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कुपोषण से ग्रसित बिहार

Manthan
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कुपोषण से ग्रसित बिहार

एक सर्वे के मुताबिक बिहार की 55 प्रतिशत आबादी कुपोषण का शिकार है l जबकि 70 प्रतिशत महिलायें एवं बच्चे खून की कमी का शिकार हैं l दूसरी तरफ बिहार की वर्तमान सरकार राज्य में सर्वांगीण विकास का दावा कर रही है l पिछले लगभग आठ वर्षों के शासनकाल में विकास दर में निरन्तर वृद्धि राज्य सरकार द्वारा बतायी जा रही है पर वास्तविकता यह है कि यहाँ गरीबी में कमी नहीं आयी है और आज भी बिहार की 55 प्रतिशत आबादी कुपोषण का शिकार है जबकि 70 प्रतिशत महिलायें एवं बच्चे खून की कमी से पीडित है l ऊर्जा, प्रोटीन व अन्य पोषक तत्वों की कमी की वजह से बच्चे विभिन्न प्रकार के कुपोषण से ग्रसित हैं। ये विरोधाभासी विकास का सूचक है l

प्रदेश की सरकार ही यह मानती है कि यहां 1.45 करोड़ परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं l सरकार के ही द्वारा द्वारा विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं आंगनबाडी, मध्याह्न भोजन योजना, जनवितरण प्रणाली, मातृत्व लाभ, पारिवारिक लाभ, वृद्धा पेंशन, मनरेगा एवं स्वास्थ्य योजना पर सात जिलों के 33 गांवों में कराए गए सर्वे के अनुसार उनकी स्थिति अत्यंत असंतोषजनक है l

प्रदेश की सरकार के दावों के अनुसार पिछले वर्ष अनाज का उठाव लगभग 100 प्रतिशत हुआ है पर आज भी गरीबों को वर्ष में औसतन तीन माह तक के अनाज से वंचित रहना पडता है एवं साथ ही निर्धारित कोटा से पांच किलोग्राम कम एवं निर्धारित मूल्य से 30 से 35 रूपये ज्यादा भुगतान करना पडता है l इसी प्रकार डीलरों एवं मुखियाओं द्वारा लगातार शोषण की खबरें और शिकायतें आ रही हैं l पंचायत में एक क्विंटल रिजर्व अनाज से भूख से बेहाल परिवार को मुफ्त अनाज देने की बात है जिसका क्रियान्वयन नहीं हो रहा है l

बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे के बाद कुछ बातें स्पष्ट तौर पर खुल कर सामने आईं जैसे बिहार में आंगनबाडी केंद्रों के बदहाल एवं जर्जर भवनों में पोषाहार वितरण में अनियमितता बरती जाती है , गर्भवती एवं धात्री माताओं को टेक – होम राशन निर्धारित मात्रा से कम और बच्चों एवं किशोरियों को आधापेट पका हुआ भोजन दिया जाता है l

समेकित बाल विकास परियोजना के तहत इन केन्द्रों की निगरानी के लिए बिहार में प्रखंड स्तरीय पर्यवेक्षक के 93 प्रतिशत पद रिक्त हैं, साथ ही भारत सरकार द्वारा बिहार के लिए स्वीकृत 91968 आंगनबाडी केंद्रों में से 11757 आंगनबाडी केंद्र आज भी नहीं खुले हैं l

मातृत्व लाभ योजना के तहत 1400 रूपये का लाभ केवल उन्हीं महिलाओं को दिया जाता है जिनका प्रसव अस्पताल में हुआ है जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार इस योजना का लाभ प्रसवोपरांत सभी महिलाओं को दिया जाना है l आशा कार्यकर्ताओं द्वारा प्रत्येक भुगतान पर 300 से 400 रूपये बतौर रिश्वत लिए जाने की शिकायतें तो आम हैं l

पारिवारिक लाभ योजना तथा वृद्धा पेंशन योजना में भी भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है l राशि का भुगतान चार से छह महीने में एक बार होता है जिसके लिए 50 रूपये प्रति लाभार्थी डाकिया द्वारा काट लिया जाता है l लाभार्थियों का चुनाव गाम सभा में नहीं किया जाता है l कुछ जगहों पर लोगों से आवेदन फार्म के साथ 200 रूपए स्थानीय मुखिया द्वारा लिया जाता है l

वर्तमान में केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा गरीबों को अनाज के बदले पैसे का वितरण की बात उठायी जा रही है पर बिहार में अनाज वितरण में भारी भ्रष्टाचार को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पैसा वास्तविक लाभार्थियों तक पहुँचना और मुश्किल होता जा रहा है l

बच्चों को देश का भविष्य कहा गया है। यदि बच्चे स्वस्थ और सेहतमंद होंगे तो राष्ट्र की नींव मजबूत होगी परंतु संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल कोष के साथ कार्य करने वाले कुपोषण से संबंधित अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ डॉ. माइकल गोल्डन यह व्कतव्य चौंकाने वाला है कि देश में लगभग 80 लाख बच्चे कुपोषण से ग्रस्त हैं, जिसमें से 20 लाख से अधिक बच्चे तो अकेले हमारे बिहार में हैं। सच में डॉ. गोल्डन का यह खुलासा सकते में डालने वाला है।

यह देश और प्रदेश की सरकार के लिए निश्चित ही चिंता का विषय है कि वह आजादी के 65 वर्षों बाद भी देश के नौनिहालों को कुपोषण की दासता से मुक्त नहीं करा पाई है। सरकार के करोड़ों-अरबों रुपए भी कुपोषण की समस्या से निपटने के नाम पर खर्च कर दिए जाने के बावजूद नतीजे उतने सुखद नहीं हैं जितने कि होने चाहिए थे।

यह स्थिति निश्चित ही मुश्किलें पैदा करने वाली है क्योंकि या तो सरकार बच्चों में कुपोषण की समस्या के प्रति गंभीर नहीं है या फिर उसके प्रयासों का लाभ उन बच्चों को नहीं मिल पाया है, जिन्हें उनकी नितांत जरूरत है।

प्रदेश की सरकार के द्वारा लगातार केवल कहा जा रहा है कि कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए लगातार योजनाओं में प्रावधान किया जा रहा है, जितनी भी योजनाएँ बनी हैं, उनमें इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है परंतु नतीजे संतोषप्रद नहीं रहे।

प्रदेश का नौनिहाल सुशासन और विकास के दावों के बावजूद भी यदि कुपोषण से संघर्ष करता नजर आए तो यह एक शर्मसार कर देने वाला विषय है।

इस नैराश्य के बीच आशा की कोई भी किरण दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती है l शायद शासन-तंत्र अपनी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा पर है !!

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