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हिन्दी शब्द पर्यावरण ‘परि’ तथा ‘आवरण’ शब्दों से मिलकर बना है है। ‘परि’ का अर्थ हैं – ‘चारों तरफ’ तथा ‘आवरण’ का अर्थ हैं – ‘घेरा’ अर्थात प्रकृति में जो भी चारों ओर परिलक्षित है यथा- वायु, जल, मृदा, पेड़-पौधे तथा प्राणी आदि ये सभी पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं और ये सभी हमारे स्वस्थ और सुखी जीवन में सहायक होते हैं | जब ये प्राकृतिक सम्पदा धीरे -धीरे नष्ट होने लगती है तो पर्यावरण दूषित होने लगता है और सर्वत्र प्रदुषण का साम्राज्य हो जाता है यह प्रदुषण ऐसी पर्यावरणीय समस्या है जो पूरे विश्व में मुंह बाये खड़ी है….विश्वव्यापी है ! पशु-पक्षी ,पेड़-पौधे, मानव तथा हर जीव इसकी चपेट में हैं | तो आइये आज इस गंभीर समस्या पर थोड़ा विचार करते हैं …….
एक ओर मानव की महत्त्वाकांक्षाओं ने उसे उन्नत एवम समृद्ध बनाया है तो दूसरी और इस महत्त्वाकांक्षा के कारण ही कुछ दुष्परिणाम भी हुआ हैं पुराणों के अनुसार महाराज पृथु ने पृथ्वी का दोहन कर मानव जीवनोपयोगी पदार्थ निकाले थे पर आज मानव पृथ्वी ही नहीं आकाश ,वायु आदि सम्पूर्ण प्रकृति का दोहन कर रहा है लेकिन उसकी महत्त्वकांक्षा कि अग्नि शांत नहीं हो रही है | निरंतर सुख-समृद्धि और वैभव की आकांक्षा ने ही प्रकृति के अपार भंडार को खोदना प्रारंभ किया | प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करके हम अपना विकास तो कर रहे हैं लेकिन उसका भयंकर दोहन कहीं न कहीं सृष्टि की विरासत को ही संकट में डाल रहा है| इतना ही नहीं, नदियों व जंगलों के भयंकर दोहन ने कई तरह के सवाल खड़े कर दिए हैं| कभी जीवनदायिनी मानी जाने वाली नदियों का अस्तित्व ही आज खतरे में है| नदियां देश के बड़े हिस्से में पानी की कमी को पूरा करतीं है शहरों के विकास की अंधी दौड़ में कई पावर प्रोजेक्ट आदि लगाकर नदियों और तालाबों का दोहन किया जा रहा है तो कहीं लोगों की ऊँचे -ऊंचे भवन बनवाने की लालसा की अग्नि वृक्षों को जलाकर जंगलों को नष्ट कर पर्यावरण को दूषित व असंतुलित कर रही है यहाँ न केवल नदियां और तालाब ही प्रभावित हैं बल्कि इसका पशु-पक्षियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है इनकी कई प्रजातियां विलुप्त हो गयी हैं या फिर विलुप्त होने के कगार पर हैं | कृषि योग्य भूमि निरंतर काम होती जा रही है ऐसे में हम सबकी की अहम ज़िम्मेदारी हो जाती है कि चूँकि प्रकृति हमारी अमूल धरोहर है अतः प्रकृति प्रदत्त संपत्ति का सही निर्वहन करें और उसे पूर्ण संरक्षण प्रदान करें उतनी ही चीज़ों का सही उपयोग करें जीतनी की आवश्यकता है यहाँ मैं गांधी जी का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगी जिसे मैंने उन्ही की पुस्तक में पढ़ा था …
एक बार गांधीजी ने दातुन मंगवाई। किसी ने नीम की पूरी डाली तोड़कर उन्हें ला दिया। यह देखकर गांधीजी उस व्यक्ति पर बहुत बिगड़े। उसे डांटते हुए उन्होंने कहा, जब छोटे से टुकड़े से मेरा काम चल सकता था तो पूरी डाली क्यों तोड़ी? यह न जाने कितने व्यक्तियों के उपयोग में आ सकती थी। गांधी जी की इस बात से यह सीख जा सकता है कि प्रकृति से हमें उतना ही लेना चाहिए जितने से हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके । पर्यावरणीय समस्याओं से निजात पाने का यही एकमात्र उपाय है।
तो आएं हम सभी इस विश्व पर्यावरण दिवस पर संकल्प लें कि केवल स्वयं के विकास व सुरक्षा के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के संरक्षण के लिए भी सकारात्मक व जरूरी कदम उठाएंगे|
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