्ञ ,व विचारक थे ने भी अपनी एक ऐतिहासिक यात्रा संस्मरण में ‘होलिकोत्सव’ का वर्णन किया है | मुस्लिम कवियों ने भी अपनी रचनाओं में होली पर्व के उत्साहपूर्ण मनाये जाने का उल्लेख किया है……| मुग़ल काल और इस काल में होली के किस्से उत्सुकता जगाने वाले हैं……… ! अकबर का जोधाबाई के साथ और शाहजहाँ का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है | राजस्थान के एक प्रसिद्द शहर अलवर के संग्रहालय के एक चित्र में तो जहाँगीर को नूरजहाँ के साथ होली खेलते हुए दर्शाया गया है | इतिहास में शाहजहाँ के समय तक होली खेलने का मुगलिया अंदाज़ ही बदल गया था | इतिहास में शाहजहाँ के ज़माने में होली को ‘ईद-ए-गुलाबी’ या ‘आब-ए-पाशी’ कहा जाता था जिसे हिन्दी में ‘ रंगों की बौछार’ कहते हैं| अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर के बारे में प्रसिद्ध है कि वह तो होली के इतने दीवाने थे कि होली पर उनके मंत्री उन्हें रंग लगाने जाया करते थे | मेवाड़ की चित्रकारी में महाराणा प्रताप अपने दरबारियों के साथ मगन होकर होली खेला करते थे |
मध्ययुगीन हिन्दी साहित्य में जैसा कि सर्वविदित है भगवान कृष्ण की लीलाओं में भी होली का वर्णन मिलता है | भक्तिकाल और रीतिकाल के हिन्दी साहित्य में होली और फाल्गुन माह का विशेष महत्त्व रहा है | आदिकालीन कवि विद्यापति से लेकर भक्तिकालीन कवि सूरदास , रहीम, रसखान,पद्माकर ,जायसी, मीराबाई आदि और
रीतिकालीन बिहारी , केशव और घनानंद आदि अनेक कवियों को तो यह विषय बहुत ही लोकप्रिय रहे हैं | भक्ति शिरोमणि कवि सूरदास जी ने तो बसंत और होली पर करीब अठहत्तर पद लिखे हैं| सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया, अमीर खुसरो व बहादुर शाह ज़फर जैसे मुस्लिम सम्प्रदाय का पालन करने वाले कवियों ने भी होली पर रचनाएँ लिखीं हैं जो आज भी जनसामान्य में लोकप्रिय हैं | आधुनिक हिन्दी कवियों में प्रेमचंद की ‘ राजा हरदोल’ प्रभु जोशी की ‘ अलग-अलग तीलियाँ’ तेजेंद्र शर्मा की ‘ एक बार फिर होली’ ओमप्रकाश अवस्थी की ‘ होली मंगलमय हो’ और स्वदेश राणा की ‘ हो ली में होली’ के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं |
संस्कृत साहित्य में बसंत ऋतु और बसंतोत्सव अनेक कवियों के विषय रहे हैं |महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘ऋतुसंहार ‘ में पूरा एक सर्ग ही ‘ बसंतोत्सव ‘ को समर्पित है ! कालिदास के ‘कुमारसंभव’ और ‘मालविकाग्निमित्र’ में ‘रंग ‘ नाम के उत्सव का वर्णन है ! भारवि व माघ तथा अन्य संस्कृत के कवियों ने बसंत की बहुत ही अधिक चर्चा की है ! हिन्दी व संस्कृत साहित्य के साथ- साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत ,लोक गीत, और फ़िल्मी संगीत की परम्पराओं में भी होली का विशेष महत्त्व है…………इस क्षेत्र में अल्पज्ञ होने के कारण और कुछ अधिक नहीं बता सकती हूँ…..!
इन आधारों पर केवल यही कहा जा सकता है की यह पर्व सबसे पुराने पर्वों में से है और यह कितना पुराना है यह ठीक से नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इस विषय पर कोई भी सही जानकारी कहीं नहीं मिलती है लेकिन इसके विषय में इतिहास ,पुराण व साहित्य में अनेक कथाएं मिलती हैं ( इनके बारे में फिर कभी समय मिलने पर चर्चा करूंगी ) इन कथाओं पर आधारित साहित्य व फिल्मों में अनेक दृष्टिकोणों से बहुत कुछ कहने का प्रयत्न किया गया है संक्षिप्त रूप से यही कहा जा सकता है कि इन सभी का एक ही उद्देश्य है…………..असत्य पर सत्य की व दुराचार पर सदाचार की विजय ,और इस विजय को उत्सव के रूप में मानना………….!
तो फिर चलें……. देर किस बात की…….. सभी कुछ भूल कर आनंद लेते हैं इस रंगीन विजयोत्सव का…………क्योंकि इस मस्ती भरे रंगीन उत्सव को मनाने की तैयारी तो इस जागरण मंच पर भी बड़े ही ज़ोरों सेचल रही है………….सर्वत्र रंगों की बरसात हो रही है और कहीं रंगों से भरे ड्रम रखे हुए हैं………….फाग गीतों से भरा पडा हैं मंच……… तो कहीं हंसी के रंगीन फव्वारे भी चल रहे हैं……… तो फिर आइये हम सब मिलकर बैर भाव , मनोमालिन्य आपसी रंजिश व मलिनता सब कुछ भूलकर ढोलक, झांझ मजीरे की ताल के साथ ( मंच पर तो केवल भावनाओं को ही प्रमुखता दी जा सकती है प्रकट रूप से संभव नहीं है )नृत्य ,संगीत व हास्य के ही रंगीन फव्वारों के रंग में डूब जाते हैं……………! इस रंगोत्सव पर तो अब कोई भी नहीं बच सकता चारों और से रंगीन फुहारें जो पड़ रहीं हैं……………! बस हम सब इन मदमस्त रंगीन फुहारों का जीवन भर एक दूसरे को आनंद लेते व देते रहें……….!
होली की मंगल कामनाओं के साथ…………….!
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