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देखो आँखे बोझिल हो रही है ……………..हकीकत फिर ओझल हो रही है ………..कितनी देर समेटता आलोक तुझे ……………….अँधेरे की बात सपने से हो रही है ………………अगर चाहो तो खुद देख लो आकर …………….एक और दुनिया मेरे संग हो रही है …………………कल फिर इसी दुनिया की बात होगी ……………………..पूरब की चाहत अभी से हो रही है ……………………..९९ का फेरे में डूब कर हम रोज सपने की दुनिया और हकीकत की दुनिया में गोते लगाते रहते है और इसी लिए आपको कहना ही पड़ेगा …..शुभ रात्रि
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