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तन और देश कोहरे में डूबे……………………

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मन कहता है कोहरा ना हो जीवन में …………….तन कहता है है कोहरा ही हो जीवन में ………………धूप से खेल खेल कर रोज दिन बिताते ………………….आज कुहासा क्यों मिल आया है जीवन में ………………जिन्दगी कुछ सिकुड़ती , दुबकती हर पल ……………….ना जाने कौन छीन ले और हो ही न कल ………………या कैसा है समय आलोक सभी के जीवन में ……………..बेटी माँ मांग रही है मौत भारत के जीवन में ……………………..केवल रैली और धरना प्रदर्शन करके हम सब को बचने की कोशिश नही करना चाहिए …….पुरे देश को फंसी और मृत्यु दंड के लिए आन्दोलन चलाना चाहिए ………………..कुछ लोग कहते है की यह जानवर जैसी क्रिया है ………..पर मैं आपको बताता हूँ की पृथ्वी पर कोई ऐसा जानवर नही है जो मादा के साथ बिना बिना सहमति के शरीर संसर्ग कर सकता हो …..हम तो जानवर कहलाने लायक भी नही रह गए ………………क्या आपको पूरा विश्वास है की आपके इस मौन से एक दिन आपका घर रुदन की चपेट में नही आएगा …………………………यही है कोहरा का सही अर्थ ……………..रोकिये ये अनर्थ ……………सुप्रभात

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