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आज चला तो धूप में सुबह कदम थे …………………..पर रुके तो अँधेरे के हमदम थे …………………..अच्छा करके भी अच्छा नही मिलता …………………..पर दिल दिमाग के अपने दमखम थे …………………क्यों रुकते हो डर कर परिणाम से यहाँ ………………………क्या बता सकते हो तेरी मंजिल है कहा …………………..जो सोचते नही डर कर बैठना कही …………..उन्ही की मुट्ठी में होता हैं सारा जहाँ ………………….आप कुछ भी कर सकते है पर जब सही करने वाले के हिस्से में गलत आता हैं तो अँधेरे से भागना कैसा …….तो करिए स्वागत अँधेरे का और कहिये …..शुभ रात्रि
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