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बिहार में शराब का सच

Manthan
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बिहार में शराब का सच

सुशासन की सरकार और सुशासनी प्रशासन ने बिहार में शराब बेचने की खुली छूट दे रखी है l सच्चाई तो ये है कि शराब बिक्री के बहुत बड़े हिस्से पर अवैध कारोबारियों का ही कब्ज़ा है , जिनकी प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिज्ञों , नौकरशाहों और अन्य सरकारी बाबुओं से साठ-गाँठ है l जाहिर है इस कमाई में सबका अपना अपना हिस्सा होता है l जिस तरह आज बिहार में गाँव-गाँव , शहर-शहर , मोहल्ले – मोहल्ले , नुक्कड़-नुक्कड़ शराब मिल रही है या बेची जा रही है, उसने शराब पीने की प्रवृति को निःसंदेह बढ़ावा दिया है l

अगर आंकड़ों की मानें तो बिहार में जितनी सरकारी शराब की खपत है उससे ८ गुना अधिक शराब लोग इस्तेमाल कर रहे हैं l यहाँ ये प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि बाकी शराब की आपूर्ति कौन कर रहा है और कैसे कर रहा है ? कुछ साल पहले सरकार के ही एक मंत्री जनाब जमशेद अशरफ ने जब इनके खिलाफ कार्रवाई करने की कोशिश की तो उन्हें मंत्री पड़ से हाथ धोना पड़ा l इस से ही अँदाजा लगाया जा सकता है कि अवैध शराब के कारोबार से जुड़े माफियाओं के हाथ कितने लंबे हैं !! कुछ महीनों पहले एक बुजुर्ग नेता पूर्व मंत्री श्री हिंदकेशरी यादव पर शराब – विरोधी आन्दोलन के कारण मुज्जफ़रपुर समाहरणालय के परिसर में जिस तरह से शराब माफियाओं ने कातिलाना हमला किया, वह भी शराब माफियाओं के बढे हुए मनोबल और रसूख को ही दर्शाता है l

बिहार के समाज में शराब का जो प्रचलन बढ़ा है, वह एक व्यसन की तरह फैला है और इसलिए नहीं फैला है कि अचानक शराब की मांग बढ़ गई थी , बल्कि उसे सर्व-सुलभ बनाकर दैनिक जरूरत की तरह परोसा गया और उसे एक ऐसे धंधे की तरह विकसित किया गया, जिसमें स्थानीय ,गाँव , मोहल्लों के जनप्रतिनिधि और दबंग तक शामिल हैं l इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि बिहार में शराब लोगों का टेस्ट कम, बल्कि सुशासनी तंत्र का ट्रैप अधिक है l इस ट्रैप में फंसे लोग अपनी स्वाधीनता खोते जाते हैं, स्वास्थ्य और घर-परिवार का नाश करते हैं और एक संगठित गठजोड़ के समाज के हितों के पोषण हेतु इनका ( लोगों का ) उपयोग होता है l

शराब माफ़ियाओं के विरोध में खड़ा होना भी जोखिम मोल लेने की तरह है l सुशासन के पिछले आठ सालों के कार्यकाल में जब-जब शराब पीने से रोकने के लिए ही कोई अभियान चला है , गली – गली में पसरे शराब के कारोबारियों और उनकी हमसफ़र बनी सुशासन की पुलिस का असली चेहरा उजागर हुआ है l विगत वर्षों में शराब माफ़ियाओं के सच को उजागर करने में जुटे पत्रकार-बँधुओं पर भी हमले की अनेकों घटनाएँ हुई हैं l
वर्तमान में राज्य के हरेक कोने में शराब माफ़ियाओं की जड़ें बहुत गहरी हैं l राजनीति और लालफ़ीताशाही के सिर्फ इशारे पर नोटों की बरसात ही इस माफ़िया का मूलमंत्र है l सिर्फ शराब ही नहीं ऐसे अनेकों अवैध धंधे हैं जो इन माफ़ियाओं के नियंत्रण में हैं l
बिहार में इस सच से हर कोई वाकिफ़ है कि राजनीतिक सांठगांठ और लालफीताशाही की मिलीभगत के बिना यह माफ़िया कभी भी पनपता और फलता -फूलता नहीं है l इस गँठजोड़ का सबसे अच्छा नमूना तो इस बार होली के अवसर पर ही सामने ऊभर कर आया , सम्पूर्ण बिहार में गुरुवार (२८ .०३. २०१३ ) के ही दिन मुख्य होली थी लेकिन बिहार में शराब की दुकानें बुधवार (२७. ०३. २०१३) को बंद थीं l होली के दिन शराब की दुकानों को खुला रखने का ” सुशासनी निर्णय ” शराब माफ़िया और शासन के गठजोड़ का ही परिणाम है l
बिहार में शराब माफ़िया सत्ता और सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों पर सुदृढ़ और प्रभावी नियंत्रण रखता है l यही माफ़िया चुनावों की राजनीति में अपने – अपने आकाओं के लिए बाहुबल का इंतजाम भी करता है , पैसा भी बहाता है ,शराब भी बहाता है और उसके अलावा भी बहुत कुछ जिस से हम सब भली-भाँति वाकिफ़ हैं..!!
आज बिहार में इस बात की भी सख़्त ज़रूरत है कि लोग यह पहचान कर सकें कि आख़िर यह माफ़िया कहाँ – कहाँ कब्ज़ा जमाए बैठा है और माफ़िया ,राजनीति और लालफीताशाही के इस गठजोड़ को कैसे तोड़ा जाए ?? बिहार में राजनीतिक और प्रशासनिक शुचिता के लिए इस विषय पर सोचना और सख़्त कदम उठाना बहुत ही ज़रूरी है l बिहार में आज तक यह माफ़िया राजनीति में जो भी कोई कुर्सी तक पहुंचा है या जो विरोध में आवाज उठाने वाला होता है, दोनों को ख़रीदता ही आया है l चेहरे बदलते रहे हैं लेकिन शराब माफ़िया मजबूत ही होता रहा है..!!

आलोक कुमार , पटना .
सम्पर्क :- ८००२२२२४०० ; ई-मेल : alokkumar.shivaventures@gmail.com

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