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हताश क्यों हैं

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कितने हताश दिखे तुम ,
आज रिश्तो के बाज़ार में ,
जो भी बिक रहा था वहा,
बस कुछ ही हज़ार में ,
कितना चाहा कोई मिले ,
बिना किसी मोल तोल का ,
पर दिखाई जो दिया कभी ,
पता नहीं किस  खोल का

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