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बिहार के ” ब्राडकास्टिंग एण्ड बॉयस्कोप कॉरपोरेशन ऑफ़ सुशासन “की सच्चाई

Manthan
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बिहार के ” ब्राडकास्टिंग एण्ड बॉयस्कोप कॉरपोरेशन ऑफ़ सुशासन “की सच्चाई

बिहार में सामाजिक न्याय का नारा देने वालों मे से एक श्री नीतिश कुमार जी (उन दिनों नीतिश कुमार जी जनता दल में हुआ करते थे और उस दल के प्रमुख रणनीतिकार थे ) के ही शासनकाल में ही सामाजिक न्याय का तानाबाना टूटने लगा है। किसान और नौजवानों की उपेक्षा हो रही है। महिलाओं की आबरू लुटने के मामलों में बिहार देश में पहले पायदान पर है ( अगर सभी मामलों की प्राथमिकी ( FIR) दर्ज हो ) l लगभग आठ वर्षों के शासन में सामाजिक अस्मिता को ही कुचल दिया गया है । अति पिछड़ा, पिछड़ा, दलित, महादलित, मुसलमान व पसमांदा के रूप में समाज को बांट दिया गया है । हत्या, लूट, बलात्कार, रंगदारी जैसे जघन्य अपराधों में निरन्तर बढ़ोतरी हो रही है । अगर निष्पक्ष आक्लन किया जाए तो यह कहने में मुझे कोई झिझक नहीं है कि आजादी के बाद सुशासन में शासन की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय हुई है।

राज-धर्म की प्रतिबद्धताओं पर जाति-धर्म की प्रतिबद्धताएँ हावी हैं l समाजवाद का जाप करने वालों के द्वारा ही समाजवादी मूल्यों और सिद्धांतों की तिलांजलि दी जा रही है l बैलेट का बिकाऊ और बाजारू स्वरूप तैयार करने की कवायद जारी है l तथाकथित माननीयों और आमजनों के बीच की खाई को पाटने की बजाए बढ़ाया जा रहा है l ई-गवर्नेंस की बातें तो की जा रही हैं लेकिन रीयल गवर्नेंस को ताख पर रख दिया गया है l पूर्व के शासनकाल का भय तो दिखाया जा रहा है लेकिन खुद की राजनीतिक शुचिता पर सवालिया प्रश्न मँजूर नही है l

बुद्ध और गाँधी की मूर्तियों और स्मारकों की स्थापना तो की जा रही है लेकिन बुद्ध और गाँधी के द्वारा स्थापित मूल्यों से कोई सरोकार नहीं है l जिन्ना की मजार का ” तीर्थ ” तो किया जा रहा है लेकिन राजेन्द्र बाबु की समाधि की सुधि नहीं है l

नालन्दा का पाँचसितारा प्रेजेन्टेशन तो हो रहा है लेकिन विक्रमशीला भी बिहार की धरोहर है ये शायद याद नहीं है l गँगा के तल में सुरंगी रास्ता और तट पर मरीन ड्राईव बनाने की हवा-हवाई बातें तो हो रही हैं लेकिन गँगा के प्रदूषण की चिंता नहीं है l अपराधमुक्त समाज की बातें हो रही हैं लेकिन सारे बड़े अपराधियों को सत्ता के सहयोग से राजनीतिक तौर पे संरक्षित किया जा रहा है l कृषि रोड मैप का दिवा-स्वप्न दिखाया जा रहा है लेकिन किसानों के पलायन को रोकने के ऊपाय नगण्य हैं l

गुजरात से एलर्जी है और उस के विकास के दावों पे संदेह लेकिन अगर बिहार के वर्तमान हालात से गुजरात की तुलना की जाए , जो आज निःसंदेह और वास्तविक रूप से विकास के मापदण्ड तय करता है , तो गुजरात बिहार से सौ साल एक बार फ़िर दुहराना चाहूँगा सौ साल आगे है l आज बिहार में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और संगठित ठेकेदारी राज का बोल-बाला है ,समाचार माध्यमों पर सत्ता का कब्जा है ,नौकरशाही का दबदबा है और लोकतंत्र और आम आदमी हाशिए पर खड़ा है lशासक को प्रचण्ड बहुमत ने अहँकारी और लगभग तानाशाह ही बना दिया है l जनहित की आड़ में स्वहित का खेल चल रहा है l समूचा शासन-तंत्र “इंफ़्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग” की जगह “इमेज बिल्डिंग” में लगा हुआ है l अधिकार रैलियाँ तो कीं जा रही हैं लेकिन जनता के अधिकारों के हनन की कीमत पर l

हमारे बिहार में एक बहुत ही प्रचलित शब्द है ” गलथेथरी ” (अनर्गल प्रलाप )” केवल इसी में लिप्त है समस्त सुशासनी महकमा l गलथेथरों से ना तो कोई जीता है और जीतेगा l मिथिला में एक कहावत बहुत ही प्रचलित है ” बाजते छी तो हारली केना ? ” l यही हाल है ” ब्राडकास्टिंग एण्ड बॉयस्कोप कॉरपोरेशन ऑफ़ सुशासन ” का l

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