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क्योंकि दिल्ली अभी बहुत दूर है ….

Manthan
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क्योंकि दिल्ली अभी बहुत दूर है ….

नीतीश जी ने सुशासन के मायावी जाल की आड़ में बिहार के गाँव- कस्बे , चौक-चौराहों , नुक्कड़ और गलियों में शराब की दुकानों के जरिए विकास का जो मॉडल पेश किया है, वो बेमिसाल है….. इस का दंश बिहार का समाज झेल रहा है और भविष्य में इस की भयावहता का आभास अभी से ही होने लगा है….
बिहार की जागरूक जनता ने उनके विकास का ढ़ोल देख और सुन लिया है और राज्य में कितना सुशासन है ये भी शायद किसी से छुपा नहीं है…!!!

बिहार में नीतिश कुमार जी की टीम सुशासन के जुमले को कौन सी नीति के तहत अख़बारों में बेहतरीन चमक के साथ परोस रही है ..? इस को लोग अच्छी तरह से समझ चुके हैं….प्रायोजित समाचार माध्यमों के द्वारा सुशासन का जैसा जलवा दिखाया जा रहा है हकीकत में ऐसा कुछ है नहीं…..नौकरशाही अपने बददिमागी और बदइंतजामी के ऊफ़ान पर है , लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं, अपराध का नाग फिर से फन फ़ैलाने लगा है, आर्थिक अपराध बढ़ गए हैं, विधायिका कमजोर हुई है , संगठित ठेकदारी राज का बोल-बाला है , भ्रष्टाचार चरम पर है, जन शिकायतों का निवारण शून्य हो गया है और सबसे बड़ी बात कि सूबे के मुखिया सुशासन की खुशफहमी में हैं और निरन्तर सत्ता के नशे में चूर हो कर “गलथेथरी” कर रहे हैं…..

” अहम् ब्रह्मास्मि ” के तर्ज पर यह सरकार नीतिश कुमार जी से शुरू होकर उन्ही पर समाप्त होती प्रतीत होती है…. सच तो यह है कि संगठन का वजूद भी उनके सामने ‘बौना’ है… यह हिटलरी प्रवृत्ति है, जो उनकी नैया तो पार लगा नहीं सकती उसे बीच ‘भंवर’ में डुबा जरूर सकती है….. अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए निरंकुश ढंग से अपने फैसलों को थोपने की आदत कहीं आत्मघाती ना सबित हो जाए…!! आश्चर्य की बात तो यह है कि राज्यहित , संगठन और कार्यकर्ताओं को तवज्जो न देकर और अपनी शर्तों पर अड़े रहकर उन्होंने यह शायद ये मान लिया है कि अब उनका कोई ‘विकल्प’ प्रदेश और पार्टी के पास नहीं है, इसीलिए उन्हें स्वीकार करना ही होगा… उन्होंने शायद ये मान लिया है कि उन्हें बिहार की जरूरत नहीं , बिहार को उनकी जरूरत है… नीतिश कुमार जी ‘एको अहम द्वितीयो नास्ति’ की सोच वाले व्यक्ति हैं और सबको साथ लेकर चलने की उदारता या हुनर उनके पास नहीं है…

नीतिश कुमार जी अक्सर अपनी इसी छद्यम छवि को सँवारने की कोशिश में नरेन्द्र मोदी से राष्ट्रीय फलक पर भिडंत करते हुए नज़र आते हैं….लेकिन इसके बीच जो चीज़ सबसे अधिक भूल जाते हैं वह उनके राज्य का समग्र और सच्चा विकास….प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कौन बैठता है कौन नहीं इसका फैसला केवल बिहार से नहीं होना है और अभी विकास पुरुष का जामा पहनने वाले नीतिश कुमार जी को बहुत लंबी दूरी तय करनी है….जिसमें बिहार को वास्तविक विकास की छवि में ढालना सबसे अहम है….. लालू राज इसी राष्ट्रीय फलक पर छाने की जल्दबाजी में विलुप्त हो गया था…. कहीं वही हाल नीतिश कुमार जी का भी ना हो जाए….!! क्योंकि दिल्ली अभी बहुत दूर है…

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