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क्या छलते रहे रिश्तो के दाएरे में

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जब से तुमको मुस्तरका किया ……………
कहा मैं एक बार भी जिया ………………..
लोगो के बहकावे बाँट डाला………………
किसने नहीं जहर का घूंट पिया ………….
आज तेरे आँचल को खीच रहे …………
सभी ने सिर्फ अपना हिस्सा लिया …………..
माँ कहकर तेरे वक्ष को निचोड़ा ………..
देख तेरे कितने हिस्से गिरवी दिया ……………..
बेमन से भी अगर तुझे अपना कहते ………..
शर्म आती कि हमने ये क्या किया …………….
आज आलोक अँधेरे में आ है खड़ा …………….
देख तेरे अश्क प्यास समझ सबने पिया …………………..आईये एक बार सिर्फ एक देश में छिपी उस माँ को महसूस करे जिसको हमने भावना के दलदल में फसा कर न जाने कितनी बात चौराहे पर खड़ा किया है …………………………..क्या आप देश महसूस कर पा रहे है ………….शुभ रात्रि

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