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काँटों में भी फूल खिला कर ,
सबको हरसाना आता है ,
फिर तो तुम मानव हो पगले ,
तुम्हे ईश दिखाना आता है |………१
मै आग सा जीवन लेकर ,
पानी सा जीवन क्यों खत्म,करूं
दूर सही पर आभास आलोक सा ,
मोती , मछली सा क्यों मै मरूँ…..२
आलोक की चाहत सबमे रहती ,
अंधकार समेटे क्यों बैठा है ,
घुट घुट कर आक्रोश सूर्य सा ,
अंतस तेज बन क्यों ऐठा है ,
दूर सही पर प्यारा सा लगता ,
हर सुबह जगाने आता है ,
आलोक न रहता किसी एक का ,
सिर्फ मुट्ठी में अँधेरा पाता है …..३ …..इस का कोई मतलब आपको समझ में आ रहा है …..डॉ आलोक चान्टिया
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