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“”कौन दिशा में ले के चला रे बटोहिया…….” :- (कु)सुशासनी बिहार में शिक्षा की बदहाली

Manthan
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“”कौन दिशा में ले के चला रे बटोहिया…….” :- (कु)सुशासनी बिहार में शिक्षा की बदहाली

सुशासन के इस तथाकथित ” स्वर्णिम काल ” में आप बिहार के किसी भी कॉलेज, राजधानी पटना के चुन्निदा कॉलेजों को छोड़कर , में जायेंगे तो आपको मातमी सन्नाटा के अलावा पठन-पाठन का माहौल कतई नहीं मिलेगा. वैसे तो पूरे एक साल में लगभग तीन महीना तो छात्रों की पढाई हड़ताल की बलि चढ़ जाती है. कभी शिक्षकेतर कर्मचारियों की हड़ताल तो कभी प्राध्यापकों की. छात्रों और शिक्षा की ऐसी दुर्दशा शायद ही किसी अन्य राज्य में हो..!!

एक नजर छात्रों की कुछ अत्यन्त ही महत्वपूर्ण समस्याओं पर :-

प्राध्यापकों की कमी
कर्मचारियों का घोर अभाव
पुस्तकालय नहीं हैं, अगर हैं तो पुस्तकें दीमक पढ़ रहे हैं
विज्ञानं संकाय में प्रयोगशालाएं नहीं हैं
बैठने के लिए पर्याप्त फर्नीचर नहीं हैं
क्लास रूम में लाईट और पंखे नहीं हैं
कालेज परिसर में पेयजल की व्यवस्था नहीं है
छात्र – छात्राओं के लिए पृथक शौचालय नहीं है
प्राध्यापक नियमित क्लास नहीं लेते हैं
फार्म भरने या निबंधन के लिए मनमाना फ़ीस वसूला जाता है
सही समय पर परीक्षा फल प्रकाशित नहीं किया जाता है
कॉलेज कर्मियों द्वारा अनावश्यक हड़ताल किया जाता है
महिला कॉलेजों में छात्राओं के सुरक्षा के लिए कोई इन्तजाम नहीं है
कॉलेजों में जेनरेटर की व्यवस्था नहीं है
क्लास रूम में ब्लैक बोर्ड टुटा हुआ है

ये तो छात्रों की समस्याएं थीं. यदि हड़ताल से बचे हुए दिवस में यदि कभी आप कॉलेज पहुँच गए तो निश्चित तौर पर सिर्फ तीन चीजें आपको मिलेंगी , पहला या तो सभी प्राध्यापक अपने कमरे में टेबल पर सिर रखकर खर्राटे लेते हुए नजर आयेंगे (यह दृश्य अक्सर गर्मियों में देखने को मिलता है) , दूसरा अगर ठण्ड का मौसम है तो बाहर धूप में कुर्सी या बेंच लगाकर सामूहिक रूप से अख़बार का आनंद लेते हुए नजर आयेंगे , या तीसरा दृश्य ये होगा की वर्तमान राजनीति पर गरमा-गरम बहस करते हुए नजर आयेंगे. हद तो तब हो गयी जब मैंने एक कालेज में तीन प्राध्यापकों को एक कमरे में मोबाईल पर गाना सुनते हुए पाया , गाने के बोल थे “कौन दिशा में ले के चला रे बटोहिया…….” जिन कॉलेजों में ऐसे दृश्य देखने को मिल सकते हैं तो आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं की वहाँ के शिक्षण का माहौल क्या होगा ??. अब इससे शर्मनाक बात क्या हो सकती है ? क्या यह छात्रों सहित ” सुशासन के गाल ” पर जोरदार तमाचा नहीं है ?

बाकि जो शिक्षकेत्तर बचे – खुचे कर्मचारी हैं वो मनचाहा परीक्षाफल दिलानेवाले “दलाल” बन कर रह गए हैं .लेकिन फिर भी नारा है : “बदलता बिहार, बढ़ता बिहार ” और वहीं दूसरी तरफ कॉलेजों की बदहाली और छात्रों के मज़बूरी का फायदा उठा रहे हैं ” कोचिंग संस्थान ” जो की पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए छात्रों से मोटी रकम वसूलते हैं.

श्री सुशासन जी को सत्ता में आये हुए आठ साल होने जा रहे हैं लेकिन शिक्षा का स्तर दिनों – दिन गिर रहा है और शैक्षणिक माहौल जस का तस है. हाँलाकि बेहतर रिजल्ट आने पर सरकार श्रेय लेने से बाज नहीं आती है जो की बेहद निंदनीय है क्योंकि बेहतर रिजल्ट छात्रों की अपनी कमरतोड़ मेहनत का नतीजा होता है. इसमें सरकार का कोई योगदान नहीं होता है.जब बिहार सरकार आज तक कॉलेजों में पढाई का माहौल नहीं दे पाई है तो फिर अच्छे परिणाम का श्रेय लेने का कोई हक़ नहीं है उसे.ऐसा करने में श्री सुशासन जी और उनके सुशासनी कुनबे को शर्म आनी चाहिए.

अब बात की जाए शिक्षा से संबंद्धित एक अति महत्वपूर्ण संस्था ” बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ( उच्चत्तर माध्यमिक / पूर्व का इंटरमीडिएट कॉऊंसिल ) ” की , यहाँ का आलम ही अनूठा है यहाँ कोई भी कार्य ” महात्मा गाँधी के फ़ोटो वाले नोटों और विजय माल्या जी के कम्पनी के बनाए हुए ‘ पेय विशेष’ को नजराने के तौर पे चढ़ाए बिना संभव नहीं है. यहाँ का एक विभाग (कम्प्यूटर सेक्शन) तो मानो “बिना लाईसेन्स का बार ” है. वहाँ कार्यावधि में “कार्य” छोड़ वो सब होता है जो वर्जित है. इस के पूरे परिसर का अगर सघन भौतिक-सत्यापन किया जाय तो शराब की खाली बोतलों का अम्बार मिलेगा. स्थिति की भयावहता का अँदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि “कुछ कर्मचारी विशेष ” बीमारी का बहाना ले कर महींनों घर बैठते हैं लेकिन उनकी उपस्थिति दर्ज होती रह्ती है. वाह रे सुशासन ” तेरी लीला- अपरम्पार”….!!

सबसे दुःख की बात यह है की सरकार , विश्वविद्यालय , महाविद्यालय और शिक्षा से जुड़ी संस्थाओं / समितियों के इस प्रकार के मनमाने रवैये और बदइंतजामी का दर्द किसे सुनाएँ छात्र ?

अंत में एक बात जरुर कहूँगा की अख़बारों और पत्रिकाओं के विज्ञापन के माध्यम से जमीनी हकीकत को नहीं ढ़ँका जा सकता है. बिहार में वर्तमान सरकार के शासन-काल में शिक्षा की हालत जर्जर है और छात्रों का भविष्य उज्जवल तो किसी भी मायने में नहीं है बल्कि भगवान भरोसे ही है . तभी तो पटना के एक कॉलेज में जब एक छात्र को गुन-गुनाते हुए सुना ” हम से क्या भूल हुई ? जो ये सजा हम को मिली…!!” तो मुझे लगा कि वो छात्र केवल अपना ही नहीं समस्त छात्र बिरादरी का दर्द बयाँ कर रहा है .

आलोक कुमार, पटना.
ई-मेल :-alokkumar.shivaventures@gmail.com

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