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मैं क्यों कहूँ आज फिर रात हो गयी ………… शायद सूरज की पश्चिम से बात हो गयी ………………..हर कोई अपना आराम ढूंढ़ता है यहाँ …………….बस सुबह का उजाला देख रात साथ हो गयी ……………ऐसा नही कि आलोक को नही कोई तलाश …………………..पर क्या करें जिन्हें तलाशा उनसे उचाट हो गयी ………………कहते है हीरा चमकता अँधेरे में अक्सर ………………..इसी लिए कोयले में एक शाम हताश हो गयी ……………….सोच कर देखिये और अपने में हीरा ढूढ़ लीजिये …पर इसके लिए कहना पड़ेगा ……शुभ रात्रि
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