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सबसे पहले देश ………..

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संविधान की प्रासंगिकता और सार्थकता तब इस देश में काफी बढ़ जाती है जब किसी आतंकवादी या जघन्य अपराध करने वाले के लिए वकालत करने वाले अनुच्छेद ७२ के अंतर्गत मृत्युदंड के लिए क्षमा याचना करने राष्ट्रपति के पास पहुंच जाते है | इतना हंगमा तब इस देश में नही मचता जब अनुच्छेद ३४५ के अनुरूप इस देश में हिंदी अपनी जगह नहीं पा सकी | यहाँ तब उन लोगो की जमात मेढक की तरह शीट निद्रा में चली जाती है जब इस देश में रहने वाले को आज भी अनुच्छेद १५ और १७ के अंतर्गत भेदभाव , छुआ छूत का सामना  करना  पड़ता है और एक जिन्दा भारतीय को  स्वतंत्र भारत में अपने होने पर रोता है तिल तिल कर करके मरता है पर कोई तब नहीं कहता …रग्गु हम शर्मिंदा है ……….भेदभाव यहाँ पर जिन्दा है …………दलित हम शर्मिंदा है ………..क्यों जाती यहाँ आर जिन्दा है क्योकि एक सारी रोटियां बसी हो गयी है | जिस संविधान के इन सरे अनुच्छेदों के लिए किसी के शरीर में ऐठन नहीं होती उन्ही शीट काल में अलसाये लोगो को अनुच्छेद १९ में अभिव्यक्ति की आजादी पर इतना कुठारा घाट दिखाई देता है कि मौका मिले तो वो इसके लिए वोट क्लब पर धरना देने लगे कि हम अपने माँ बाप को गली क्यों ना दे | अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उनको मूलाधिकार दिखाई देता है पर अनुच्छेद १४ , १५  १७ उनको नहीं दिखाई देता | और उनके लिए अनुच्छेद १२४ अ का भी कोई महत्त्व नहीं है क्योकि देशद्रोह के मानक तो इन्ही को सिद्ध करने है !!!!!! क्या फर्क है खाप पंचायत के आनप सनाप फैसले और उन लोगो में जो देश व्यापित अराजकता फैला कर ये साबित करने में लगे है कि देश की सबसे गरीब यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट लीडर के साथ अन्याय हुआ है | इंदिरा गांधी ने जब इस देश में आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए बुले स्टार ऑपरेशन चलाया और स्वर्ण मंदिर अकालतख्त ओ घेरा तो क्या गलत किया क्या गुरु द्वारा में पुलिस सेना घुसनी चाहिए थी !!!!!!!!!!! तो फिर अगर देश की राजधानी में बैठ कर कुछ लोग देश की अस्मिता के खिलाफ बात करें तो क्या पुलिस को चूड़ी पहन कर बैठना चाहिएथा !!!!!!!!!!!! शायद ये देश भूल रहा है कि समय से अगर निर्णय नहीं लिए जाते है तो दूसरे तराईन युद्ध की तरह पृथ्वी राज  हार जाते है | पढ़ने वाले स्टूडेंट के लिए कैंपस में पुलिस की मनाही है ना की राष्ट्र विरोधी कार्य करने वालो के लिए पुलिस कुछ नहीं करेगी , इसकी मनाही है >…आज देश में जिस तरह से लोग एक गलत आदमी के समर्थन में उत्तर कर अपने शीतकालीन निद्रा का परिचय दे रहे है उस पर मुझे बचपन में सुनी एक कहानी याद आ रही है …..एक ब्राह्मण को कही से दान में एक बछिया मिली और वो ख़ुशी ख़ुशी पाने कंधे पर लाड कर जा रहा था | रास्ते में चार ठग मिले उन्हों ने सोचा क्यों ना ब्राह्मण की कबाछिया को हड़प लिया जाये और ऐसा विचार करके वो चारों ठग थोड़ी थोड़ी दूर पर खड़े हो गए …..पहले एक ठग में ब्राह्मण से कहा आरे महराज आप अपने कंधे पर ये क्या लड़े लिए जा रहे है ????? छी छी छी कहा आप और कहा आपके कंधे पर बकरी ब्राह्मण ने अपने कंधे से बछिया उतारी और कहा देखो ये बकरी नहीं और उसे फिर कंधे पर लाद कर चल दिया | कुछ दूर जाने पर दूसरा ठग मिला ( जैसे देश के जगह जगह रैली निकाली जा रही है ) उसने कहा महाराज अनर्थ हो गया ये आपने क्या कर डाला घर कलयुग आ गया एक ब्राह्मण अपने कंधे पर बकरी लादे है ऐसे क्या हो गे महराज जो आपने ऐसा काम किया ? ब्राह्मण ने फिर बछिया उतारी और देखा कि वो बछिया ही है और फिर लाद कर चल दिया | उसके बाद तीसरा मिला उसने भी यही कहा लेकिन जब चौथे ठग ने भी यही कहा तो ब्राह्मण को लगा कि लगता है उसको ही दृष्टि भ्रम हो गया है ये बकरी ही है और उसने अपने कंधे से बछिया निकाल कर फेक दी और चारो ठगो ने उस बछिया को उठाया और चम्पत हो गए \ आज देश में कुछ ऐसा ही हो रहा है और अच्छे लोगो तो एक साथ नहीं खड़े हो रहे पर गलत लोग एक साथ खड़े होकर गलत बात को सही सिद्ध करने में लगे है लेकिन जब ऐसे लोगो को अपनी बात को सही साबित करने के लिए अनुच्छेद १९ कि दुहाई देनी पद रही है तो इन्हो अन्य अनुच्छेदों को भी समझना चाहिए और सरकार को अपना काम करने देना चाहिए क्योकि देश बड़ा है और उसकी अस्मिता वैसे ही है जैसे हमारी माँ की ………..देश और संविधान का पूर्ण पालन कीजिये क्योकि अगर देश ही नहीं रहा और शैक्षिक संस्थानों में आतंकवादी विमर्श होने लगा तो वर्तमान भारत की तमाम तक्षशिला को ये आक्रांता रौंद डालेंगे इसी लिए सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आये तो भुला नहीं कहलाता .आईये  देश का बन कर सोचे ……..जिनको बुरा लगे उन सभी से क्षमा डॉ आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार संगठन

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