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सियासत की जमीन पर भी अजीब खेल होते हैं
नेताओं के हथकंडों के आगे सब फेल होते हैं
पहले वोट मांगने जनता के दरवाजे हाथ जोड़कर जाते हैं
और उन्हें विकास के झूठे सब्ज बाग दिखाते हैं
फिर विकास के नाम पर लोकलुभावन नीतियां बनाते हैं
रुपये मैं खर्च करते चवन्नी बाकी हजम कर जाते हैं
जिस जन ने बनाया इन्हें जनप्रतिनिधि उसी का मजाक उड़ाते हैं
पांच रुपये मैं अब कट चाय भी मिलती नही
ये पांच रूपये मैं पेट भर भोजन खिलाते हैं
गरीब के बच्चे को खाने का लालच देकर पहले स्कूल बुलाते हैं
फिर कमीशन के चक्कर मैं जहरीला खाना उन्हें खिलाते हैं
जिसे खाकर माँ की गोद मैं सोने वाले बच्चे
सदा के लिए मौत की नींद सो जाते हैं
फिर ये मगरमच्छ घडियाली आंसू बहाते हैं …..
कहीं दामिनी की तस्वीर पर मोमबत्तियाँ जलाते हैं ….
फिर रातों को बेटी सामान लड़कियों से रंगरेलियां मनाते हैं
जनता दो बूँद पानी को तरसती है
ये सत्ता के मद मैं मदहोश मदिरा के दरिया बहाते हैं
हादसों मैं मरी जनता की मौत पर बस थोडा शोक जताते हैं
अगले ही पल फिर से देश को लूटने मैं जुट जाते हैं
और फिर से उनके पीछे चलते हैं हम
क्यूंकि हम निरीह जनता वे नेता कहलाते हैं ….
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