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हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में ….`हिंदी सदानीरा सलिला सम सतत प्रवाहिनी’

sahity kriti
sahity kriti
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विविध जातियों, धर्मों एवं भाषाओं वाले इस देश को एकता के सूत्र में पिरोने का काम हिन्दी ही करती है। इसलिए राजभाषा होने के साथ-साथ विशाल जन-समुदाय द्वारा बोली-समझी जाने के कारण हिन्दी को हमारे देश की राष्ट्रभाषा होने का गौरव भी प्राप्त है। हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है और अपने आप में एक समर्थ भाषा है। प्रकृति से यह उदार ग्रहणशील, सहिष्णु और भारत की राष्ट्रीय चेतना की संवाहिका है वर्तमान अंग्रेज़ी केंद्रित शिक्षा प्रणाली से न सिर्फ़ हम समाज के एक सबसे बड़े तबक़े को ज्ञान से वंचित कर रहे हैं बल्कि हम समाज में लोगों के बीच आर्थिक सामाजिक व वैचारिक दूरी उत्पन्न कर रहे हैं, लोगों को उनकी भाषा, उनकी संस्कृति से विमुख कर रहे हैं। लोगों के मन में उनकी भाषाओं के प्रति हीनता की भावना पैदा कर रहे हैं जो कि सही नहीं है।
समय है कि हम जागें व इस स्थिति से उबरें व अपनी भाषाओं को सुदृढ़ बनाएँ व उनको राज की भाषा, शिक्षा की भाषा, काम की भाषा, व्यवहार की भाषा बनाएँ। इसका मतलब यह भी नहीं है कि भावी पीढ़ी को अंग्रेज़ी से वंचित रखा जाए, अंग्रेज़ी पढ़ें सीखें परंतु साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि अंग्रेज़ी को उतना ही सम्मान दें जितना कि ज़रूरी है, उसको सम्राज्ञी न बनाएँ, उसको अपने ऊपर हावी कदापि न होने दें और इसमें सबसे बड़े योगदान की ज़रूरत है समाज के पढ़े-लिखे वर्ग से ,युवाओं से, उच्चपदों पर आसीन लोगों से, अधिकारी वर्ग से बड़े औद्योगिक घरानों से क्योंकि आज हिंदी को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है जिसकी वह अधिकारिणी है। शायद मेरा ये कहना एक दिवास्वप्न हो क्योंकि अभी तक तो ऐसा हो नहीं रहा है और शायद न भी हो। पर साथ-साथ हमको महात्मा गांधी के शब्द ‘कोई भी राष्ट्र नकल करके बहुत ऊपर नहीं उठता है और महान नहीं बनता है’ याद रखना चाहिए।
हिन्दी की शब्द सम्पदा अपार है। हिन्दी सदानीरा सलिला की तरह सतत प्रवाहिनी है इतनी बोली जाने वाली भाषा दूसरी नहीं है। इसका कारण हिन्दी का अपना लचीला स्वभाव है, उसमें दूसरी भाषाओं को समा लेने की अद्भुत क्षमता है।इसकी शब्दावली आर लिपि इतनी सरल और वैज्ञानिक है कि सभी भारतीय इसको सरलतापूर्वक समझ और सीख सकते हैं | यह देखा गया है कि अन्य सुदूर प्रान्तों के लोग भी हिंदी बोली जाने वाली भूमि पर आकर इसे स्वल्प काल में ही सीख लेते हैं और बोलने तथा समझने लग जाते हैं, पर अन्य प्रान्तों की भाषाओँ के सम्बन्ध में अपेक्षाकृत अधिक कठिनाई होती है| इस प्रकार यह भाषा अधिक उन्नत भी है |ज्ञान,विज्ञान आध्यात्म आदि से सम्बद्ध विषयों का प्रतिपादन इसमें सरल ढंग से हो सकता है| आज उसके कोश में मराठी, गुजराती, पंजाबी, उर्दू, तमिल, तेलुगू, कन्नाड़, मलयालम तक के शब्द मिक्स होकर आते-जाते हैं। इस तरह उसने सिद्ध कर दिया है कि अंग्रेज़ी या फिर किसी अन्य भाषा के साथ उसकी कोई समस्या नहीं है। वे संग-संग चल सकती हैं। और यह सब हिन्दी भाषा को एक नई व्याप्ति देता है, जो अभूतपूर्व है।

इसी सन्दर्भ में मेरी कुछ काव्य पंक्तियाँ …….

हूँ सब भाषाओं की एक भाषा मैं
चाहत है अतुलनीय वात्सल्य की
माँ भारत की गोद में !
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किया श्रृंगार अलंकरणों का जीवन में
करते हैं रसपान सभी रसों का मेरे
पड़े पग जहाँ हुई माटी निहाल वहाँ
छोड़ी छाप भारत की जहाँ तहाँ |
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बनकर सेतु देश को कड़ियों से जोड़ती
खड़ी हूँ बनकर संतरी बहनों की नहीं करती
भंग कुल कानि हूँ मैं एक पैबंद अम्बर सा
ढक जाएँ कलुषित जिससे ऐसा |
***********************
पल रही हूँ छत्र छाया में भारत माता की
सौंधी-सौंधी गंध लेती देश की माटी की
हुआ उन्नत मस्तक मेरा जन्म हुआ जहाँ पर
हूँ सब भाषाओँ की एक भाषा मैं
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हिंदी दिवस के अवसर पर जागरण परिवार के सभी सदस्यों को व इस वैश्विक मंच के सभी ब्लॉगर साथियों को तथा अन्य सभी साहित्य प्रेमियों को मेरी ओर से
हार्दिक शुभकामनायें !!!
अलका

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